New Delhi: दिल्ली के जंतर मंतर पर आज मजदूरों के राष्ट्रीय कन्वेंशन का आयोजन किया गया जिसमे देश भर से मजदूर और उनके कई संगठन जुटे। सभा को संबोधित करते हुए वक्ताओं ने कहा की पिछले कई दशकों से मजदूर वर्ग पर हमले लगातार बढ़ते रहे हैं। श्रम कानून में सुधार, बेलगाम शोषण, जीवन-आजीविका के बढ़ते संकट और मजदूर आंदोलन पर भारी दमन इसके गवाह हैं।
“पूंजीवाद-साम्राज्यवाद के गहराते संकट और गिरते मुनाफ़ा दर के मद्देनज़र सरकारों द्वारा अपने पूंजीवादी साम्राज्यवादी आकाओं के लिए लागू की गईं नव-उदारवादी नीतियों का ही यह प्रत्यक्ष परिणाम है।”
वक्ताओं ने आगे कहा कि भाजपा-आरएसएस की मोदी सरकार ने 2014 में केंद्र में सत्ता में आने के बाद से इस प्रक्रिया को अभूतपूर्व रूप से तेज किया है। केंद्र और राज्य दोनों स्तरों पर मजदूर विरोधी सुधारों के बाद इसने, अपने ही शब्दों में, कोविड “आपदा को अवसर” में बदलते हुए एक साल पहले संसद में चार नई श्रम संहिताओं अथवा लेबर कोड को पारित कर भारत के मजदूर वर्ग पर सबसे बड़े हमले को अंजाम दिया।
“फासीवादी नीति के तहत मोदी सरकार ने 3 काले कृषि कानूनों, राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 और ‘राष्ट्रीय मुद्रीकरण पाइपलाइन’ को भी पारित करवाया है, ताकि कृषि, शिक्षा और देश की सभी सार्वजनिक संपत्तियों को कॉर्पोरेट को सौंपा जा सके।”
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