आप पार्टी के प्रवक्ता सौरभ भारद्वाज ने शीला दीक्षित पर साधा निशाना

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ROHIT SHARMA

NEW DELHI : दिल्ली नागरिक सहकारी बैंक में साल 2012 में उस वक्त की दिल्ली की मुख्यमंत्री शीला दीक्षित की नाक के नीचे उक्त बैंक में बड़ा घोटाला अंजाम दिया गया, वर्तमान में दिल्ली सरकार के मुख्य सचिव शीला दीक्षित के उसी घोटाले के संदर्भ में जवाबदेही से बच रहे हैं और यही वजह है कि इन अधिकारी के प्रति पूर्व सीएम शीला दीक्षित का स्नेह उमड़ रहा है। आपको बता दें कि वर्तमान मुख्य सचिव पूर्व में शीला दीक्षित के प्रधान सचिव रहे हैं और यही कारण है कि आज शीला दीक्षित उक्त अफ़सर का बचाव कर रही हैं।

 

 

आप पार्टी के प्रवक्ता विधायक सौरभ भारद्वाज ने प्रेस वार्ता करते हुए कहा कि ‘विधानसभा की कमेटी ने इस बैंक घोटाले के मामले में मुख्य सचिव से जवाब-तलब किया था और उनके मातहत काम करने वाले अफ़सर के ख़िलाफ़ एक्शन लेने का आदेश दिया था, मुख्य सचिव एम एम कुट्टी ना केवल इस मामले में कोई जवाब दे रहे हैं बल्कि कमेटी की तरफ़ से जो निर्देश मुख्य सचिव को दिए गए थे उस संदर्भ में की गई कार्रवाई के बारे में कोई जानकारी ही विधानसभा की कमेटी को वो नहीं दे रहे हैं। अब ऐसे में पूर्व मुख्यमंत्री शीला दीक्षित मुख्य सचिव एम एम कुट्टी और दूसरे अफ़सरों के प्रति अपना स्नेह दिखा रही हैं उसका कारण यह है कि कुट्टी साहब पूर्व में शीला के प्रधान सचिव रहे हैं और शीला जी की नाक के नीचे ही ये पूरा बैंक-घोटाला अंजाम दिया गया जिसकी जवाबदेही से अब ये अफ़सर भाग रहे हैं।‘

आपको बताते हैं कि आखिर ये बैंक घोटाला था क्या और कैसे इसमें सरकारी अफ़सर कांग्रेस के नेताओं और उस घोटाले के दोषियों को बचा रहे हैं-

1. साल 2012 में 40 लोगों की इस सहकारी बैंक में भर्ती में भारी गड़बड़ी की गई और एक योजनाबदध तरीक़े से कुछ विशेष लोगों को भर्ती किया गया जिसमें कानून और प्रक्रिया की अनदेखी की गई

2. ज़रुरी प्रक्रिया की अनदेखी करते हुए योजनाबद्ध तरीक़े से 62 विशेष लोगों को पद्दोन्नत्ति दी गई, जिसमें बैंक के एक डायरेक्टर ने तो अपने बेटे को ही प्रोमोशन दे दिया।

3. फर्ज़ी कागज़ों के आधार पर करोड़ो रुपए के लोन दिए गए जो कभी वापस ही नहीं आए।

4. कुछ लोन तो ऐसे लोगों के नाम से दिए गए जो दर्ज़ कराए पतों पर रहते भी नहीं थे।

5. ज़मीन के नकली कागज़ात के आधार पर करोड़ों रुपए के लोन दिए गए और वो लोन का पैसा वापस भी नहीं आया। यह सबकुछ बड़े ही योजनाबद्ध तरीक़े से किया गया।

6. बोर्ड के डायरेक्टर बनाने के लिए उक्त सहकारी बैंक की मेम्बरशिप को लेकर बड़ा घोटाला किया गया जिसके तहत फर्ज़ी मेम्बर बनाए गए। खुद तत्कालीन मुख्यमंत्री ने 1000 मेम्बरशिप के फॉर्म खरीदे थे और ऐसे ही शीला दीक्षित के कुछ ख़ास लोगों ने भारी संख्या में मेम्बरशिप फॉर्म खरीदे और फर्ज़ी मेम्बर बनाए और फ़र्जी लोन भी पास कराए।

7. शीला दीक्षित की सरकार ने जयभगवान नामक व्यक्ति को इसी बैंक का एडमिनिस्ट्रेटर बनाया और फिर बाद में फ़र्ज़ी मेम्बर्स के सहारे जयभगवान जी को डायरेक्टर और फिर बैंक का चेयरमैन भी बनवा दिया जिनकी देखरेख में ही इस बैंक में बड़े घोटाले को अंजाम दिया गया, ज्ञात हो कि जयभगवान जी को तत्कालीन मुख्यमंत्री शीला दीक्षित का आर्शीवाद प्राप्त था।

8. जब आम आदमी पार्टी की सरकार सत्ता में आई तो इस मामले की जांच को और तेज़ कराया गया। पूर्व में कुछ रजिस्ट्रार ने इस मामले की जांच तो की थी लेकिन कभी रिपोर्ट पेश नहीं की। अब विधानसभा कमेटी इस मामले में अफ़सरों से जवाब-तलब कर रही थी लेकिन अफ़सर इस घोटाले पर कोई जवाब नहीं दे रहे।

9. विधानसभा कमेटी ने पूर्व रजिस्ट्रार शूरवीर सिंह से इस घोटाले को लेकर जवाब मांगा तो उन्होंने कमेटी द्वारा पूछे गए किसी भी सवाल का जवाब नहीं दिया, जब शूरवीर सिंह की निष्क्रियता को लेकर मुख्य सचिव से जवाब मांगा गया और मुख्य सचिव एम एम कुट्टी को शूरवीर सिंह पर कार्रवाई करने के लिए कहा गया तो अब एम एम कुट्टी भी विधानसभा की कमेटी को इस बैंक-घोटाले पर कोई जवाब नहीं दे रहे हैं। यही कारण है कि वो विधानसभा कमेटी के सामने पेश ना होकर हाईकोर्ट में पहुंच गए।

10. अब पूर्व मुख्यमंत्री शीला दीक्षित एम एम कुट्टी समेत उन सभी अफ़सरों का बचाव कर रही हैं जो अफ़सर शायद उनको उनकी सरकार के वक्त ऐसे बड़े-बड़े बैंक-घोटाले और दूसरे तरह के घोटाले करने में ना केवल मदद करते थे बल्कि जांच के वक्त भी शीला जी के बचाव में ही काम करते थे। अब अफ़सरों के प्रति शीला जी के स्नेह का यही कारण है।

आम आदमी पार्टी जल्द ही इस बैंक-घोटाले में कांग्रेस के बड़े नेताओं के सीधे हस्तक्षेप का खुलासा करेगी, और वो खुलासा इस बात को और पुख्ता करेगा कि इस उक्त बैंक-घोटाले से शीला दीक्षित की कांग्रेस सरकार का सीधा सम्बंध था।

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