चौकीदार को चोर बनाय दूंगो | हास्य कवि बाबा कानपुरी से टेन न्यूज की नए हास्य व्यंग पर खास बातचीत
Talib Khan / Rohit Sharma
Noida, (30/3/2019): हमारे देश में कविताओं का बहुत पुराना इतिहास है। बड़े बड़े कवि हिंदुस्तान का नाम रोशन करते आय हैं।
ऐसे ही एक कवि से आज टेन न्यूज ने खास बातचीत।
सन्तोष कुमार शर्मा हास्यकवि के रुप में बाबा कानपुरी के नाम से राष्ट्रीय ख्याति अर्जित कर चुके एक प्रतिष्ठित साहित्यकार हैं। काव्य की सभी प्रचलित विधाओं- गीत, ग़ज़ल, दोहा, कुण्डली, धनाक्षरी, कविताओं के सृजन के साथ-साथ विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में ’बाबा कवि बर्राय, भोंपू कहे पुकार, भड़ांस कॉलम छपते रहे हैं।
राष्ट्रीय काव्य मंचों से निरन्तर काव्यपाठ तथा सैकड़ों पत्र-पत्रिकाओं में उनकी कविता, गीत, ग़ज़ल, दोहे प्रकाशित हो चुके हैं। लेखन के अलावा बाबा कानपुरी विभिन्न संस्थाओं के माध्यम से निरन्तर साहित्य सेवा एवं समाज सेवा के प्रति समर्पित हैं। दिल्ली हिन्दी साहित्य सम्मेलन ’सनेही मण्डल’ के संस्थापक व महामंत्री, उत्तर प्रदेश समाज दिल्ली-नोएडा के सांस्कृतिक मंत्री, सूर्या संस्थान के प्रचारमंत्री के रूप में योगदान भी उन्होंने दिए हैं।
वहीं बात करते समय उन्होंने उनकी नई लिखी कविता भी बड़े दिलचस्प अंदाज़ में सुनाई। उनकी ये कविता हाल ही के चुनावी माहौल से प्रेरित है। जिसमें उन्होंने बड़े ही हास्य अंदाज़ में राहुल गांधी के राजनीतिक बयानों के उपर तंज़ कसे हैं।
उनकी कविता,
(चौकीदार को चोर बनाय दूंगो)
मैं तो उलटी गंग बहाय दूंगो, अब कोई मेरो का कल्लैगो, चौकीदार को चोर बनाय दूंगो, अब कोई मेरो का कल्लैगो।
सत्ता की लत जोकि पड़ गयी, हूं मैं उसका आदी,
जो थे प्रतिवादी मेरे, उनका बनकर प्रतिवादी,
उनके रंग में भंग कराय दूंगो, अब कोई मेरो का कल्लैगो।
झूठी बातें दोहराने से सच साबित हो जाती,
शांति सभा में भी देखा, अक्सर भगदड़ मच जाती।
मैं कुछ ऐसेई रास रचाय दूंगो, अब कोई मेरो का कल्लैगो।
राजनीति में कर-बल-छल, कहते सब जायज होते,
खाता और काटता कोई, जो बोते, वे रोते।
इसको साबित कर दिखाय दूंगो, अब कोई मेरो का कल्लैगो।
मोदी-मोदी बहुत हो चुका, अब है मेरी बारी,
उनके सच पर ‘झूठ-हथौड़ा’ पड़ेगा मेरा भारी,
भोली जनता को बहकाय दूंगो, अब कोई मेरो का कल्लैगो।
बालाकोट-पुलबामा की जग-जाहिर है सच्चाई,
मैंने उसमें ‘ झूठ-मुलम्मे ‘ की है परत चढ़ाई।
असली मुद्दों से भटकाय दूंगो, अब कोई मेरो का कल्लैगो।
झूठे आश्वासन की जिनको पिला-पिलाकर हाला,
पिछड़े, दलित, गरीबों को करता आया मतवाला।
फिर कोई ऐसेई दांव चलाय दूंगो, अब कोई मेरो का कल्लैगो।
इस कविता के जरिए उन्होंने अपने मन का हाल तो साफ जाहिर कर दिया, अब देखना ये है कि जनता उनकी इस कविता से कितनी सहमत होती है।
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