जहरीला धुआं सरकार की गले की फांस.

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अनिल निगम 

अक्‍टूबर का महीना ज्‍यों-ज्‍यों करीब आता जा रहा है, राष्‍ट्रीय राजधानी के पड़ोसी राज्‍यों पंजाब, हरियाणा, राजस्‍थान और पश्चिमी उत्‍तर प्रदेश में धान की कटाई के बाद पराली जलाने और इससे दिल्‍ली की हवा के जहरीला होने का खतरा मंडराने लगा है । इस बात को लेकर केंद्र सरकार भी खासा चिंतित दिखाई दे रही है । केंद्र सरकार की चिंता का प्रमुख कारण अक्‍टूबर के प्रथम सप्‍ताह में दिल्‍ली में होने वाला अंडर-17 फीफा वर्ल्‍ड कप फुटबाल मैच है । यही कारण है कि उसने सभी राज्‍यों को पत्र भेजकर खेतों में पराली न जलाने के सख्‍त निर्देश दिए हैं । केंद्र ने इस संबंध में किसानों को वैकल्पिक सुविधा उपलब्‍ध कराने को भी कहा है। साथ ही उसने राज्‍यों से हर सप्‍ताह पराली संबंधी रिपोर्ट भी केंद्र सरकार को भेजने के भी निर्देश दिए हैं ।

खरीफ फसल के बाद पंजाब और हरियाणा राज्‍यों में रवि की फसल की बुआई के पहले जिस तरह से किसान पराली को जलाते हैं, उसका सर्वाधिक असर राष्‍ट्रीय राजधानी दिल्‍ली के पर्यावरण पर होता है । यहां की हवा इतनी अधिक दूषित हो जाती है कि यहां के लोगों को सांस लेना भी दूभर हो जाता है । हम सबको यह बात बखूबी याद है कि पिछले वर्ष दिल्‍ली में दूषित पर्यावरण से निबटने के लिए दिल्‍ली सरकार को सड़कों पर यातायात को नियंत्रित करने के लिए दो फेज में ऑड-इवेन का फार्मूला लागू करना पड़ा था । इसका असर दिल्‍ली के प्रदूषण स्‍तर को कम करने में तो उतना अधिक नहीं पड़ा था, पर दिल्‍ली में यातायात जाम को कम करने में मदद अवश्‍य मिली थी ।

केंद्र सरकार ने पंजाब और हरियाणा राज्‍यों को पराली जलाने की घटनाओं को रोकने के निर्देश दिए हैं । यह सरकार की एक अच्‍छी पहल है लेकिन सवाल यह है कि क्‍या सरकार के निर्देश मात्र से यह समस्‍या हल हो जाएगी ? वास्‍तविकता तो यह है कि इन खेतों में पराली जलाना पहले से गैर कानूनी है, बावजूद इसके यहां के किसान चोरी छिपे पराली जला देते हैं । इससे प्रदू‍षण की समस्‍या बढ़ जाती है । साथ ही जिस भूमि पर वे पराली जलाते हैं, उसकी उपजाऊ गुणवत्‍ता भी प्रभावित होती है ।

प्रश्‍न यह है कि किसान ऐसा करते ही क्‍यों हैं ? दरअसल, पश्चिमी उत्‍तर प्रदेश, पंजाब और हरियाणा राज्‍यों में अक्‍टूबर महीने में धान की खेती तैयार हो जाती है। इसके तुरंत बाद उनको गेहूं की बुआाई करने होती है । किसान फसल की कटाई कंबाइन हार्वेस्‍टर से करते हैं । ऐसे में धान को निकाल खड़ी फसल से निकाल लिया जाता है, लेकिन पराली खेतों में ही खड़ी रहती है । अगर किसान इस पराली को मजदूरों से कटवाए तो यह उनके लिए महंगा सौदा साबित होता है । चूंकि उनको खेतों में तुरंत दूसरी फसल गेहूं की बुआई करनी होती है, इसलिए वे खड़ी पराली में आग लगाकर खेतों में ही जला देते हैं । कृषि विज्ञानियों का भी मानना है कि खेतों पर पराली जलाने से खेतों की उर्वरता पर प्रतिकूल असर पड़ता है । लेकिन किसान ऐसा इसलिए करते हैं क्‍योंकि सरकार इसका विकल्‍प अब तक नहीं खोज पाई और न किसानों को इसके लिए प्रोत्‍साहित कर पाई कि वे ऐसा न करें । यक्ष प्रश्‍न यह है कि क्‍या सरकार पराली को खेतों में जलाने से रोक पाएगी और दिल्‍ली वासियों को इस बार जहरीले धुएं से राहत मिल सकेगी ?

यह ऐसी गूढ़ समस्‍या है जिसका समाधान इतना सहज नहीं है । अगर केंद्र सरकार राज्‍य सरकारों को महज निर्देश देकर अपने कर्तव्‍यों की इतिश्री करती रही तो नतीजा फिर ढाक के तीन पात रहने वाला है । आवश्‍यकता इस बात की है कि केंद्र सरकार राज्‍य सरकारों और किसानों के साथ मिलकर इस समस्‍या का समाधान भी खोजे । सर्वप्रथम, पराली को खेतों को उठवाने और इससे कंपोस्‍ट खाद बनाने अथवा बिजली बनाने जैसे प्रोजेक्‍ट लगाने के प्रस्‍तावों को मंजूरी प्रदान करने का काम करे । और जो किसान इस दिशा में काम करें या करने के इच्‍छुक हों, उन्‍हें सब्सिडी प्रदान करे और उनकी फसल की अच्‍छी कीमत भी सुनिश्चित करे । अगर किसान इस बात के लिए आश्‍वस्‍त रहेगा कि फसल उत्‍पादन की लागत अधिक होने पर उसे अपनी फसल का उचित मूल्‍य मिल जाएगा तो वह शार्टकट अपनाने से अवश्‍य परहेज करेगा और सुरसा की तरह मुंह खोले खड़ी इस समस्‍या से करोड़ों लोगों को निजात मिल जाएगी ।

 

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