मौत के कारख़ानों ने फिर ली 3 मज़दूरों की जान, नवादा की क्रॉकरी फैक्ट्री में आग लगने से हुई 3 मज़दूरों की मौत

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नई दिल्ली: मौत के कारख़ानों ने फिर ली 3 मज़दूरों की जान, नवादा की क्रॉकरी फैक्ट्री में आग लगने से हुई 3 मज़दूरों की मौत 17 अप्रैल की रात को दक्षिणी दिल्ली के नवादा औद्योगिक क्षेत्र में एक फैक्ट्री में शॉर्टसर्किट से आग लगने की वजह से 3 मज़दूरों की मौत हो गयी। जब फैक्ट्री के अंदर आग भड़की तो मज़दूरों ने अपनी जान बचाने के लिए फैक्ट्री से बाहर निकलने की कोशिश की मगर फैक्ट्री का दरवाज़ा बाहर से बंद होने के कारण वो अंदर ही घुट-घुट कर मर गए। गौर करने वाली बात है कि सरकारी आकंड़ों के मुताबिक मरने वाले मज़दूरों की संख्या 3 बताई जा रही है लेकिन मज़दूरों का कहना है कि फैक्ट्री में रात की शिफ्ट में काम करने 7 मज़दूर गए थे जिनमे से बाकी 4 अब लापता है। मरने वालों में से दो मज़दूर बिजली प्रेस ऑपरेटर थे। यह आग रात करीब 10 बजे के आस-पास लगी।

देर रात को फैक्टरियों में अवैध रूप से काम कराने के लिए फैक्ट्री मालिक कारख़ानों का दरवाज़ा बाहर से बंद करवा देते हैं। यह प्रथा ग़ैर-क़ानूनी होने के बावजूद भी बेहद आम है। अपने साथी मज़दूरों की फैक्ट्री के मालिक की लापरवाही के कारण हुई मौत के ख़िलाफ़ मज़दूरों में बेहद गुस्सा था जिसके चलते मज़दूरों ने स्वतःस्फूर्त हड़ताल कर दी। मज़दूर अपने साथियों के लिए इन्साफ़ की माँग उठाते हुए फैक्टरियों के बाहर प्रदर्शन कर रहे हैं। नवादा औद्योगिक क्षेत्र में ऐसी कई फैक्टरियाँ है और सभी की कहानी एक जैसी है। मज़दूरों के आक्रोश से घबरा कर पहले तो कुछ फैक्ट्री मालिक उन्हें अपनी हड़ताल वापिस लेने के लिए दाबाव बनाने उनके पास गए। लेकिन जब मज़दूरों ने उनकी बात मानने से इंकार कर दिया तो उन्हें डराने-धमकाने लगे और एक मज़दूर के साथ मार-पीट की। जिसके बाद मज़दूरों में रोष और भी बढ़ गया।

एक तरफ उनके 3 साथियों की हत्या की जाती है तो दूसरी तरफ न्याय की माँग उठाने और संविधान द्वारा दिए जाने वाले श्रम क़ानूनों की माँग करते हुए उनके साथ मालिक पुलिस-प्रशासन से बेख़ौफ़ होकर मार-पीट करते हैं। यह रिपोर्ट लिखे जाने तक नवादा औद्योगिक क्षेत्र के सैंकड़ों मज़दूर हड़ताल पर है और अपने हक़-अधिकारों के लिए संघर्षरत हैं। ऐसी किसी भी घटना के बाद मुवाअज़ा देने से बचने के लिए अक्सर फैक्ट्री मालिक मज़दूरों को पहचान पत्र तक नहीं देते। दुर्घटना के नाम पर लगने वाली ऐसी आग सिर्फ़ और सिर्फ़ मालिक की लापरवाही का नतीज़ा होती है ऐसे में जब मज़दूर हड़ताल कर अपने लिए इन्साफ़ की माँग कर रहे है तो दिल्ली की सरकार घोड़े बेच कर सो रही है। और वो भी तब जब जनवरी से लेकर अप्रैल के महीने तक यह भारत की राजधानी दिल्ली में हुई ऐसी चौथी घटना है। बवाना में लगी भीषण आग के बाद सरकार ने कई वादें तो किये थे लेकिन उनके वादें किस कदर खोखले है वो बवाना के बाद सुल्तानपुरी की जूता फैक्ट्री , नरेला की फैक्ट्री और अब नवादा में लगी आग से साफ़ हो जाता है। इन सभी दुर्घटनाओं में सरकारी आंकड़ों के मुताबिक 28 मज़दूरों की मौत हो चुकी है। क्या राजधानी के मेहनतकशों की ज़िन्दगी की कीमत सरकार की नज़र में कुछ भी नहीं है। क्यों बार-बार ऐसी दुर्घटनाये होने पर भी सत्ता में बैठे नेता मंत्रियों की नींद नहीं टूट रही है|

दिल्ली के तमाम औद्योगिक क्षेत्रों में मज़दूरों के हालात बेहद खराब है। सभी श्रम क़ानूनों को ताक पर रख कर मज़दूरों से अमानवीय परिस्तिथियों में काम करवाया जाता है और उन्हें जानभूझ कर मौत के मुँह में धकेला जाता है। बिगुल मज़दूर दस्ता के कार्यकर्ता नवादा के मज़दूरों की इस हड़ताल में शुरू से शिरकत कर रहे हैं। बिगुल के साथी अनंत ने बताया कि अब तक इस आग में जल कर मरने वाले मज़दूरों के फैक्ट्री मालिक को गिरफ़्तार तक नहीं किया गया है उल्टा जब से मज़दूर फैक्टरियों के बाहर इकठ्ठा हो रहे हैं तब से वहाँ अधिक संख्या में पुलिसबल तैनात किया जा रहा है और मज़दूरों की हड़ताल को तोड़ने का प्रयास किया जा रहा है। ज़्यादातर मज़दूरों के पास कोई पहचान पत्र तक नहीं है और न ही इलाके की किसी भी फैक्ट्री में न्यूनतम वेतन दिया जाता है। लगभग 500 मज़दूर अभी भी फैक्टरियों के बाहर है और अपने अधिकारों के लिए लड़ रहें हैं।

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