भारत के छह दर्शनों में से एक है योग

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Dr. Abhishek Swami –

योग की उत्पत्ति संस्कृत शब्द ‘युज’ से हुई है जिसका अर्थ जोड़ना है। योग शब्द के दो अर्थ हैं और दोनों ही महत्वपूर्ण हैं। पहला है- जोड़ और दूसरा है समाधि। जब तक हम स्वयं से नहीं जुड़ते, समाधि तक पहुंचना असंभव होगा। योग का अर्थ परमात्मा से मिलन है।
छह भारतीय दर्शन : (six philosophies of India) भारत के छह दर्शनों में से एक है योग। ये छह दर्शन हैं- 1.न्याय 2.वैशेषिक 3.मीमांसा 4.सांख्य 5.वेदांत और 6.योग।
योग का महत्व : (yoga benefits) योग के माध्यम से शरीर, मन और मस्तिष्क को पूर्ण रूप से स्वस्थ्य किया जा सकता है। तीन को स्वस्थ्य रहने से आत्मा स्वत: की स्वस्थ्य महसूस करती है। लंबी आयु, सिद्धि और समाधि के लिए योग किया जाता रहा है। सभी धर्मों का महत्वपूर्ण अंग है योग।
योग के प्रकार : (types of yoga) : वेद, पुराण आदि ग्रन्थों में योग के अनेक प्रकार बताए गए हैं। भगवान कृष्ण ने योग के तीन प्रकार बताए हैं- ज्ञान योग, कर्म योग और भक्ति योग। जबकि योग प्रदीप में योग के दस प्रकार बताए गए हैं- 1.राज योग, 2.अष्टांग योग, 3.हठ योग, 4.लय योग, 5.ध्यान योग, 6.भक्ति योग, 7.क्रिया योग, 8.मंत्र योग, 9.कर्म योग और 10.ज्ञान योग। इसके अलावा होते हैं- धर्म योग, तंत्र योग, नाद योग आदि।
आष्टांग योग (Ashtanga yoga) : आष्टांग योग का सर्वाधिक प्रचलन और महत्व है। आष्टांग योग अर्थात योग के आठ अंग। यह आठ अंग सभी धर्मों का सार है। उक्त आठ अंगों से बाहर धर्म, योग, दर्शन, मनोविज्ञान आदि तत्वों की कल्पना नहीं की जा सकती।
यह आठ अंग हैं- (1)यम (2)नियम (3)आसन (4)प्राणायम (5)प्रत्याहार (6)धारणा (7)ध्यान और (8)समाधि।
उक्त आठ अंगों के अपने-अपने उप अंग भी हैं। वर्तमान में योग के तीन ही अंग प्रचलन में हैं- आसन, प्राणायाम और ध्यान, जो कि योगभ्रष्ट मार्ग है। योग को प्रथम यम से ही सिखना होता है।

1.यम- (yama) सत्य, अहिंसा, ब्रह्मचर्य, अस्तेय और अपरिग्रह।
2.नियम- (niyama) शौच, संतोष, तप, स्वाध्याय तथा ईश्वर प्रणिधान।
3.आसन- (asana) आसनों के अनेक प्रकार हैं। आसन के संबंध में हठयोग प्रदीपिका, घरेण्ड संहिता तथा योगाशिखोपनिषद् में विस्तार से वर्णन मिलता है।
4.प्राणायाम- (pranayama) नाड़ी शोधन और जागरण के लिए किया जाने वाला श्वास और प्रश्वास का नियमन प्राणायाम है। प्राणायम के भी अनेकों प्रकार हैं।
5.प्रत्याहार- (pratyahara)इंद्रियों को विषयों से हटाकर अंतरमुख करने का नाम ही प्रत्याहार है।
6.धारणा- (dharana) चित्त को एक स्थान विशेष पर केंद्रित करना ही धारणा है।
7.ध्यान- (dhyana yoga) ध्यान का अर्थ है सदा जाग्रत या साक्षी भाव में रहना अर्थात भूत और भविष्य की कल्पना तथा विचार से परे पूर्णत: वर्तमान में जीना।
8.समाधि- (samadhi yoga) समाधि के दो प्रकार है- संप्रज्ञात और असंप्रज्ञात। समाधि मोक्ष है। मोक्ष प्राप्त करने के लिए उपरोक्त सात कदम क्रमश: चलना होता है।

