अयोध्या और देश की पहचान श्रीराम से है

Galgotias Ad

 

भारतवर्ष में कई राज्य थे जो अक्सर आपस में लड़ते रहते थे जिसका लाभ उठाकर बाबर ने भारत पर आक्रमण किया था और अपने विजयोल्लास के उपलक्ष्य में बाबरी मस्जिद बनवायी थी। जबकि मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीराम जन्मभूमि का इतिहास लाखो वर्ष पुराना है। अयोध्या यानी ऐसी जगह जहां युद्ध न हो। भले ही अयोध्या की फिजाओं में शांति हो, लेकिन इसके उलट अयोध्या को लेकर देश की सियासत अक्सर गर्माती रहती है। 90 के दशक में इस मुद्दे ने समाज के ताने-बाने पर भी बुरा असर डाला। इसका विध्वंसक रूप 6 दिसंबर 1992 को सामने आया। यह विवाद आज भी भारतीय राजनीति और समाज में एक संवेदनशील विषय है। अयोध्या विवाद ने कई दशकों तक देश की राजनीति को प्रभावित किया है, यदि हमें इस विषय को समझना है और किसी  निर्णय पर पहुंचना है तो भगवन श्रीराम और क्रूर आक्रमणकारी बाबर को जानना जरुरी है।

मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीराम

भरत के लिए आदर्श भाई, हनुमान के लिए स्वामी, प्रजा के लिए नीति-कुशल व न्यायप्रिय राजा, सुग्रीव व केवट के परम मित्र और सेना को साथ लेकर चलने वाले व्यक्तित्व के रूप में भगवान श्रीराम को पहचाना जाता है। उनके इन्हीं गुणों के कारण उन्हें मर्यादा पुरुषोत्तम राम के नाम से पूजा जाता है। भगवान राम विषम परिस्थितियों में भी नीति सम्मत रहे। उन्होंने वेदों और मर्यादा का पालन करते हुए सुखी राज्य की स्थापना की। स्वयं की भावना व सुखों से समझौता कर न्याय और सत्य का साथ दिया। फिर चाहे राज्य त्यागने, बाली का वध करने, रावण का संहार करने या सीता को वन भेजने की बात ही क्यों न हो। श्रीराम इस देश के करोड़ों हिन्दुओं की आस्था, श्रद्धा और सामाजिक समरसता के केंद्र हैं। वे अपनी जन्मभूमि पर विराजमान भी हैं. उनकी लगातार पूजा-अर्चना होती आ रही है। त्रेता युग के चतुर्थ चरण में मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान श्री रामचंद्र जी अयोध्या की इस पावन भूमि पर अवतरित हुए थे। श्रीराम के जन्म के समय यह स्थान बहुत ही विराट, सुवर्ण एवं सभी प्रकार की सुख सुविधाओ से संपन्न एक राजमहल के रूप में था। महर्षि वाल्मीकि ने भी रामायण मे जन्मभूमि की शोभा एवंमहत्ता की तुलना दूसरे इंद्रलोक से की है। धन धान्य रत्नो से भरी हुई अयोध्या नगरी की अतुलनीय छटा एवं गगनचुम्बी इमारतो के अयोध्या नगरी में होने का वर्णन भी वाल्मीकि रामायण में मिलता है।

