जेपी हॉस्पिटल में मरीज ने कराया दूसरी बार लिवर प्रत्यारोपण, बची जान

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GREATER NOIDA TENNEWS REPORTER LOKESH GOSWAMI  

एन.सी.आर. में अग्रणी एवं उत्तर भारत में प्रमुख स्थान रखने वाले, नोएडा सेक्टर 128 स्थित मल्टी सुपर स्पेशियलिटी चिकित्सा संस्थान जेपी हॉस्पिटल के लिवर ट्रांसप्लांट विभाग के चिकित्सकों की टीम ने एक बार फिर बहुत ही जटिल लिवर प्रत्यारोपण सर्जरी द्वारा एक मरीज की जान बचाने में सफलता पाई। 47 वर्षीय रोगी धीनेंद्र सिंह धाम, बिजनौर का रहने वाला है जिसे दूसरी बार लिवर फैल्योर के कारण लिवर प्रत्यारोपण कराना पड़ा। शराब पीने के कारण पहली बार इसका साल 2008 में लिवर खराब हुआ और तब छोटे भाई वीरेंद्र सिंह (38 वर्ष) ने लिवर दान किया था और अब 8 साल बाद बड़ी बहन कुसुम (54 वर्ष) ने लिवर दान कर भाई की जान बचाई। यह सफलता जेपी हॉस्पिटल के लिवर प्रत्यारोपण विभाग के वरिष्ठ सर्जन डॉ. अभिदीप चौधरी एवं उनकी टीम को मिली।मरीज की बीमारी के बारे में विस्तार से बताते हुए लिवर ट्रांसप्लांट सर्जन डॉ. अभिदीप चौधरी ने कहा, “शराब पीने के कारण साल 2008 में मरीज का लिवर खराब हो गया था और उस समय इसने अपना लिवर प्रत्यारोपण करवाया था। सर्जरी के बाद शराब छोड़ने के कारण मरीज का जीवन सामान्य हो गया था, लेकिन साल 2012 में रोगी ने दोबारा शराब का सेवन करना शुरू कर दिया, जिस कारण फिर से उसका लिवर खराब हो गया, साथ ही उसे पीलिया भी हो गया। रोगी के पेट में चारों तरफ पानी भर गया। इस बीमारी के कारण मरीज “लिवर कोमा एवं किडनी फैल्योर” की स्थिति की ओर जा रहा था।”डॉ. अभिदीप चौधरी ने आगे बताया, “एक ही मरीज का दो बार लिवर प्रत्यारोपण सर्जरी करना बहुत ही जटिल प्रोसीजर होता है क्योंकि मरीज ने पहले भी एक बार सर्जरी कराई होती है। ऐसी स्थिति में दोबारा की जाने वाली सर्जरी को सफल बनाना बहुत बड़ी चुनौती होती है। सर्जरी में रक्त के प्रवाह को सुचारू रूप से बनाए रखने के लिए रक्त वाहिकाओं को सही तरीके से जोड़ना बहुत कठिन काम होता है। दोबारा लिवर प्रत्यारोपण सर्जरी में सबसे अधिक परेशानी यह होती है कि पूर्व में जिन रक्त वाहिकाओं का इस्तेमाल किया गया है उनमें से कुछ को बदलकर कृत्रिम रक्त वाहिकाओं को लगाना पड़ता है। इसके साथ ही दूसरी बार की सर्जरी में अधिक रक्तस्राव का जोखिम भी बढ़ जाता है। मरीज शारीरिक एवं मानसिक रूप से भी कमजोर होता है।”
वरिष्ठ सर्जन डॉ. चौधरी ने बताया, “पुनः प्रत्यारोपण दो स्थिति में की जाती है। पहला जब हाल ही में किया गया प्रत्यारोपण सफल नहीं हुआ हो या प्रत्यारोपण के बाद कुछ जटिलताएं उत्पन्न हुई हों। दूसरी बार यह प्रोसीजर तब होता है जब कुछ सालों बाद खान-पान, दवाई का सही से सेवन नहीं करने या शराब पीने के कारण लिवर खराब हो गया हो। इस मरीज के साथ ऐसा ही हुआ है।”एक कोरियाई मेडिकल पत्रिका के अनुसार, “पुनः लिवर प्रत्यारोपण सर्जरी के दौरान चिकित्सकों को नसों के जुड़ाव, जटिल संरचनाओं एवं नव विकसित नसों के कारण बहुत तरह की परेशानियों का सामना करना पड़ता है। विश्व भर में ऐसे कुछ ही मामले सामने आए हैं जब एक लिवर प्राप्तकर्ता ने कई वर्षों के अंतराल पर दो बार अपना लिवर प्रत्यारोपण कराया हो और दोनों बार जीवित दाता द्वारा लिवर दान लिया गया हो।”सर्जरी के सफल होने के बाद धीनेंद्र सिंह धाम ने भी अपना अनुभव बताया, “पहली बार लिवर प्रत्यारोपण के बाद मैं सामान्य जीवन जी रहा था लेकिन शराब पीने की अपनी लत से मैं अधिक दिनों तक छुटकारा नहीं पा सका। इसका परिणाम यह हुआ कि मेरा लिवर दोबारा खराब हो गया। सच कहूं तो जब दूसरी बार मेरा लिवर खराब हुआ तो मैं बुरी तरह डर गया था कि अब और अधिक दिनों तक शायद जीवित नहीं रह पाउंगा, लेकिन जब मेरी मुलाकात जेपी हॉस्पिटल के डॉ. अभिदीप चौधरी से हुई तो उन्होंने भरोसा दिलाया कि दोबारा लिवर प्रत्यारोपण कराकर मैं फिर से सामान्य जीवन जी सकता हूं। इसके बाद भी मैं शुरुआत में बहुत चिंतित था, लेकिन सर्जरी कराने के अलावा मेरे पास दूसरा कोई विकल्प भी नहीं था। आखिरकार सर्जरी हुई और सफल हुई। मैं अब पूरी तरह स्वस्थ हूं।”जेपी हॉस्पिटल के बारे में-नोएडा स्थित जेपी हॉस्पिटल 18 एकड़ क्षेत्रफल में फैला हुआ है। हॉस्पिटल की योजना और डिज़ाइन 1200 बेड्स से युक्त टर्शरी केयर स्पेशलिटी सुविधा के रूप में तैयार की गई है। प्रथम चरण में 525 बेड्स के साथ इसका सफल संचालन किया जा रहा है।
जेपी हॉस्पिटल अत्याधुनिक स्वास्थ्य सेवाओं, नैदानिक सेवाओं एवं आधुनिक तकनीकों से युक्त सुपर स्पेशलिटी हॉस्पिटल है, जो आम जनता की आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए विशेषज्ञ सेवाएं प्रदान करता है। हॉस्पिटल की योजना, डिज़ाइन एवं निर्माण कार्य इसे भारत के कुछ ही गोल्ड लीड प्रमाणित हॉस्पिटल इमारतों में शामिल करते हैं।
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