Protest dharna at Jantar Mantar by NISA in solidarity with unaided budget private schools associations.

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Video 1 [youtube https://www.youtube.com/watch?v=lLN_-QcaHZg&w=420&h=315]

Video 2 [youtube https://www.youtube.com/watch?v=qcwLopyDbp0&w=420&h=315]

नई दिल्ली। केंद्र व राज्य सरकारों पर सरकारी और निजी स्कूलों के बीच भेदभाव करने और गैर सहायता प्राप्त स्कूलों को बंद करने की साजिश का आरोप लगाते हुए देशभर के प्राइवेट अनएडेड स्कूल संगठनों ने बुधवार को जंतर मंतर पर धरना दिया और प्रदर्शन किया। यह प्रदर्शन, प्राइवेट अनएडेट स्कूलों के अखिल भारतीय संगठन नेशनल इंडिपेंडेंट स्कूल्स अलाएंस (नीसा) के नेतृत्व में किया गया। धरने को संबोधित करते हुए नीसा के राष्ट्रीय अध्यक्ष कुलभूषण शर्मा ने कहा कि निशुल्क एवं अनिवार्य शिक्षा प्रदान करने के उद्देश्य से लागू किया गया शिक्षा का अधिकार कानून आज 3 करोड़ से अधिक गरीब छात्रों की शिक्षा छीनने का कारण बन गया है। आरटीई में व्याप्त विसंगतियों और अव्यवहारिक नियमों को दूर करने की बजाए उन्हें जबरदस्ती लागू कराने की कोशिश की जा रही है जिससे देशभर के 1 लाख से अधिक स्कूलों पर तालाबंदी का खतरा उत्पन्न हो गया है। इसके साथ ही इनमें पढ़ाने वाले कम से कम 5 लाख अध्यापकों और यहां पढ़ने वाले 3 करोड़ से अधिक बच्चों का भविष्य अंधकार मय हो गया है।

आरटीई कानून शिक्षा गुणवत्ता की बजाए निवेश बढ़ाने पर ही ज्यादा केंद्रीत हो गया है। सरकारी स्कूलों के पांचवी और आठवीं में पढ़ने वाले बच्चे पहली और दूसरी कक्षा की किताबों को पढ़ने में भी असमर्थ हैं। जबकि अनएडेड स्कूलों में कम खर्च के बावजूद शिक्षा की गुणवत्ता काफी अच्छी है। यही कारण है कि सरकारी स्कूलों में शिक्षा निशुल्क होने के बावजूद गरीब से गरीब व्यक्ति भी पैसा खर्च कर अपने बच्चे को निजी स्कूलों में भेजता है। फिर भी सरकारें कभी बुनियादी ढांचों के नामपर तो कभी अध्यापकों के वेतन आदि के नाम पर इन स्कूलों को बंद करने की कोशिश में जुटी हैं। देश में स्कूल खोलने के लिए कहां से कितनी अनुमतियां लेनी है यह स्वयं सरकारी विभागों को भी नहीं पता लेकिन स्कूल खोलने के दौरान विभागों द्वारा अड़ंगा अटकाया जाता है और अंततः अलग अलग जगहों से 14 से 32 अनुमतियों की जरूरत पड़ती है। प्रधानमंत्री व्यवसाय स्थापित करने की सहूलियत के लिए सिंगल विंडो सिस्टम लांच करते हैं और स्टार्टअप्स को टैक्स में छूट सहित अन्य सुविधाएं भी दी जाती हैं। किंतु नए स्कूल खोलने वालों को परेशान किया जाता है और तमाम तरह के टैक्स वसूले जाते हैं। राष्ट्रीय उपाध्यक्ष राजेश मल्होत्रा ने कहा कि आरटीई के नामपर सरकारी और निजी स्कूलों के बीच भेदभाव किया जा रहा है। आरटीई में तमाम ऐसे नियम हैं जो सरकारी स्कूलों पर लागू नहीं होते लेकिन निजी स्कूलों पर लागू होते हैं। उन्होंने कहा कि सरकारी स्कूलों में पैरा टीचर्स और वालंटियर टीचर्स रखने का प्रावधान है लेकिन निजी स्कूलों को इसकी छूट नहीं है। राजेश मल्होत्रा ने बताया कि आर्थिक रूप से गरीब छात्रों के लिए आरक्षित 25 प्रतिशत सीटों के ऐवज में मिलने वाला पैसा कई कई सालों तक नहीं मिलता जिससे छोटे स्कूल संचालकों को और बच्चों की फीस बढ़ाने पर मजबूर होना पड़ रहा है। इस मौके पर यूपी, बिहार, झारखंड, एमपी, हरियाणा, दिल्ली, तमिलनाडू, उत्तराखंड, महाराष्ट्र, कर्नाटक सहित 20 राज्यों से आए स्कूल संगठनों और प्रतिनिधियों ने अपने अपने क्षेत्र की समस्याओं से अवगत कराया। धरने के दौरान 5 हजार से अधिक स्कूल संचालकों ने हिस्सा लिया। समस्याओं का समाधान न होने की दशा में देशव्यापी हड़ताल और प्रदर्शन करने की चेतावनी दी गई।

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