भ्रष्टाचार के खिलाफ गति ‘नौ दिन चले अढ़ाई कोस’
अनिल निगम अनिल निगम
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उत्तर प्रदेश के नोएडा, ग्रेटर नोएडा और यमुना एक्सप्रेस वे प्राधिकरण के पूर्व मुख्य अभियंता यादव सिंह के बाद आयकर विभाग ने अपना शिकंजा नोएडा प्राधिकरण के सहायक परियोजना अभियंता बृजपाल चौधरी पर कस दिया है। आयकर विभाग ने सेक्टर 27 स्थिति उसके निज निवास पर सर्वे किया। यादव सिंह और हाल ही में यमुना प्राधिकरण के पूर्व सीईओ पी सी गुप्ता पर जिस तरह से घोटाले और भ्रष्टाचार के मामले उजागर हुए हैं। उससे एक बात तो साबित हो गई है कि अधिकारी और कर्मचारी नोएडा, ग्रेटर नोएडा और यमुना एक्सप्रेस को कुबेर का खजाना समझकर लूट रहे हैं। दुर्भाग्यपूर्ण यह है कि इन प्राधिकरणों में चल रही लूट-खसोट के प्रति पूर्व प्रदेश सरकारों का रवैया बेहद लचर और उदासीन रहा है। हालांकि भाजपा की योगी सरकार ने इस तरह की चल रही गतिविधियों की ओर अपनी भृकुटि कुछ टेढ़ी अवश्य की है, लेकिन इन प्राधिकरणों में व्याप्त भ्रष्टाचार और घोटालों की सफाई के लिए वर्तमान सरकार के प्रयासों की गति भी ‘’नौ दिन चले अढ़ाई कोस’’ ही साबित हो रही है।
यादव सिंह और बृजपाल के खिलाफ की गई कार्रवाई में चार साल की समावधि का अंतर है। हालांकि इस बीच चंद दिनों पूर्व ही यमुना प्राधिकरण के पूर्व सीईओ पी.सी. गुप्ता के खिलाफ 126 करोड़ रुपये की जमीन घोटाले का मामला भी प्रकाश में आया है। बृजपाल ने कितने करोड़ के घोटाले किए हैं या अकूत संपत्ति इकट्ठी की, यह तो जांच का विषय है। बृजपाल अपनी सभी गाडि़यों पर उत्तर प्रदेश सरकार लिखकर चलता था। नोएडा-ग्रेटर नोएडा की सड़कों पर प्रेस, पुलिस, डॉक्टर, भारत सरकार, उत्तर प्रदेश सरकार लिखे और हूटर लगे अनेक वाहन ट्रैफिक नियमों का उल्लंघन करते और गुंडागर्दी करते प्राय: देखे जा सकते हैं। लेकिन यहां का परिवहन और यातायात विभाग इन पर अंकुश लगाने में पूरी तरह से विफल रहा है।
यादव सिंह पर करोड़ों का घोटाला करने और आय से अधिक संपत्ति इकट्ठा करने के कई मामले चल रहे हैं। इसी तरह से बृजपाल चौधरी पर अकूत संपत्ति इकट्ठा करने और उनकी दबंगई की खबरों से अखबारों के पन्ने रंगे पड़े हैं। आज नोएडा-ग्रेटर नोएडा साधारण शहर नहीं हैं। वे दिल्ली एनसीआर के न केवल महत्वपूर्ण शहर हैं बल्कि इनकी पहचान आईटी हब और प्रमुख औद्योगिक शहरों के रूप में स्थापित हो चुकी है। यहां पर कई बहुराष्ट्रीय कंपनियों की बड़ी और मध्यम ईकाइयां चल रही हैं। लिहाजा यहां जो कुछ भी घटित होता है, उसका पूरे देश और विश्व में व्यापक असर पड़ता है।
