उत्तराखंड के मशहूर लोकगायक हीरा सिंह राणा से देवभूमि की संस्कृति को लेकर टेन न्यूज़ ने की विशेष बातचीत

Abhishek Sharma

ग्रेटर नोएडा (26/01/19) : — ग्रेटर नोएडा स्थित सम्राट मिहिर भोज पार्क में ग्रेटर नोएडा प्राधिकरण का 28वां स्थापना दिवस मनाया जा रहा है। ग्रेटर नोएडा प्राधिकरण की स्थापना सन 1991 में की गई थी। ग्रेटर नोएडा प्राधिकरण के स्थापना दिवस पर हमेशा सांस्कृतिक कार्यक्रमों का आयोजन कराया जाता है। उत्तराखंड सांस्कृतिक समिति यहाँ पिछले करीब 9 साल से प्राधिकरण के स्थापना दिवस पर अपनी रंगारंग प्रस्तुति पेश करती है। उत्तराखंड “देवभूमि के हीरे” हीरा सिंह राणा जो कि अपनी गायिकी के लिए प्रसिद्द है, टेन न्यूज़ ने उनसे ख़ास बातचीत की और जाना कि विलुप्त हो रही उत्तराखंड की सांस्कृति को किस तरह से बचाया जा सकता है।



ग्रेटर नोएडा प्राधिकरण के स्थापना दिवस के अनुभव के बारे में उन्होंने बताया कि मेरा बहुत अच्छा अनुभव रहा  है, मैं प्राधिकरण के अधिकारियों को धन्यवाद देना चाहता हुँ जो मुझे यहाँ अपने हुनर को पेश करने का मौका देते हैं।  ग्रेटर नोएडा प्राधिकरण ने हमारे यहाँ की जो आंचलिक सांस्कृति है उसको बढ़ावा देने में उनका काफी अहम योगदान रहा है। चाहे उत्तराखंड की सांस्कृति हो, भोजपुरी, राजस्थानी व हरियाणवी सांस्कृति को यहाँ पर मौका जरूर दिया जाता है। लोक सांस्कृति के नाते उन्होंने हर प्रान्त के लोगों यहाँ पर बुलाकर उन्हें विशेष तवज्जो दी है।

उन्होंने कहा कि मैं यहाँ पिछले कई साल से आ रहा हूँ और आगे भी आता रहूँगा इस बार मैं विशेष तौर पर उत्तराखंड का छोलिया नृत्य लेकर यहाँ पर आया हूँ। कुछ प्रसिद्द लोक कलाकार भी इस बार यहाँ पर आए हैं। हमारे यहाँ के महान कलाकार रहे स्वर्गीय गोपाल बाबू गोस्वामी के लड़के भी इस बार यहाँ पर आए हैं जो कि बहुत अच्छा जाता है।

आज के समय में लोग लोकगीतों को छोड़कर लोकनृत्य की तरफ ज्यादा ध्यान दे रहे हैं इसकी क्या वजह है ? इसपर उन्होंने कहा कि  लोकगीतों से लोगों का मन नहीं हट रहा है बल्कि हमारी जो सरकारें हैं वो इस ओर ज्यादा ध्यान नही देती है। सरकार में जो लोग सांस्कृतिक विभाग को देखते है उनकी इस ओर तवज्जो कम हैं जिसके कारण इस ओर लोगों की रुचि कम होती जा रही है। वे लोग फिल्मों की ओर भाग रहे हैं, हालांकि लोकगीत हमारे देश की एक छवि है जो हमारे यहाँ की सांस्कृति की पेश करती है। लोकगीत हमे हमारे अतीत की झलक दिखता है।

लोकगीतों को बढ़ावा देने पर उन्होंने कहा कि हमारी सरकार लोकगायकों, लोकनृतकों व लोकवादकों को प्रोत्साहन दे जिससे की विलुप्त हो रही सांस्कृति के बारे में लोग और अच्छे से जान सकें और इसे अच्छे से समझ सकें। सरकार कुछ हद तक इस ओर ध्यान दे भी रही लेकिन कुछ हद तक मामला सिथिल है। क्योंकि, समय-समय पर सरकारें बदल जाती हैं। जो एक प्लेटफॉर्म मिलना चाहिए वो नहीं मिल पा रहा है।

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