दिल्ली में हर साल गायब होते हैं बड़ी संख्या में बच्चे, एपीआर और क्राई ने किया राज्य स्तरीय परामर्श का आयोजन
Rohit Sharma (Photo/Video) By Lokesh Goswami Ten News Delhi :
देश की राजधानी में आज भी सबसे ज़्यादा बच्चे लापता हो रहे हैं, हाल ही में आरटीआई के जवाब में दिल्ली पुलिस द्वारा दी गई प्रतिक्रिया में यह तथ्य सामने आया है। आंकड़ों की बात करें तो 2017 में दिल्ली में रोज़ाना औसतन 18 बच्चे लापता हुए, इस तरह पूरे साल में कुल 6450 बच्चे (3915 लड़कियां और 2535 लड़के) लापता हुए। ऐसे में दिल्ली उन शहरों की सूची में सबसे उपर है जहां हर साल बड़ी संख्या में बच्चे लापता हो रहे हैं।
इस समस्या के जल्द से जल्द समाधान की ज़रूरत को ध्यान में रखते हुए अलायन्स फाॅर पीपल्स राईट (एपीआर) ने चाइल्ड राईट्स एण्ड यू (क्राई) के सहयोग से आज दिल्ली में लापता बच्चों पर राज्य स्तरीय परामर्श का आयोजन किया। दिल्ली में लापता बच्चों से जुड़ी इस समस्या की गंभीरता पर रोशनी डालना कार्यक्रम का मुख्य उद्देश्य था।
चर्चा के दौरान नीतियों एवं प्रोग्रामों, इनके कार्यान्वयन और इनमें मौजूद खामियों तथा समुदायों में निवारक प्रणाली को सशक्त बनाने के तरीकों पर रोशनी डाली गई। सरकारी प्रतिनिधियों एवं अन्य हितधारकों ने इस विषय पर विचार-विमर्श किया कि बच्चों का लापता होना और बाल-तस्करी किस तरह आपस में जुड़े हैं।
इस राज्य स्तरीय परामर्श का पहला सत समुदाय आधारित निगरानी समूह की महिलाओं के साथ था। साथ ही सशक्त निवारक प्रणाली को सुनिश्चित करने के लिए एपीआर और क्राई ने एक कम्युनिटी विजिलेन्स के रूप में एक माॅडल सिस्टम पेश किया। इस माॅडल के माध्यम से बताया गया कि कैसे हर समुदाय को अपने क्षेत्र में बच्चों पर निगरानी रखने के लिए सक्षम और सशक्त बनाया ज सकता है, ताकि बच्चों को नुकसान पहुंचाने वाले किसी भी खतरे को समय पर पहचाना जा सके और बच्चों को इससे सुरक्षित रखा जा सके।
चर्चा के दूसरे सत्र की अध्यक्षता क्राई की रीजनल डायरेक्टर (नोर्थ) सोहा मोइत्रा ने की। इस सत्र में हिस्सा लेने वाले पैनलिस्ट्स में संजीव जैन, सदस्य सचिव, दिल्ली राज्य कानूनी सेवा प्राधिकरण; डाॅ जाॅय तिर्की, पुलिस उपायुक्त, क्राइम ब्रांच, मिस चेष्टा, असिस्टेन्ट डायरेक्टर, महिला एवं बाल विकास मंत्रालय, दिल्ली के एनटीसी की सरकर; मिस समराह मिर्ज़ा, सदस्य, डीसीपीसीआर शमिल थे।
क्राई की रीजनल डायरेक्टर सोहा मोइत्रा ने कहा की लापता बच्चों के संदर्भ में पुलिस की भूमिका सबसे महत्वपूर्ण है, समेकित बाल सुरक्षा योजना (आईसीपीएस) के अनुसार इस समस्या के समाधान के लिए सामुदायिक स्तर पर निवारक प्रणाली अपनाने की आवश्यकता है।
