जीवन से खिलवाड़ करने वालों को कठोरतम दंड मिले
अनिल निगम
किसी भी देश की कार्यपालिका और इसी का अंग माने जाने वाली नौकरशाही से यह अपेक्षा की जाती है कि वह देश में कानून का शासन लागू करेगी और समाज को स्वस्थ रखने का हर संभव प्रयास करेगी। लेकिन जब कार्यपालिका में बैठे लोग ही जनता की रक्षा करने की जगह उसका भक्षण करने लगे तो इसका मतलब है कि उस देश की जनता की सुरक्षा खतरे में है। महाराष्ट्र, तेलंगाना और अब उत्तर प्रदेश में पोलियो की दवा में टाइप-2 विषाणु मिलने के बाद यह बात इस दावे के साथ कही जा सकती है कि जिम्मेदारी की कुर्सियों में विराजमान अधिकारी और कर्मचारी अपने कर्तव्यों से विमुख हो चुके हैं। यही कारण है कि जिस विषाणु (टाइप 2) के पूरे विश्व से समाप्त किए जाने की घोषणा की जा चुकी है। वही वायरस पोलियो की खुराक में मिलाकर अबोध बच्चों को पिला दी गई। यह गंभीर लापरवाही है जिसके लिए जिम्मेदार लोगों की पहचान कर उनको दंडित किया जाना अति आवश्यक है।
स्मरणीय है कि भारत सहित संपूर्ण विश्व में टाइप 2 वायरस खत्म हो चुका है, लेकिन इसके पहले सितंबर महीने में महाराष्ट्र में और अब उत्तर प्रदेश और तेलंगाना में गाजियाबाद में कंपनी बॉयोमेड द्वारा बनाई गई पोलियो की पिलाई जाने वाली दवा में यह विषाणु मिलने के पश्चात दवाएं बनाने और उसकी समुचित परीक्षण प्रक्रिया पर ही सवालिया निशान लग गया है। उत्तर प्रदेश में इस वैक्सीन की 50 हजार वॉयल भेजी गई थीं। 47800 वॉयल के जरिये 8.12 लाख से अधिक बच्चों में यह खतरनाक वायरस प्रवेश कर गया। हालांकि प्रदेश की परिवार कल्याण मंत्री रीता बहुगुणा ने दावा किया कि 7.31 लाख बच्चों को एंटीडॉट लगा दिया गया है और अन्य बच्चों को लगाया जा रहा है।
स्वास्थ्य मंत्रालय ने दवाई की कुछ खेप में पोलियो टाइप 2 विषाणु के अंश मिलने के बाद जांच के आदेश दिए हैं। कंपनी के प्रबंध निदेशक को गिरफ्तार कर लिया गया है। केंद्रीय दवा नियामक ने इस मामले में एफआईआर दर्ज कर ली है। भारत के ड्रग कंट्रोलर जनरल ने कंपनी से अगले आदेश तक दवा का उत्पादन, बिक्री और विपणन रोकने को कहा है। गाजियाबाद की बायोमेड कंपनी की दवा में पी-2 वायरस पाए जाने के बाद यह कार्रवाई की गई है। इसी तरह से पिछले महीने सितंबर में महाराष्ट्र में पोलियो के ओरल वैक्सीन में टाइप -2 पोलियो वायरस के मिलने की खबर आने से अफरा-तफरी मच गई थी। इसे लेकर महाराष्ट्र और उत्तर प्रदेश के लोग खासा परेशान हैं, क्योंकि जिस बैच के वैक्सीन में वायरस मिलने की पुष्टि हुई है, उसे इन दो राज्यों को भेजा गया था। हालांकि महाराष्ट्र सरकार ने बायोमेड द्वारा तैयार सभी वैक्सीन की खुराक को बच्चों को देने से 11 सितंबर से ही रोक लगा दी थी।
यहां अहम सवाल यह है कि सरकार की उक्त कार्रवाई पर्याप्त है? क्या देश की जनता उक्त कार्रवाई से संतुष्ट है। शायद बिलकुल नहीं और देश की जनता को इस कार्रवाई से संतुष्ट होना भी नहीं चाहिए क्योंकि यह नौकरशाही की न केवल लापरवाही बल्कि प्रशासकीय व्यवस्था की बहुत बड़ी नाकामी भी है।
भारत सहित संपूर्ण विश्व को 25 अप्रैल, 2016 को पोलियो मुक्त घोषित किया जा चुका है। हमारे देश के कुछ संवेदनशील इलाकों में दो साल तक के उम्र के बच्चों को इनएक्टिव वैक्सीन दी जा रही थी ताकि उनको इस खतरे से पूरी तरह से दूर रखा जा सके। दिलचस्प पहलू यह है कि सरकार ने आदेश दिए थे कि 25 अप्रैल 2016 तक पोलियो टाइप 2 वायरस को पूरी तरह से नष्ट कर दिया जाए। यही वजह है कि वैश्विक स्तर पर भी इस वायरस का निर्माण बंद कर दिया गया था।
सर्वाधिक महत्वपूर्ण सवाल है कि सरकार के स्पष्ट निर्देश दिए जाने के बावजूद भारत में इसे नष्ट क्यों नहीं किया गया? इसके लिए एंटी वॉयरस बनाने वाली गाजियाबाद की कंपनी को ही कटघरे क्यों खड़ा किया जाए? जांच एजेंसी और सरकार को कई सवालों की तहकीकात करनी चाहिए कि कंपनी द्वारा निर्मित दवा को इस्तेमाल करने के पहले उसकी जांच किस प्रयोगशाला में की गई? दवा को इस्तेमाल करने के लिए किन अधिकारियों ने अपनी मंजूरी दी? यही नहीं, जिन स्वस्थ बच्चों को यह दवा पिलाकर बीमारी के संक्रमण के मुहाने पर खड़ा कर दिया गया है, उन अबोध बच्चों के स्वास्थ्य की सुरक्षा की अब क्या योजना है? इन विभिन्न मुद्दों की जांच-पड़ताल बहुत ही गंभीरता से की जानी चाहिए। किसी को भी लोगों के जीवन से खिलवाड़ करने की अनुमति नहीं दी जानी चाहिए। अंतत: मैं यह कहना चाहूंगा कि यह ऐसा अक्षम्य अपराध है जिसके लिए इस धांधली की श्रृंखला में शामिल हर व्यक्ति को कठोरतम सजा मिलनी चाहिए ताकि कोई भी व्यक्ति भविष्य में समाज को कमजोर करने की हिम्मत भी न जुटा सके।
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं।)