चीन को देना होगा करारा जवाब.

Galgotias Ad

अनिल निगम

पड़ोसी देश चीन की फितरत ऐसी रही है कि उस पर विश्वास करना बेहद मुश्किल है। चीन एक ओर जहां खुद सिक्किम, अरुणाचल प्रदेश और लद्दाख जैसे स्थानों पर घुसपैठकर भारत पर आक्रामक हो जाता है, वहीं दूसरी ओर वह भारत को पंचशील सिद्धांतों का पालन करने की सलाह भी देता है। ‘‘आप ही काजी और आप ही मुल्ला’’ कहावत चीन के चरित्र को चरितार्थ करने के लिए पर्याप्त है। चीन एशिया में ही नहीं बल्कि विश्व में महाशक्ति के तौर पर अपनी साख कायम करना चाहता है। यही कारण है कि भारत जब जब जापान, रूस और अमेरिका के साथ अपनी नजदीकी बनाने की कोशिश करता है, चीन की बेचैनी बढ़ जाती है और वह भारत के खिलाफ षड़यंत्र करने के काम में जुट जाता है। चीनी सैनिकों का भारतीय सीमा में घुसपैठ करना आम बात है। इसके पहले वह प्रतिक्रिया स्वरूप भारतीय नागरिकों की मानसरोवर यात्रा को भी रोक चुका है।

दरअसल, हिंदी चीनी भाई भाई का नारा बुलंद करने और गौतमबुद्ध के पंचशील सिद्धांतों पर आधारित भारत चीन के द्विपक्षीय संबंधों को मान्यता देने वाला चीन वर्ष 1962 में भारत पर हमला कर सफेदी पर स्याह पहले ही लगा चुका है। ऐसे में चीन के साथ भारत के संबंध कभी भी मजबूत धरातल पर पल्लवित और पुष्पित नहीं हो सके। हमें एक नजर इस बात पर डालनी चाहिए कि आखिर चीन ऐसा करता ही क्यों है, इसका सीधा सा जवाब यह है कि चीन साम्राज्य‍वादी प्रवृत्ति का देश है। वह न केवल अपनी भौगोलिक सीमाओं का विस्तार करना चाहता है, बल्कि वह भारत सहित अनेक देशों में अपने आर्थिक उपनिवेश स्थापित करना चाहता है। यही कारण है कि वह हर अंतरराष्ट्रीय मंच पर भारत का संयुक्त राष्ट्र संघ की सुरक्षा परिषद में स्थायी सदस्य बनने की मांग का विरोध करता रहा है। यही नहीं, चीन भारत के परंपरागत दुश्मन देश पाकिस्ता‍न की नीतियों का समर्थन आंख मीचकर करता रहा है। यह जानते हुए कि पाकिस्तान आतंकवादियों को अपने ही देश में पाल पोश रहा है, फिर भी चीन उसके परमाणु कार्यक्रम में सहयोग करता रहा है और अंरराष्ट्रीय मंचों पर भी पाकिस्तान का समर्थन करता रहा है।

चीन की मंशा पाकिस्तान को अपना आर्थिक उपनिवेश बनाने की है। इसी उद्देश्य से वह पाकिस्तान में न केवल सड़कें और बिजली संयंत्र बना रहा है, बल्कि वहां के ढांचागत विकास में रचबस सा गया है। मालाबार समुद्र (हिंद महासागर) में जब जब भारत, अमेरिका और जापान की सेनाएं संयुक्त अभ्यास कररती हैं, चीन का धैर्य खोने लगता है। उसकी मंशा न केवल हिंद महासागर में अपना एकछत्र राज स्थापित करने की है बल्कि वह पाकिस्तान को ऐसा प्लेटफार्म मानता है, जिसके माध्यम से वह पड़ोसी देशों नेपाल, भूटान, भारत और बांग्लाादेश में अपनी सीमाओं का विस्तार कर सके। कूटनीतिक और रक्षा विशेषज्ञों का भी मानना है कि भारत को चीन के साथ अपने द्विपक्षीय संबंधों को पुन: परिभाषित करना चाहिए। यद्यपि इस समस्या का समाधान युद्ध नहीं है। लेकिन अगर चीन की सेना हमारी सीमा पर इसी तरह से अंदर घुसपैठ कर भारतीय बंकरों को नष्ट करती रही और अपने तंबू गाड़ती रही और हम चीन के साथ शांति वार्ता करते रहे तो भारतीय सेना का मनोबल गिर जाएगा। भारत को चीन के प्रति सख्त रवैया अपनाना होगा। उसको कूटनीतिक तरीके से अंतरराष्ट्रीय मंचों पर सटीक जवाब देना होगा और भारतीय सेना को भी इजाजत देनी होगी कि वे भारतीय सीमा में घुसपैठ करने पर उनको सही सबक सिखा सके।

Leave A Reply

Your email address will not be published.