नए भारत में कारगर साबित होगी नई राष्ट्रीय शिक्षा नीति, टेन न्यूज़ लाइव पर बोले बिमटेक के निर्देशक डॉ हरिवंश चतुर्वेदी

ROHIT SHARMA

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नई दिल्ली :– कोरोना महामारी में केंद्र सरकार द्वारा लाई गई नई राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 को लेकर सभी विद्यार्थी, अभिभावक और शिक्षकों के मन में बहुत से सवाल उठ रहे है की आखिर नई राष्ट्रीय शिक्षा नीति पुरानी शिक्षा नीति से कितनी बेहतर है, साथ ही इसे किस तरह से अपने जीवन में ढालकर अपने या अपने बच्चो के भविष्य को कामयाब बना सके|

इस कोरोना महामारी में टेन न्यूज़ नेटवर्क वेबिनार के माध्यम से लोगों को जागरूक कर रहा है, साथ ही लोगों के मन में चल रहे सवालों के जवाब विशेषज्ञों द्वारा दिए जा रहे हैं। आपको बता दे कि टेन न्यूज़ नेटवर्क ने “फेस 2 फेस” कार्यक्रम शुरू किया है, जो टेन न्यूज़ नेटवर्क के यूट्यूब और फेसबुक पर लाइव किया जाता है |

सोमवार को इस “फेस 2 फेस” कार्यक्रम में ग्रेटर नोएडा के प्रसिद्ध समाजोद्यमी, शिक्षाशास्त्री व बिमटेक संस्थान के निदेशक डॉ. हरिवंश चतुर्वेदी ने हिस्सा लिया और “नई राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020” पर अपने विचार रखे । इस कार्यक्रम का संचालन बहुत ही शानदार तरीके से नोएडा के जाने-माने समाजसेवी डॉक्टर अतुल चौधरी एवं उनकी सहयोगी डौली कुमारी ने किया।

आपको बता दे की समाजसेवी डॉ अतुल चौधरी बहुत ही मशहूर लेखक और ऊर्जावान एंकर भी है | उन्होंने टेन न्यूज़ नेटवर्क के प्लेटफार्म पर बड़े विद्वानों व मशहूर लोगों से महत्वपूर्व विषयों पर चर्चा की, जिसको लोगों ने खूब सराहना की है। अतुल चौधरी ने मशहूर ग्रेटर नोएडा के प्रसिद्ध समाजोद्यमी एवं शिक्षाशास्त्री व बिमटेक संस्थान के निदेशक डॉ. हरिवंश चतुर्वेदी से बहुत ही महत्वपूर्ण प्रश्न किए, जिसका जवाब बहुत ही सरल भाषा में दिया गया |

बिमटेक संस्थान के निदेशक डॉ हरिवंश चतुर्वेदी ने कहा कि पिछले 34 सालों में दुनिया बहुत बदल गई है, हिंदुस्तान का परिदृश्य बदल गया | 1991 में आर्थिक उदाहरीकरण की नीतियां लागू हुई,  जिनसे अर्थव्यवस्था कर्मों में प्रगति देखी गई , समाज में भी बहुत बड़े बड़े बदलाव आए | उन्होंने कहा की भारतीय अर्थव्यवस्था का अंतर्राष्ट्रीय करण हुआ, ग्लोबलाइजेशन दुनिया में एक बड़ी ताकत बना और हिंदुस्तान उससे जुड़ गया , लेकिन हम चल रहे थे 1986 की शिक्षा नीति के ऊपर, सन 2000 तक पहुंचते-पहुंचते जो 14 साल पुरानी हो चुकी थी और एक बदली हुई दुनिया में बदले हुए भारत में 1986 की राष्ट्रीय शिक्षा नीति बहुत कारगर नजर नहीं आ रही थी |

उन्होंने कहा कि स्कूलों में सेम्स्टर सिस्टम, कॉलेज में क्रेडिट बेस्ट सिस्टम जैसे कई अहम बदलाव कुछ ही समय में हमारे देश में देखने को मिल सकते हैं | शिक्षा व्यवस्था में इतने बड़े बदलाव की अनुशंसा नौ सदस्यीय कमेटी ने की है जिसने इस नई शिक्षा नीति को मूर्त रूप दिया है| इसके प्रमुख डॉ के कस्तूरीरंगन इस नीति के प्रमुख सूत्रधार हैं |