योग का संक्षिप्त इतिहास (History of Yoga): योग का उपदेश सर्वप्रथम हिरण्यगर्भ ब्रह्मा ने सनकादिकों को, पश्चात विवस्वान (सूर्य) को दिया। बाद में यह दो शखाओं में विभक्त हो गया। एक ब्रह्मयोग और दूसरा कर्मयोग। ब्रह्मयोग की परम्परा सनक, सनन्दन, सनातन, कपिल, आसुरि, वोढु और पच्चंशिख नारद-शुकादिकों ने शुरू की थी। यह ब्रह्मयोग लोगों के बीच में ज्ञान, अध्यात्म और सांख्य योग नाम से प्रसिद्ध हुआ।

दूसरी कर्मयोग की परम्परा विवस्वान की है। विवस्वान ने मनु को, मनु ने इक्ष्वाकु को, इक्ष्वाकु ने राजर्षियों एवं प्रजाओं को योग का उपदेश दिया। उक्त सभी बातों का वेद और पुराणों में उल्लेख मिलता है। वेद को संसार की प्रथम पुस्तक माना जाता है जिसका उत्पत्ति काल लगभग 10000 वर्ष पूर्व का माना जाता है। पुरातत्ववेत्ताओं अनुसार योग की उत्पत्ति 5000 ई.पू. में हुई। गुरु-शिष्य परम्परा के द्वारा योग का ज्ञान परम्परागत तौर पर एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी को मिलता रहा।

भारतीय योग जानकारों के अनुसार योग की उत्पत्ति भारत में लगभग 5000 वर्ष से भी अधिक समय पहले हुई थी। योग की सबसे आश्चर्यजनक खोज 1920 के शुरुआत में हुई। 1920 में पुरातत्व वैज्ञानिकों ने ‘सिंधु सरस्वती सभ्यता’ को खोजा था जिसमें प्राचीन हिंदू धर्म और योग की परंपरा होने के सबूत मिलते हैं। सिंधु घाटी सभ्यता को 3300-1700 बी.सी.ई. पूराना माना जाता है।

योग ग्रंथ योग सूत्र (Yoga Sutras Books) : वेद, उपनिषद्, भगवद गीता, हठ योग प्रदीपिका, योग दर्शन, शिव संहिता और विभिन्न तंत्र ग्रंथों में योग विद्या का उल्लेख मिलता है। सभी को आधार बनाकर पतंजलि ने योग सूत्र लिखा। योग पर लिखा गया सर्वप्रथम सुव्यव्यवस्थित ग्रंथ है- योगसूत्र। योगसूत्र को पांतजलि ने 200 ई.पूर्व लिखा था। इस ग्रंथ पर अब तक हजारों भाष्य (yoga bhashya) लिखे गए हैं, लेकिन कुछ खास भाष्यों का यहां उल्लेख लिखते हैं।

व्यास भाष्य (vyasa bhashya) : व्यास भाष्य का रचना काल 200-400 ईसा पूर्व का माना जाता है। महर्षि पतंजलि का ग्रंथ योग सूत्र योग की सभी विद्याओं का ठीक-ठीक संग्रह माना जाता है। इसी रचना पर व्यासजी के ‘व्यास भाष्य’ को योग सूत्र पर लिखा प्रथम प्रामाणिक भाष्य माना जाता है। व्यास द्वारा महर्षि पतंजलि के योग सूत्र पर दी गई विस्तृत लेकिन सुव्यवस्थित व्याख्या।

तत्त्ववैशारदी (tattvavaisharadi) : पतंजलि योगसूत्र के व्यास भाष्य के प्रामाणिक व्याख्याकार के रूप में वाचस्पति मिश्र का ‘तत्त्ववैशारदी’ प्रमुख ग्रंथ माना जाता है। वाचस्पति मिश्र ने योगसूत्र एवं व्यास भाष्य दोनों पर ही अपनी व्याख्या दी है। तत्त्ववैशारदी का रचना काल 841 ईसा पश्चात माना जाता है।

योगवार्तिक (yoga varttika vijnana bhiksu) : विज्ञानभिक्षु का समय विद्वानों के द्वारा 16वीं शताब्दी के मध्य में माना जाता है। योगसूत्र पर महत्वपूर्ण व्याख्या विज्ञानभिक्षु की प्राप्त होती है जिसका नाम ‘योगवार्तिक’ है।

भोजवृत्ति (bhoja vritti) : भोज के राज्य का समय 1075-1110 विक्रम संवत माना जाता है। धरेश्वर भोज के नाम से प्रसिद्ध व्यक्ति ने योग सूत्र पर जो ‘भोजवृत्ति नामक ग्रंथ लिखा है वह भोजवृत्ति योगविद्वजनों के बीच समादरणीय एवं प्रसिद्ध माना जाता है। कुछ इतिहासकार इसे 16वीं सदी का ग्रंथ मानते हैं।

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