मेरा यक्ष प्रश्न है कि यादव सिंह और पी.सी. गुप्ता के खिलाफ जांच शुरु करने के बाद सरकार और आयकर विभाग को प्राधिकरण में सिर्फ एक ही व्यक्ति भ्रष्टाचार के मामले में लिप्त नजर क्यों आया? क्या आयकर विभाग और सरकार को नोएडा, ग्रेटर नोएडा और यमुना प्राधिकरण में वर्षों से कार्यरत आधिकारियों में सिर्फ तीन लोग ही भ्रष्ट नजर आए? क्या विभाग के पास सभी कर्मचारियों और अधिकारियों की आय का लेखा-जोखा उपलब्ध नहीं है? यहां पर ध्यान देने की बात यह है कि अगर अपवाद स्वरूप चंद लोगों को छोड़ दें तो मलाईदार पदों पर काबिज हर कर्मचारी और अधिकारी अपनी जेबें भरने में लगा हुआ है। साधारण तनख्वाहों वाले कर्मचारी और अधिकारी करोड़ों रुपये की कोठियों में रह रहे हैं, अनेक नामी और बेनामी संपत्ति इकट्ठा कर चुके हैं और लग्जरी गाडि़यों में विचरण कर रहे हैं।
भ्रष्टाचार के मामले में जेल काट रहे यादव सिंह की उच्च राजनैतिक पहुंच थी। यही कारण है कि वे साधारण पद से भर्ती होने के बाद प्रोन्नत की सीढ़ी चढ़ते रहे। जितनी तूती उनकी उत्तर प्रदेश में बहुजन समाजवादी पार्टी के कार्यकाल में बोलती थी, वैसा ही दबदबा उनका समाजवादी पार्टी की सरकार के कार्यकाल में भी बना रहा। यही नहीं, सपा के कार्यकाल के दौरान 2012 में उनका निलंबन, फिर कुछ अरसे बाद उनकी बहाली और तीनों-नोएडा, ग्रेटर नोएडा और यमुना प्राधिकरण के मुख्य अभियंता के पद पर उनका काबिज होना किसी करिश्मा से कम नहीं था।
सर्वाधिक रोचक यह है कि नोएडा, ग्रेटर नोएडा और यमुना प्राधिकरणों में नियुक्ति या प्रतिनियुक्ति पर आने वाले ज्यादातर अधिकारी और कर्मचारी अन्यत्र कहीं जाना नहीं चाहते। अवैध कमाई का खून उनके मुंह लग जाता है, इसलिए वे अपने कार्यकाल का शेष समय यहीं गुजारना चाहते हैं। उत्तर प्रदेश सरकार ने तीनों प्राधिकरणों को स्वायक्तशासी बोर्डों का दर्जा दिया है। इसके चलते यहां पर जनप्रतिनिधियों की भी ज्यादा दाल यहां नहीं गल पाती। इसी की आड़ में यहां के अधिकारी और कर्मचारी मनमानी करते हैं। ऐसे भ्रष्ट कर्मचारियों और अधिकारियों को राजनेताओं ने भी अपने निहितार्थों की पूर्ति के लिए संरक्षण प्रदान कर रखा है। यही कारण है कि ऐसे लोगों की काली करतूतों पर पर्दा पड़ा रहता है।
उक्त प्राधिकरणों में सर्वाधिक बुरा हाल सूचना के अधिकार (आरटीआई) का है। भ्रष्टाचार, अधिकारियों और कर्मचारियों के निकम्मेपन की सैकड़ों आरटीआई प्राधिकरणों में धूल फांक रही हैं। जिन चंद आरटीआई का जवाब दिया जाता है, उसमें आधे-अधूरे जवाब दिए जाते हैं, कई आवेदनों का लंबे अरसे तक जवाब ही नहीं दिया जाता। अगर कोई आरटीआई कार्यकर्ता लगातार आवेदन दाखिल करता है तो उसे धमकी दी जाती है अथवा तरह-तरह से परेशान किया जाता है। लोकतांत्रिक व्यवस्था में आरटीआई की पूरे देश में इससे ज्यादा दुर्दशा कहीं भी देखने को नहीं मिलेगी।
अगर सरकार उक्त तीनों प्राधिकरणों को भ्रष्टाचार से मुक्त कराने के लिए सचमुच गंभीर है तो उसे भ्रष्ट कर्मचारियों की सूची अविलंब तैयार कर उनकी उच्च स्तरीय जांच करानी चाहिए। दोषियों के खिलाफ सख्त कार्रवाई कर प्राधिकरण से बाहर का रास्ता दिखाते हुए कड़ी सजा दिलानी चाहिए। इसके अलावा प्राधिकरण में आरटीआई कानून को ईमानदारी और पारदर्शिता के साथ लागू किया जाए ताकि लोग प्राधिकरणों में होनी वाली अनियमितताओं के खिलाफ निर्भीकता के साथ समुचित और सामयिक आवाज उठा सकें।
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं।)