भोपाल गैस कांड के बावजूद सबक लेने को तैयार नहीं है सरकार
भोपाल गैस कांड के पीडि़तों के अभी न आंसू सूखे हैं और न ही उनका दर्द कम
हुआ है, वह लगातार कराह रहे हैं। पीड़ित ही क्यूं, उनके साथ देश के
अधिकांश नागरिक उस भयावह घटना को नहीं भूल पाये हैं, इसके बावजूद सरकार,
गेल और फैक्ट्री स्वामी गंभीर नजर नहीं आ रहे हैं। गैस रिसने की छोटी सी
घटना भी कहीं होती है, तो लोगों के दिल दहल जाते हैं। जमशेदपुर स्थित
टाटा के इस्पात कारखाने में हुई ताज़ा घटना से स्थानीय निवासी तो दहशत में
होंगे ही, जहाँ-जहाँ से गैस की लाइन गुजर रही है, वहां रहने वाले लोगों
की भी धडकनें एक बार फिर बढ़ गई हैं।
उत्तर प्रदेश की बात करें, तो सब जगह एक जैसे ही हालात हैं। रुहेलखंड
क्षेत्र में गैस पाइप लाइन की नियमित देखभाल न होने के कारण लाखों लोगों
का जीवन दांव पर लगा नजर आ रहा है। जनपद शाहजहांपुर के थाना जैतीपुर
क्षेत्र में स्थित गांव खड़सार के पास लगभग तीन वर्ष पूर्व पाइप लाइन
फटने के कारण हुए गैस रिसाव से ग्रामीणों में भगदड़ मच गयी थी। हालांकि
किसी तरह की बड़ी घटना घटित नहीं हुई, लेकिन ग्रामीण कई दिनों में
सामान्य हो पाये। जानमाल का नुकसान न होना एक संयोग ही कहा जायेगा,
क्योंकि बचाव संबंधी साधन हैं ही नहीं, साथ में पाइप लाइन की देखभाल मानक
के अनुरूप और नियमित नहीं की जा रही है, इसलिए पाइप लाइन के सहारे बसे
लाखों लोगों का आशंकित रहना स्वाभाविक ही है। गेल के अधिकारियों की
उदासीनता के चलते ही पाइप लाइन के ऊपर और आसपास कई स्थानों पर मकान बन
चुके हैं, ऐसे में गैस रिसाव होने पर बड़ी संख्या में जनहानि होने की
संभावना बनी हुई है, लेकिन सब कुछ जानते हुए भी सरकार या गेल कुछ नहीं कर
रहे हैं। बलरामपुर से आने वाली गैस पाइप लाइन शाहजहांपुर जनपद के पिपरौला
में स्थित कृभको श्याम फर्टिलाइज़र को सप्लाई देती है, इसके बाद बरेली
जिले के आंवला तहसील क्षेत्र में स्थित इफ्को को सप्लाई देते हुए जनपद
बदायूं के बिसौली तहसील क्षेत्र में प्रवेश कर बिल्सी तहसील क्षेत्र में
होते हुए नवसृजित जनपद भीमनगर के बबराला कस्बे के पास स्थित टाटा
फर्टिलाइज़र को सप्लाई देती है। ढाई दशक पूर्व लाइन डालते समय गांवों को
पूरी तरह बचाया गया था, साथ ही पाइप लाइन डालने के बाद बीस मीटर वृत्त
में क्षेत्र को प्रतिबंधित घोषित कर दिया गया था। अब पाइप लाइन की नियमित
देखभाल तक नहीं की जा रही है। वाल्व पैंतीस किमी की दूरी पर लगाये गये
हैं, जो दुर्घटना रोक पाने में असफल ही साबित होंगे, इससे भी बड़े
आश्चर्य की बात यह है कि गेल के जिम्मेदार अधिकारी यहां बैठते ही नहीं
है। प्रमुख क्षेत्रीय कार्यालय आगरा या गाजियाबाद में बताया जा रहा है।
सवाल उठता है कि लोग अगर समस्या बताना भी चाहें, तो वह किसे और कैसे
बतायें?
