क़ानून और कमीशन में फंसा ‘स्कूल चलो अभियान’

Lokesh Goswami Ten News

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लखनऊ | स्कूल चलो अभियान के हल्ले के बीच योगी सरकार ने निजी स्कूलों पर मनमानी फीस वसूलने पर पाबंदी लगाने के लिए ‘शुल्क निर्धारण अध्यादेश के प्रारूप को मंजूरी दे दी , यह इसी सत्र से लागू होगा | इसके अनुसार निजी स्कूल न तो एकमुश्त व मनमानी फीस वसूल कर सकेंगे और न ही 5 साल से पहले यूनिफॉर्म बदल सकेंगे | इस अध्यादेश के दायरे में 20 हजार से अधिक फीस लेने वाले सभी स्कूल आयेंगे | कानून तो बन गया लेकिन इसका पालन कैसे होगा ? जब इंडिपेंडेंट स्कूल्स फेडरेशन ऑफ़ इण्डिया के अध्यक्ष मधुसूदन दीक्षित कहते हैं कि ‘हमारी सरकार से कुछ मांगें हैं | आरटीई में पैसों का सही तरीके से भुगतान किया जाय | हम सरकार के साथ हैं ,लेकिन अगर हमारे हितों का हनन होगा तो विरोध करेंगे |’
गौरतलब है कि नए सत्र में आरटीई के दाखिलों में निजी स्कूल सरकार की सुनने को तैयार नहीं हैं | शिक्षा के अधिकार से निजी स्कूलों ने किनारा कर रक्खा है , 2016 से निजी स्कूलों में कितने गरीब बच्चों के दाखिले हुए देखा जा सकता है ? लखनऊ के सिटी मोंटेसरी स्कूल ने तो एक भी गरीब बच्चे का दाखिला नहीं लिया ? इस सत्र में अकेले लखनऊ में आरटीई की दाखिले सूची में 3904 बच्चों के नाम हैं , ये बच्चे आवंटित स्कूलों से भगाए जा रहे हैं | जबकि मुख्यमंत्री,उप-मुख्यमंत्री,बेसिक शिक्षा अधिकारी गरीब बच्चों का दाखिला न लेने वाले स्कूलों के खिलाफ सख्त कारवाई करने का राग अलाप रहे हैं | ऐसे हालात में निजी स्कूलों से नये अध्यादेश का पालन कौन करवाएगा ? वह भी तब जब अभी शिकायतों की सुनवाई के लिए जोनल शुल्क विनियामक समिति बनाई जानी है | उससे भी बड़ी बात यह है कि जब नया सत्र शुरू होकर अधिकांश निजी स्कूलों में मोटी-मोटी फीस वसूली जा चुकी है और धड़ल्ले से किताबें,कापी,ड्रेस से लेकर जूते-मोज़े,बुक कवर तक स्कूलों में ही बेचे जा रहे हैं | यह क़ानून अगर लाना ही था तो विधानसभा सत्र के दौरान क्यों नहीं लाया गया ? जब उच्च न्यायालय ने सरकार से जनहित याचिका पर फीस बढाने पर जवाब माँगा तभी अभिभावकों की चिंता क्यों हुई ? यहां बताना लाजिमी होगा कि अधिकांश निजी स्कूलों के मालिक खुद विधायक,सांसद,मंत्री हैं या उनके रिश्तेदार , पार्टी कार्यकर्ता या बड़े व्यापारी,उद्योगपती |
दरअसल शिक्षा व्यवस्था पर नजर घुमाये तो खामियां ही खामियां नजर आती हैं। बिगड़ा हुआ तंत्र शिक्षा व्यवस्था को नकारा बनाए हुए है। कहीं अशिक्षित शिक्षक हैं, कहीं शिक्षकों का अमानवीय व्यवहार दिखाई देता है,कहीं डोनेशन का विकराल रूप देखने में आता है, स्कूलों का बच्चों के प्रति लापरवाही का होना… तो सरकारी स्कूलों में बच्चों को दी जाने वाली हर सामग्री कमीशन के हाथों दबी निचले दर्जे की होती है मय शिक्षक तक के , इसी कमीशनखोरी के चलते ललितपुर के समरखेड़ा ग्राम के प्राथमिक विद्यालय में तैनात प्रधानाध्यापक ओम प्रकाश पटैरिया ने पिछले हफ्ते स्कूल में ब्लैक बोर्ड सोसाइड नोट लिख कर आत्मदाह कर लिया | अभी तक उत्तर प्रदेश में अंगरेजी माध्यम से पढ़ाई कराने वाले सरकारी मॉडल के स्कूलों का अता-पता नहीं है ? ऐसी तमाम बातें हैं जो शिक्षा व्यवस्था पर एक प्रश्न चिन्ह हैं ?
शिक्षक जो पढ़ाने से ज्यादा व्यापार में रूचि रखते हैं.. छात्रों के भविष्य के साथ खिलवाड़ करते हैं और इनका साथ इस धंधे में जुड़े बिचौलिये देते हैं। बाकायदा पास कराने के ठेके लिये जाते हैं। अभिभावक भी कम दोषी नहीं है जो सिर्फ पास होने के लिए या सिर्फ डिग्री के लिए बच्चों का भविष्य दांव पर लगा देते हैं। पेपर का लीक होना ये दर्शाता है कि हमारी शिक्षा व्यवस्था कैसी है।

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