नॉएडा में हुसैनी युथ संस्था के हजारों लोगों ने इमाम हुसैन की याद में निकाला केंडल मार्च

Lokesh Goswami Ten News

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पैगंबरे इस्लाम मोहम्मद साहब के 71 साथियों की मैदान-ए-कर्बला में हुई शहादत की याद को ताजा करने के लिए हर साल की तरह नोएडा स्टेडियम के गेट नंबर 4 से निकाला केंडल मार्च सेक्टर -22 में समाप्त हुई।

हुसैनी युथ संस्था के प्रवक्ता ने बताया इस कैैंडल मार्च मेंं सभी धर्मो के हजारों लोगों ने शिरकत की। साथ ही उनका कहना है कि
आज से 1400 साल कब्ल मैदान-ए-कर्बला में इस्लाम की अना के लिए शहीद हुए हजरत अली शेरे खुदा के बेटे और पैगंबरे इस्लाम मोहम्मद साहब के नवासे हजरत इमाम हुसैन व उनके 71 साथियों के नाम केंडल मार्च निकाला ।

दरअसल, मनुष्यता के हित में अपना सब कुछ लुटाकर भी कर्बला में इमाम हुसैन ने सत्य के पक्ष में अदम्य साहस की जो रौशनी फैलाई, वह सदियों से न्याय और उच्च जीवन मूल्यों की रक्षा के लिए लड़ रहे लोगों की राह रौशन करती आ रही है।

इस्लाम ज़िन्दा होता है हर कर्बला के बाद।’ इमाम हुसैन का वह बलिदान दुनिया भर के मुसलमानों के लिए ही नहीं, बल्कि मानवता के लिए प्रेरणा का स्रोत हैं। हुसैन हम सबके हैं। यही वज़ह है कि यजीद के साथ जंग में लाहौर के एक ब्राह्मण रहब दत्त के सात बेटों ने भी शहादत दी थी, जिनके वंशज ख़ुद को गर्व से हुसैनी ब्राह्मण कहते हैं।

इस्लाम के प्रसार के बारे में पूछे गए एक सवाल के ज़वाब में एक बार महात्मा गांधी ने कहा था- ‘मेरा विश्वास है कि इस्लाम का विस्तार उसके अनुयायियों की तलवार के ज़ोर पर नहीं, इमाम हुसैन के सर्वोच्च बलिदान की वज़ह से हुआ।’ इस कैंडल मार्च में महिलाये , बच्चे और बुजुर्ग लोगो ने भी भाग लिया। इस्लाम की बढ़ोतरी तलवार पर निर्भर नहीं करती बल्कि हुसैन के बलिदान का एक नतीजा है जो एक महान संत थे!

रबिन्द्र नाथ टैगौर : इन्साफ और सच्चाई को ज़िंदा रखने के लिए, फौजों या हथियारों की ज़रुरत नहीं होती है! कुर्बानियां देकर भी जीत हासिल की जा सकती है, जैसे की इमाम हुसैन ने कर्बला में किया!

पंडित जवाहरलाल नेहरु : इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम की क़ुर्बानी तमाम गिरोहों और सारे समाज के लिए है, और यह क़ुर्बानी इंसानियत की भलाई की एक अनमोल मिसाल है!

डॉ राजेंद्र प्रसाद : इमाम हुसैन की कुर्बानी किसी एक मुल्क या कौम तक सिमित नहीं है, बल्कि यह लोगों में भाईचारे का एक असीमित राज्य है!

डॉ. राधाकृष्णन : अगरचे इमाम हुसैन ने सदियों पहले अपनी शहादत दी, लेकिन इनकी इनकी पाक रूह आज भी लोगों के दिलों पर राज करती है!

स्वामी शंकराचार्य : यह इमाम हुसैन की कुर्बानियों का नतीजा है की आज इस्लाम का नाम बाकि है नहीं तो आज इस्लाम का नाम लेने वाला पूरी दुनिया में कोई भी नहीं होता।

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