स्कूल / कॉलेज और अभिभावकों के बीच खींचातानी में फँसे अध्यापकों का क्या ?

Ten News Network

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आज देश में एक माहौल बना है वो है अभिभावको का स्कूलों के ख़िलाफ़, के वो फ़ीस नहीं देंगे, वो यह भी नहीं कह रहे के बाद में दे देंगे।

ये बात ठीक है की सभी स्वतंत्र हैं और सबकी अपनी समस्याएं हो सकती हैं। परंतु इस बीच उन अध्यापकों का क्या जिन्होंने अपना पूरा जीवन नई पीढ़ी को संवारने, शिक्षित करने में बिता दिया और अब स्वयँ एक अनिश्चित भविष्य की ओर देख रहे हैं।

एक अनुमान के मुताबिक आज देश में तक़रीबन ४ लाख निजी स्कूल चल रहे है। जिसमें अगर २५ अध्यापको के हिसाब से ऐव्रिज निकाले तो देश में तक़रीबन एक करोड़ अध्यापक है।अब क्या होगा फ़ीस नहीं मिलेगी तो स्कूल कहेंगे के पैसा नहीं है, चाहे हो या ना हो और भविष्य में फ़ीस आये या ना आए। और इसका सबसे बुरा शिकार कौन होगा? जाहिर तौर पर अध्यापक।

क्योंकि जैसा प्रायः देखा गया है की स्कूल अपने को नूकसान में तो लाएँगे नहीं, तो वो अपने भी ख़र्चे कम करेंगे।
जिसकी भरपाई करेंगे अध्यापक, जिनकी निजी जिंदगी, पारिवारिक ख़र्चों की चिंता शायद किसी को नहीं पड़ी।

मसलन, अगर गौतम बुद्ध नगर जिले का ही उदाहरण ले तो हाल ही के दिनों में स्कूल अध्यापकों और कॉलेज प्रोफेसरों को लगातार नई मुश्किलों से रुबरु होना पड़ रहा है। जहाँ एक कॉलेज ने अपने सभी स्टाफ़ से स्वेक्षा से अवैतनिक अवकाश पर जाने की चिट्ठी ले ली है, वहीं एक और उच्च शिक्षा संस्थान ने समस्त शैक्षिक स्टाफ के वेतन में कटौती कर आगामी अघोषित समय तक 25 हज़ार मासिक वेतन पर सहमति प्रदान की है। कई जगह हालात तो और बदतर हैं और अनेकों शिक्षकों को नौकरी से भी हाथ धोना पड़ा है।

बरहाल, ये शिक्षक जो ज्ञान गंगा द्वारा देश का भविष्य सुधारने में लगे थे और अब तक टैक्स दे कर इसके निर्माण में भी सहयोग कर रहे थे उन्हें अब लगभग अपने हाल पर छोड़ दिया गया है। आखिर ये भी समाज के उसी तबके से आते हैं जिनसे सरकार टैक्स तो लेती हैं परंतु उसकी सिक्यरिटी की ज़िम्मेदारी सरकार की नहीं हैं।

क्योंकि वो केवल उसके लिए करदाता है और कुछ भी नहीं।क्योंकि कहना गलत ना होगा की सरकार केवल दो तरह के लोगों का ध्यान रखती हैं-

पहले वो लोग जो हर बार इन्हें वोट देती है और इस्तेमाल होती है बदले में उन्हें क्या मिलता हैं- फ़्री खाना फ़्री इलाज, फ़्री शिक्षा, फ़्री घर, और इलेक्शन टाइम में फ़्री पैसा और फ़्री शराब- बस जो नहीं मिलता वो आत्मनिर्भर होने का मौक़ा।

दूसरे वो हैं जो इन्हें इलेक्शन टाइम में फ़ंड्ज़ देते हैं और 5 साल में अपनी मनमानी करते हैं।

बचे कौन? वही हम आप जैसे आम आदमी, जो शिक्षक भी है और अभिभावक भी। मेहनत से कमाता हैं, समय से टैक्स देता है, और इनकी कोई सुनवाई नहीं।

इस समय लाखों लोग बेरोज़गार हो रहे हैं कोई सरकार में कहने को तैयार नहीं क्योंकि अगर वो ऐक्शन ले किसके ख़िलाफ़ ले निकालने वाले भी अपने हैं अगर ऐक्शन लिया तो इलेक्शन टाइम में पैसा कौन देगा? यह इनकी सबसे बड़ी मजबूरी है, कल अगर कोई इनके ख़िलाफ़ आंदोलन करने आए तो देखना क्या होता है, लाठीचार्ज, गिरफ़्तारी, आरोप, सब हो जाएगा। क्योंकि आम आदमी कर क्या सकता है? थोड़ा बहुत शोर मचाएगा और शांत हो जाएगा। ख़त्म बात।

तो यह कर्मचारी जो सालों से सरकार को टैक्स दे रहा है, उसकी कल अगर अचानक नौकरी जाती है तो क्या कोई सरकार, कोई अभिभावक, कोई नेता साथ आएगा? क्योंकि अगर केवल अध्यापक कि बात करे तो १ करोड़ हैं जिनका भविष्य ख़तरे में क्योंकि जानते हैं एक निकालेंगे १० तैयार है। क्योंकि बेरोजगारी भी अपने चरम पर है।

इसीलिए मेरी अभिभावको से अपील है के सही मुद्दा उठाये आपके इस मुहिम से केवल और केवल १ करोड़ अध्यापक बेरोज़गार होंगे और उनके परिवार। स्कूलों- कॉलेजों की ज़िम्मेदारी तय करते वक़्त उनकी अपने कर्मचारियों के प्रति जवाबदेही भी तय होनी चाहिए।

अकेले यूपी में ५०००० से ज़्यादा अध्यापको की नौकरी ख़तरे में हैं परंतु ना सरकार, ना विपक्ष, ना मीडिया, ना समाजसेवी किसी ने कोई आवाज़ नहीं उठायी, क्योंकि सब आपस में रिश्ते बनाए रखना चाहते है वरना बारी बारी लूटने का मौक़ा कैसे मिलेगा?

धन्यवाद,
एक बेहद दुखी कर्मचारी की आवाज़ आप तक लाने की कोशिश।

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