साथ ही उन्होंने कहा की बच्चों को लापता होने से बचाने केे लिए सिस्टम और सोसाइटी दोनों को मिलकर काम करना होगा, क्योंकि बच्चों के लिए सुरक्षा निश्चित करने की ज़िम्मेदारी राज्य और समाज दोनों की है। मामले की गंभीरता को देखते हुए राज्यों के भीतर एवं राज्यों के बीच आपसी तालमेल बनाना, बचाव एवं पुनर्वास प्रणाली स्थापित करना तथा हर स्तर पर प्रशिक्षण कर्मचारियों एवं उपयुक्त संसाधनों में निवेश करना समय की मांग है।
एपीआर की स्टेट कन्वेनर रीना बैनर्जी ने कहा की ‘बच्चों के चारों ओर सुरक्षा का मजबूत जाल बनाकर काफी हद तक उनकी सुरक्षा को सुनिश्चित किया जा सकता है। यह बात इस तथ्य से स्पष्ट हो जाती है कि पिछले दो सालों में उन समुदायों में बच्चों के लापता होने की कोई घटना नहीं घटी है, जहां सशक्त निगरानी समुह विजिलेन्स ग्रुप बनाए गए हैं; ऐसे भी कुछ उदाहरण हैं, जहां बच्चों के लापता होने के बाद विजिलेन्स ग्रुप ने तुरंत कार्रवाई की और उन्हें समय रहते बचा लिया गया।’
वही इस संगोष्ठी में एक रिपोर्ट पेश की गयी जिसमे लापता बच्चों को खोजने में भी दिल्ली के हालात सबसे बुरे हैं। दिल्ली में लापता होने वाले 10 में से 6 बच्चे कभी नहीं मिल पाते, जबकि यहां लापता होने वाले बच्चों की संख्या राष्ट्रीय औसत से अधिक है। रिपोर्ट लिंग एवं उम्र के अनुसार बच्चों के लापता होने या तस्करी के जाल में फंसने की संभावनाओं पर भी रोशनी डालती है। रिपोर्ट के अनुसार 12-18 आयुवर्ग में सबसे ज़्यादा बच्चे लापता होते हैं; इसी तरह इसी आयुवर्ग में लड़कों की तुलना में लड़कियों के लापता होने की संभावना अधिक होती है। बच्चों को बाल मजदूरी, काॅमर्शियल सेक्स वर्क, ज़बरदस्ती शादी करने, घरेलू काम करवाने या भीख मंगवाने केे लिए लापता किया जाता है।
वही दूसरी तरफ राष्ट्रीय मानव अधिकार आयोग की सदस्य ज्योतिका कतरा का कहना है की देश के अंदर बच्चों के लापता होने की संख्या अब धीरे – धीरे घट रही है | पहले तो देश के अंदर इस संख्या का काफी इजाफा था | जिसको लेकर कई एनजीओ ने काम किया ,जिसके कारण इस संख्या में गिरावट आये है | साथ ही उनका कहना है की रिपोर्ट के अनुसार 12-18 आयुवर्ग में सबसे ज़्यादा बच्चे लापता होते हैं; इसी तरह इसी आयुवर्ग में लड़कों की तुलना में लड़कियों के लापता होने की संभावना अधिक होती है, क्योकि प्यार के चककर में बच्चे घर से भाग जाते है | वही दूसरी तरफ बच्चों को बाल मजदूरी, काॅमर्शियल सेक्स वर्क, ज़बरदस्ती शादी करने, घरेलू काम करवाने या भीख मंगवाने केे लिए लापता किया जाता है, जिसको लेकर संख्या में इजाफा होने लगा | वही पुलिस के द्वारा मिसिंग बच्चो को लेकर लगातार अभियान चलाती है , लेकिन सफलता कुछ कम मिलती है | आखिर वजह यह है की जो बच्चे गायब हो जाते है तो कुछ दिनों बाद वो बच्चे अपने परिवार के पास वापस चले जाते है , जिसकी सुचना पुलिस को नहीं मिल पाती है |