डॉ कृष्णस्वामी कस्तूरीरंगन को लोग इसरो के वैज्ञानिक के तौर पर ज्यादा जानते हैं| उनकी अगुआई में नौ सदस्यीय समिति ने नई शिक्षा नीति का प्रारूप मई के महीने में ही मानव संसाधन विकास मंत्रालय को सौंपा था. डॉ कस्तूरीरंगन मूलतः एक वैज्ञानिक हैं और नौ साल तक इसरो में चेयरमैन के तौर पर अपनी सेवाएं देने के बाद वे शिक्षा के क्षेत्र से जुड़े हुए हैं |

डॉ हरिवंश चतुर्वेदी ने कहा कि पद्मश्री, पद्मभूषण और पद्मविभूषण तीनों सम्मानों से अलंकृत डॉ कस्तूरीरंगन साल 2003 से 2009 तक राज्यसभा सदस्य रहे, योजना आयोग के सदस्य रह चुके डॉ कस्तूरीरंगन को साल 2017 में देश की नई शिक्षा नीति बनाने के लिए नौ सदस्यीय कमेटी का प्रमुख बनाया गया था |

बिमटेक संस्थान के निदेशक ने कहा कि हमारे देश में शिक्षा प्राप्त करने वालों की संख्या बेतहाशा बढ़ी है, हमारे देश की 130 करोड़ आबादी में जितने विद्यार्थी प्राइमरी कक्षाओं से लेकर कॉलेज और यूनिवर्सिटी में शिक्षा पा रहे, उनकी संख्या का अगर अंदाजा करें तो आज हम कह सकते हैं 1947 की तुलना में कई गुना बढ़ गया है |

आज हमारे देश में 1 हज़ार से ज्यादा विश्वविद्यालय और 45 हज़ार से ज्यादा कॉलेज में करीब चार करोड़ विद्यार्थी शिक्षा पा रहे है | हमारे यहां 15 लाख से अधिक स्कूलों में 30 करोड़ से अधिक विद्यार्थियों के नाम दर्ज हैं, इसमें प्राइवेट और सरकारी स्कूल शामिल है |

उन्होंने कहा कि हमारी शिक्षा व्यवस्था बहुत विशाल है, लेकिन जितनी वह विशाल है, उतनी ही लोगों की आकांक्षाएं विशाल है, उतनी ही परेशानी का सामना हमारी शिक्षा प्रणाली करती रही है | नई शिक्षा नीति में उन सभी समस्याओं के समाधान के लिए, कुछ प्रयास सुझाए गए हैं और कुछ समय सीमाएं सामने रखी गई है ।

नई शिक्षा नीति को लेकर डॉ हरिवंश चतुर्वेदी ने ‘ऐतिहासिक’ बताया, साथ ही उन्होंने इसे शिक्षा के क्षेत्र में नई युग की शुरूआत बताई। उन्होंने कहा कि मोदी सरकार ने 2016 से ही नई शिक्षा नीति लाने की तैयारियां शुरू कर दी थी और इसके लिए टीएसआर सुब्रहमण्यम कमेटी का गठन भी हुआ था, जिन्होंने मई, 2019 में शिक्षा नीति का अपना मसौदा (ड्राफ्ट) केंद्र सरकार के सामने रखा। लेकिन सरकार को वह ड्राफ्ट पसंद नहीं आया।

इसके बाद सरकार ने वरिष्ठ शिक्षाविद् और जेएनयू के पूर्व चांसलर के. कस्तूरीरंगन की अध्यक्षता में एक नौ सदस्यीय कमेटी का गठन किया। के. कस्तूरीरंगन की कमेटी ने एक नए शिक्षा नीति का मसौदा तैयार किया, जिसे सार्वजनिक कर केंद्र सरकार ने आम लोगों से भी सुझाव मांगे।