बाबर

यह कहना गलत नहीं होगा कि क्रूर बाबर का भारत पर आक्रमण हर तरह से महमूद गजनवी या मोहम्मद गौरीजैसा ही था, जिसने अपने हितों के खातिर किसी भी प्रकार के नरसंहार को सही माना था। जाहिर तौर पर इतिहास में ऐसे क्रूर शासकों को उनकी क्रूरता के लिए कहीं ज्यादा याद किया जायेगा, बजाय किसी और बात के। अपने पूर्वजों की तर्ज पर बाबर ने क्रूरता जारी रखी। उसने मुसलमानों की हमदर्दी पाने के लिए हिन्दुओं का नरसंहार ही नहीं किया, बल्कि अनेक हिन्दू मंदिरों को भी नष्ट किया। बाबर की आज्ञा से मीर बाकी ने अयोध्या में राम जन्मभूमि पर निर्मित प्रसिद्ध मंदिर को नष्ट कर मस्जिद बनवाई थी। यही नहीं ग्वालियर के निकट उरवा में अनेक जैन मंदिरों को भी नष्ट किया था। बाबर की कट्टरता और क्रूरता को इसी से समझा जा सकता है कि उसने अपने पहले आक्रमण में ही बाजौर के सीधे-सादे 3000 से भी अधिक निर्दोष लोगों की हत्या कर दी थी। वो भी सिर्फ इसलिए क्योंकि बाजौर वाले विद्रोही तथा मुसलमानों के शत्रु थे। यहां तक कहा जाता है कि उसने इस युद्ध के दौरान एक पुश्ते पर आदमियों के सिरों को काटकर उसका स्तंभ बनवा दिया था। माना जाता है की गुरुनानक जीने भी बाबर के वीभत्स अत्याचारों को अपनी आंखों से देखा था। उन्होंने इन आक्रमणों को पाप की बारात और बाबर को यमराज की संज्ञा दी थी। इन आक्रमणों में बाबर ने किसी के बारे में नहीं सोचा। उसके रास्ते में बूढ़े, बच्चे और औरतें, जो कोई भी आया वह उन्हें काटता रहा।

के.के. मुहम्मद की मलयालम भाषा में आत्मकथा “मैं एक भारतीय” नाम से प्रकाशित हुई। पुस्तक में इस दावे के कारण लोगों का ध्यान आकर्षित हुआ कि मार्क्सवादी इतिहासकारों ने चरमपंथी मुस्लिम समूहों का समर्थन किया और अयोध्या विवाद का एक सौहार्दपूर्ण समाधान खोजने के प्रयासों को पटरी से उतार दिया। उनके अनुसार, अयोध्या में पुरातात्विक खुदाई में स्पष्ट रूप से मस्जिद के नीचे एक मंदिर की उपस्थिति के निशान मिले थे, उन्होंने लिखा है कि ‘जो कुछ मैंने जाना और कहा है, वो ऐतिहासिक सच है। हमें विवादित स्थल से 14 स्तंभ मिले थे। सभी स्तंभों में गुंबद खुदे हुए थे। ये 11वीं और 12वीं शताब्दी के मंदिरों में मिलने वाले गुंबद जैसे थे। गुंबद में ऐसे 9 प्रतीक मिले हैं, जो मंदिर में मिलते हैं. लेकिन वामपंथी इतिहासकारों ने इन्हें खारिज कर दिया और इलाहाबाद उच्च न्यायालय को भी गुमराह करने की कोशिश की।

राम जन्म मंदिर जहं, लसत अवध के बीच।

तुलसी रची मसीत तहं, मीर बाकी खल नीच॥

गोस्वामी तुलसीदास के इस दोहे से इतना तो साफ है कि वहां राम मंदिर था जिसे बाबर के सेनापति मीर बाकी ने तोड़कर एक ढांचा खड़ा कर दिया था। तुलसीदास रचित रामचरित मानस हालांकि कानूनी साक्ष्य के रूप में तो ज्यादा महत्वपूर्ण नहीं है, किन्तु उस दौर के लोगों की सोच, मानसिकता एवं वास्तविकता का परिचायक अवश्य है। इलाहाबाद हाइकोर्ट ने अपने फैसले में एएसआई (पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग) की रिपोर्ट को आधार मानते हुए माना कि विवादित जगह पर बाबरी मस्जिद से पहले राम मंदिर था। कोर्ट ने इस मान्यता को तरजीह दी कि रामलला कई सालों से मुख्य गुम्बद के नीचे स्थापित थे और वहीं प्रभु श्री राम का जन्म हुआ था।