कृभको, इफको और टाटा से संबंधित अधिकारी पाइप लाइन के बारे में बात करने
पर अनभिज्ञता जता देते हैं, क्योंकि पाइप लाइन की देखभाल करने का दायित्व
गैस सप्लाई देने वाली कंपनी गेल का ही है, ऐसे में कोई हादसा होता भी है,
तो कृभको, इफको और टाटा हाथ खड़े कर ही देंगे। इनकी जिम्मेदारी न होने के
कारण ही यह सब निश्चिंत हैं और गेल का कोई कुछ कर नहीं पायेगा। गेल के
अधिकारियों की लापरवाही के कारण ही पाइप लाइन के ऊपर बस्तियां बस चुकी
हैं। जगह-जगह कोल्हू चल रहे हैं, जिनकी भट्टियां धधकती रहती हैं।
दुर्भाग्य से कभी गैस रिसाव होने लगे, तो बड़ी संख्या में जनहानि की प्रबल
आशंका बनी हुई है। बम के ऊपर बसे गांवों को चाह कर भी नहीं बचाया जा
सकेगा, क्योंकि गेल या संबंधित कंपनियों ने दूर ग्रामीण क्षेत्रों में
बचाव के प्रभावी कदम आज तक नहीं उठाये हैं। लाखों लोगों के जीवन का सवाल
है, इसलिए सरकार को समय रहते सक्रिय होना ही होगा, क्योंकि मौत के बाद
इंसान लौट कर नहीं आते।
नियमानुसार गैस पाइप लाइन के प्रतिबंधित क्षेत्र में निर्माण आदि होने पर
गेल के अधिकारियों को स्थानीय प्रशासन को सूचना देनी होती है। गेल की
सूचना पर स्थानीय प्रशासन कार्रवाई करता है, लेकिन गेल की ओर से स्थानीय
स्तर पर कोई अधिकारी बैठता ही नहीं है, तो तालमेल किसका और कैसे होगा?
प्रशासन से जुड़े वरिष्ठ अफसरों तक को पाइप लाइन से संबंधित कोई जानकारी
नहीं रहती है। स्थानीय प्रशासन पाइप लाइन का कभी निरीक्षण भी नहीं करता
है और न ही बाकी कार्यों की तरह समीक्षा करता है। गेल और स्थानीय प्रशासन
में तालमेल न होना भी एक बड़ी लापरवाही कही जा सकती है, जबकि समय के साथ
गैस पाइप लाइन के साथ बरती जा रही लापरवाही के चलते हादसे की संभावनायें
बढ़ती ही जा रही हैं, इस सब के अलावा कृभको, इफ्को और टाटा फर्टिलाइज़र
भी नियम के अनुसार आसपास ग्रामीण क्षेत्र में पर्यावरण और शुद्ध पेयजल की
दिशा में काम करते नहीं दिख रहे हैं। वातावरण लगातार प्रदूषित हो रहा है,
जिससे सांस व पानी के द्वारा आसपास के नागरिक धीमा जहर ही ले रहे हैं।
विशेषज्ञों का कहना है कि लंबे समय बाद इस क्षेत्र में रोगियों की संख्या
अचानक बढ़ने लगेगी। नियम और शर्तों के अनुसार संबंधित कंपनियों को
निश्चित क्षेत्र में वृक्षारोपण कार्य और शुद्ध पेयजल की व्यवस्था करते
रहने चाहिए। रुहेलखंड क्षेत्र का यह दुर्भाग्य ही कहा जायेगा कि नागरिक
अधिकारों की बात करने वाले लोगों का इस क्षेत्र में अभाव है, तभी गेल के
साथ टाटा, इफ्को और कृभको मनमानी कर पा रहे हैं। जमीन अधिग्रहण के समय
किसानों को उचित मुआवजा भी नहीं दिया गया था। कुछ भूमिहीन परिवारों को
नौकरी देने का कंपनियों ने वादा किया था, जिसे आज तक पूरा नहीं किया गया
है। उस समय आंदोलन करने वाले किसानों पर मुकदमे भी लगाये गये थे, जो
न्यायालय में आज भी चल रहे हैं, लेकिन भूमिहीन हुए तमाम किसानों की सुध
लेने वाला कोई दूर तक नजर नहीं आ रहा। हर दिन रोटी के लिए जंग लड़ने वाले
गरीब किसान उद्योगपतियों से कैसे लड़ सकते हैं?