इस ड्राफ्ट पर आम से खास लाखों लोगों के सुझाव आए, जिसमें विद्यार्थी, अभिभावक, अध्यापक से लेकर बड़े-बड़े शिक्षाविद्, विशेषज्ञ, पूर्व शिक्षा मंत्रियों और राजनीतिक दलों के नेता शामिल थे। इसके अलावा संसद के सभी सांसदों और संसद की स्टैंडिंग कमेटी से भी इस बारे में सलाह-मशविरा किया गया, जिसमें सभी दलों के लोग शामिल थे। इसके बाद लगभग 66 पन्ने (हिंदी में 117 पन्ने) की नई शिक्षा नीति को मंजूरी दी गई।

डॉ हरिवंश चतुर्वेदी ने कहा कि अगर सबसे पहले स्कूली शिक्षा की बात की जाए तो स्कूली शिक्षा के मूलभूत ढांचे में ही एक बड़ा परिवर्तन आया है। 10+2 पर आधारित हमारी स्कूली शिक्षा प्रणाली को 5+3+3+4 के रूप में बदला गया है। इसमें पहले 5 वर्ष अर्ली स्कूलिंग के होंगे। इसे अर्ली चाइल्डहुड पॉलिसी का नाम दिया गया है, जिसके अनुसार 3 से 6 वर्ष के बच्चों को भी स्कूली शिक्षा के अंतर्गत शामिल किया जाएगा।

वर्तमान में 3 से 5 वर्ष की उम्र के बच्चे 10 + 2 वाले स्कूली शिक्षा प्रणाली में शामिल नहीं हैं और 5 या 6 वर्ष के बच्चों का प्रवेश ही प्राथमिक कक्षा यानी की कक्षा एक में प्रवेश दिया जाता है। हालांकि इन छोटे बच्चों के प्री स्कूलिंग के लिए सरकारों ने आंगनबाड़ी की पहले से व्यवस्था की थी, लेकिन इस ढांचे को और मजबूत किया जाएगा।

नई शिक्षा नीति में कहा गया है कि बाल्यावस्था देखभाल और शिक्षा की एक मजबूत बुनियाद को शामिल किया गया है जिससे आगे चलकर बच्चों का विकास बेहतर हो। इस तरह शिक्षा के अधिकार का दायरा बढ़ गया है। यह पहले 6 से 14 साल के बच्चों के लिए था, जो अब बढ़कर 3 से 18 साल के बच्चों के लिए हो गया है और उनके लिए प्राथमिक, माध्यमिक और उत्तर माध्यमिक शिक्षा अनिवार्य हो गई है।

सरकार ने इसके साथ ही स्कूली शिक्षा में 2030 तक नामांकन अनुपात यानी ग्रास इनरोलमेंट रेशियो (जीईआर) को 100 प्रतिशत और उच्च शिक्षा में इसे 50 प्रतिशत तक करने का लक्ष्य रखा है। ऑल इंडिया सर्वे ऑन हायर एजुकेशन द्वारा किए गए एक सर्वे के मुताबिक 2017-18 में भारत का उच्च शिक्षा में जीईआर 27.4 प्रतिशत था, जिसे अगले 15 सालों में दोगुना करने का लक्ष्य सरकार ने रखा है, जो काफी ज्यादा सराहनीय कदम है |

5+3+3+4 के प्रारूप में पहला पांच साल बच्चा प्री स्कूल और कक्षा 1 और 2 में पढ़ेगा, इन्हें मिलाकर पांच साल पूरे हो जाएंगे। इसके बाद 8 साल से 11 साल की उम्र में आगे की तीन कक्षाओं कक्षा-3, 4 और 5 की पढ़ाई होगी। इसके बाद 11 से 14 साल की उम्र में कक्षा 6, 7 और 8 की पढ़ाई होगी। इसके बाद 14 से 18 साल की उम्र में छात्र 9वीं से 12वीं तक की पढ़ाई कर सकेंगे।

यह 9वीं से 12वीं तक की पढ़ाई बोर्ड आधारित होगी, लेकिन इसे खासा सरल नई शिक्षा नीति में बनाया गया है। उन्होंने कहा की इसके लिए बोर्ड परीक्षा को दो भागों में बांटने का प्रस्ताव है, जिसके तहत साल में दो हिस्सों में बोर्ड की परीक्षा ली जा सकती है। इससे बच्चों पर परीक्षा का बोझ कम होगा और वह रट्टा मारने की बजाय सीखने और आंकलन पर जोर देंगे।