भारत में कुछ कट्टरपंथी विदेशी आक्रमणकारियों बाबर, मौहम्मद बिन-कासिम, गौरी, गजनवी इत्यादि लुटेरों को और औरंगजेब जैसे साम्प्रदायिक बादशाह को महिमा मंडित करते हैं और उनके द्वारा मंदिरों को तोड़कर बनाई गई मस्जिदों व दरगाहों को इस्लाम की काफिरों पर विजय और हिन्दू अपमान के स्मृति चिन्ह बनाये रखना चाहते हैं। बाबर को भारत भूमि अप्रिय लगती थी कि उसने मृत्योपरान्त वहाँ दफन होना भी पसंद नहीं किया था। अफ़गानिस्तान में उसका टूटा-फूटा मकबरा है। कहा जाता है कि मुस्लिम देश अफगानिस्तान के मुसलमान बाबर को एक विदेशी लुटेरा समझकर उसके मकबरे का रखरखाव नहीं करवाते हैं। उनके लिए वह आदर का पात्र नहीं है। वही हमारी सरकार इन लोदियों, मुगलों, पठानों, खिलजियों और गुलामों के मकबरों के रखरखाव पर करोड़ों रुपया प्रतिवर्ष खर्च करती है और उन बर्बर आक्रान्ताओं द्वारा अपने मंदिरों को अपवित्र और तोड़कर उनके स्थान पर बनाई गई मस्जिदों को इस देश की संस्कृति की धरोहर बताकर फौज पुलिस बिठाकर उनकी रक्षा करती है। संसार में क्या कोई ऐसा आत्म सम्मानहीन दूसरा देश और समाज देखने को मिलेगा? क्योंकि हिन्दू, कानून में विश्वास करने वाले, सुसंस्कृत, उदार, धर्मनिरपेक्ष, भले लोग प्रमाणित होना पसंद करते हैं।

इंडोनेशिया दुनिया का ऐसा देश है जहां की आबादी मुस्लिम बहुल तो है, लेकिन रामलीला पर उनकी आस्था है।थाईलैंड के राजा भगवान राम के वंशजों में से एक माने जाते हैं और दूसरे देश भी भगवान राम को मानते हैं। भारत का हर बच्चा रामलीला के बारे में जानता है और हर मत-पंथ का व्यक्ति भगवान राम के प्रति श्रद्धा दर्शाता है।

अखिल भारतीय मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड (एआईएमपीएलबी) के बर्खास्त कार्यकारी सदस्य सैयद सलमान हुसैनी नदवी ने भी कहा है  कि दोनों समुदायों के बीच माहौल अच्छा होना चाहिए। शरियत में इसके लिए अनुमति है। हनबली स्कूल ऑफ इस्लामिक के अनुसार, एक मस्जिद को स्थानांतरित किया जा सकता है। मंदिर तोड़कर नया ढांचा बनवाने वाला मीर बाकी शिया समुदाय का था, इसलिए वहां शिया वक्फ बोर्ड अपना अधिकार जता रहा था। मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ भी अयोध्या में कह चुके हैं कि सकारात्मक राजनीति से ही अयोध्या में हल निकलेगा। अयोध्या ने देश को एक पहचान दी है। खुदाई से भी यह साबित हो चुका है कि मन्दिर था इसलिए मुस्लिम समाज को अपना दावा छोडना चाहिए और रामलला के लिए भव्य मन्दिर निर्माण के कार्य में अपना सहयोग देना चाहिए। इस मामले पर इतनी राजनीति हुई कि सब ऊब चुके हैं और अब रामलला को आजाद देखना चाहता हैं। अयोध्या का मामला राजनीति का नहीं रहा है। अयोध्या आंदोलन का नेतृत्व हमेशा साधु संतों ने किया और संतों के निर्णय अनुसार कार्य किया। संतों का मत है कि अयोध्या में मन्दिर निर्माण सोमनाथ मन्दिर की तर्ज पर किया जाए। न्यायालय का फैसला आ चुका है साक्ष्य भी खुदाई में मिल चुके हैं अच्छा रहेगा संतों के आह्वान को मान कर देश की संसद मन्दिर निर्माण का फैसला ले। मन्दिर निर्माण के कार्य में सभी लोग अपना योगदान दें। क्योंकि यह राष्ट्रहित का काम है। देश की धार्मिक-सांस्कृतिक पहचान का सवाल है। जाहिर है अयोध्या और देश की पहचान राम से है। धर्मग्रंथों से लेकर आस्था तक और खुदाई में साक्ष्यों से लेकर कानूनी दांवपेंच के बीच कई बार यह साबित हो चुका है कि रामलला जहां विराजमान हैं वह जन्मभूमि है।

आलेख – चन्द्रपाल प्रजापति नोएडा

Leave A Reply

Your email address will not be published.