डॉ हरिवंश चतुर्वेदी ने कहा कि 34 साल बाद आई ‘राष्ट्रीय शिक्षा नीति’ कॉलेज एजुकेशन का चेहरा पूरी तरह से बदलने वाली है। यूएस में एसएटी की तर्ज पर यूनिवर्सिटीज और कॉलेजों में एडमिशन के लिए 2022 में कॉमन एंट्रेंस टेस्ट लागू होगा, जिसे नेशनल टेस्टिंग एजेंसी साल में दो बार कराएगी।

4 साल के क्रिएटिव कॉम्बिनेशन के साथ डिग्री स्ट्रक्चर बदलेगा। एक और बड़ा बदलाव है डिग्री देने के लिए इंस्टिट्यूशन को एफिलिएशन के बजाय ग्रेडेड ऑटोनोमी दी जाएगी। राष्ट्रीय शिक्षा नीति के इन कई पहलुओं पर डॉ हरिवंश चतुर्वेदी का कहना है कि पॉलिसी में शामिल बदलाव अगर सही तरीके से लागू होते हैं, तो क्वालिटी एजुकेशन शिक्षा का स्तर जरूर ऊंचा होगा, बतर्शे सस्ती शिक्षा को ध्यान में रखा जाए।

पॉलिसी हायर एजुकेशन की ऑटोनोमी के लिए जिस तरह का प्रस्ताव रखती है, उससे शिक्षा का निजीकरण होगा। मगर कुछ शिक्षाविदों का कहना है कि ऑटोनोमी का स्वरूप और फाइनल फ्रेमवर्क जब विस्तार में सामने आएगा तभी प्लस और माइनस पॉइंट्स गहराई से पता चलेंगे।

डॉ हरिवंश चतुर्वेदी ने कहा कि फोर ईयर डिग्री बढ़िया कॉन्सेप्ट है। विदेशों में भी यह चल रहा है। यह कई विषयों को हर स्तर तक एक्सप्लोर करने का मौका देता है। इसके अलावा, इंटिग्रेटेड कोर्स बढ़िया आइडिया है। इससे समय बचता है। कई अच्छी यूनिवर्सिटी से बैचलर्स कर, दूसरी यूनिवर्सिटी में मास्टर्स में बहुत कुछ सिलेबस रिपीट हो जाता है। इसके अलावा यह डायरेक्ट रिसर्च की खिड़की भी खोलता है।

पॉलिसी में मल्टी-डिसप्लीनरी अप्रोच सबसे खास है। एक इंजीनियर को कई स्किल चाहिए और उसे दूसरे फील्ड का ज्ञान होना चाहिए। नई शिक्षा नीति सभी आईआईटी को अब साइंस के अलावा दूसरे नए क्षेत्रों को एक्सप्लोर करने का मौका देगा। साथ ही, पॉलिसी 50% ग्रॉस एनरोलमेंट रेश्यो तक पहुंचने की बात कर रही है। यानी सभी आईआईटी की इनटेक कैपिसिटी बढ़ेगी और हम अपने कैंपस को भी विस्तार दे सकेंगे।

नई पॉलिसी में इसका ख्याल रखना बहुत जरूरी है कि आर्थिक रूप से कमजोर स्टूडेंट्स के लिए शिक्षा महंगी न हो। जब तक क्वालिटी एजुकेशन तक हर स्टूडेंट की पहुंच नहीं होगी, कोई फायदा नहीं है।

नई राष्ट्रीय शिक्षा नीति विदेशी यूनिवर्सिटीज को भी भारत में आने का न्यौता देती है। यह तभी फायदेमंद होगा जब क्वॉलिटी एजुकेशन वाली यूनिवर्सिटी पहुंचेंगी और उनकी फीस आम बच्चे की लिमिट में होगी। यह ध्यान देना जरूरी होगा कि विदेश की कई यूनिवर्सिटी बढ़िया एजुकेशन नहीं दे रही है।

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