Learn how to deal with heart fail patient .. Must read

मेरी आज की पोस्ट को बहुत ध्यान से पढ़िएगा। आप इसे और लोगों से साझा भी कीजिएगा।
आपने खबर पढ़ी होगी कि दो दिन पहले उत्तराखंड के एक आईएएस अधिकारी नोएडा के मॉल में अपनी पत्नी और दो छोटे बच्चों के साथ खाना खा रहे थे, तभी उन्हें दिल का दौरा पड़ा और उनकी मृत्यु हो गई। 39 साल के इस आईएएस अधिकारी का नाम था- अक्षत गुप्ता। ये उधमसिंह नगर में कलेक्टर थे।
इनकी पत्नी भी आईपीएस अधिकारी हैं और ये परिवार उत्तराखंड से नोएडा घूमने-फिरने के ख्याल से आया था। यह बताने के लिए मैं पोस्ट नहीं लिख रहा कि वो कितने लोकप्रिय अधिकारी थे, कितनी मेहनत करके वो आईएएस अधिकारी बने थे, या उनके दोनों बच्चे कितने छोटे हैं। मैं आज सिर्फ आगाह करने के लिए पोस्ट लिख रहा हूं कि उस अधिकारी के साथ अचानक जो हुआ, वो किसी के साथ कभी भी कहीं भी हो सकता है।
ऐसा जब भी होता है, पहले तो सामने वाले की समझ में नहीं आता कि अचानक हुआ क्या? फिर अफरा-तफरी में जब हम मरीज़ को अस्पताल ले जाते हैं, तो पता चलता है कि उसके प्राण-पखेरू उड़ चुके हैं।
जब भी किसी के साथ ऐसा होता है, तो उसके साथ वाले अगर चाहें, अगर बीमारी को ठीक से समझें, तो बहुत मुमकिन है कि वो बच जाए। दुनिया में कई लोग बचे भी हैं।
दरअसल, जब अचानक किसी के साथ ऐसा होता है, तो वह दिल का दौरा नहीं होता। यह हृदय घात कहलाता है। हार्ट अटैक और हार्ट फेल में अंतर होता है। हार्ट अटैक दिल की बीमारी होती है, पर इस मामले में हार्ट फेल हो जाता है। इस बीमारी का नाम होता है ‘सडेन कार्डियक अरेस्ट’।
मुझे नहीं पता कि हमारे देश के स्कूलों में इस तरह की चीजें क्यों नहीं पढ़ाई जातीं, पर विदेशों में इस बारे में लोगों को बचपन से ही खूब अागाह कर दिया जाता है।
सडेन कार्डियक अरेस्ट शब्द को आप गूगल पर टाइप करें और इस विषय में और जानकारी जुटाएं। इस जानकारी को सिर्फ अपने पास मत रखिए, उसे लोगों तक पहुंचाएं। इसका असली फायदा ही लोगों तक इस जानकारी का पहुंचने का है। सिर्फ आप इस बारे में जान कर अपना भला नहीं कर सकते।
कल्पना कीजिए कि जिस वक्त उस आईएएस अधिकारी के साथ उस रेस्त्रां में ये घटना घटी, अगर किसी व्यक्ति को इस बीमारी के विषय में पता होता, अगर खुद उनकी आईपीएएस पत्नी इस विषय में जानतीं, तो शायद वो अधिकारी बच जाता।
सडेन कार्डियक अरेस्ट कोई बीमारी नहीं है। यह हृदय घात है। कभी भी किसी का भी दिल पल भर के लिए काम करना बंद कर देता है। ठीक वैसे ही, जैसे बिना किसी वज़ह के कई बार घर की बिजली का फ्यूज़ उड़ जाता है। यह भी शरीर का फ्यूज़ उड़ने की तरह है।
जब कभी किसी को हृदय घात हो, उसकी छाती पर ज़ोर से मारना चाहिए, इतनी ज़ोर से कि चाहे पसलियां टूट जाएं, पर दिल की धड़कन दुबारा शुरू हो जाए। याद रहे, जितनी जल्दी आपकी समझ में ये बात आ जाएगी कि यह हृदय घात है, उतनी संभावना सामने वाले के बचने की होती है। एक मिनट के बाद देर होनी शुरू हो जाती है। आपको बस इसे पहचानना है कि यह सडेन कार्डियक अरेस्ट है।
ऐसा जब भी हो, आप पाएंगे कि मरीज की नब्ज रुक गई है। सांस भी रुक गई है। बस यहीं आपको डॉक्टर बुलाने से पहले प्राथमिक उपचार करने की ज़रूरत है। डॉक्टर को ख़बर करें, अस्पताल भी ले जाने की तैयारी करें, पर पहले उसकी छाती पर दोनों हाथों से जोर-जोर से मारें ताकि उसकी सांस लौट आए। ध्यान रहे, अगर सांस तुरंत लौट आती है, तो मरीज़ बच जाता है, वर्ना पाचं मिनट के बाद तो डॉक्टर भी हाथ खड़े कर लेगा। और आप इसे ईश्वर का विधान मान कर मन मसोस कर रह जाएंगे।
अमेरिका में बहुत से लोगों के साथ ऐसा होता है। वहां दुकानों, मॉल्स में ऐसी मशीन रखी रहती है, जिससे दिल को जिलाने का काम लिया जाता है। बहुत से मरीज बच जाते हैं। वहां के लोगों को इस मशीन को चलाने की ट्रेनिंग दी जाती है।
हमारे यहां डॉक्टर केके अग्रवाल इस बीमारी को लेकर लोगों को काफी सतर्क करते हैं। वो बताते हैं कि जब भी ऐसा हो, फटाफट सावित्री आसन के ज़रिए मरीज को पहले बचाने की कोशिश करें।
याद है न सावित्री और सत्यवान की कहानी।
सत्यवान को अचानक ऐसा ही हृदयघात हुआ था और सावित्री उसकी छाती पर सिर पटक-पटक कर यमराज से अपने पति की जान लौटाने की गुहार लगा रही थी। उसने उसकी छाती पर इस कदर सिर पटका कि दिल की धड़कन दुबारा शुरू हो गई, और कहा गया कि सावित्री यमराज से अपने मर चुके पति की जान वापस ले आई।
मुझे लगता है कि यह कहानी सच्ची होगी। पर जान लौटी होगी उसके पति के थम चुके दिल पर बार-बार हुए प्रहार से। इसीलिए इसके प्राथमिक उपचार को नाम दिया गया है, सावित्री आसन। यानी जब भी आपके आसपास कहीं ऐसा हो, आपको पहली कोशिश करनी है उसकी छाती के बीच दोनों हाथों से तेज प्रहार करने की।
मुझे लगता है कि उस अधिकारी को अस्पताल ले जाने से पहले इस तरह का प्राथमिक उपचार हुआ होता तो वो बच जाता। अगर ऐसा ही फिल्मी कलाकार संजीव कुमार के साथ हुआ होता तो वो भी बच जाते। शफी ईनामदार, अमज़द खान भी हृदयघात से ही मरे थे। उन्हें भी प्राथमिक उपचार मिला होता तो वो आज ज़िंदा होते। अगर लोग गाड़ी ढूंढ कर अस्पताल ले जाने की जगह पहले सावित्री आसन की विद्या को प्रयोग में लाए .
काश! काश! काश!
ज़िंदगी में बहुत से काश से आप बच सकते हैं, अगर आप किसी विषय की तह में जाकर उसे समझने की कोशिश करेंगे, अगर आप बीमारी को ठीक से समझने की कोशिश करेंगे। ईश्वरीय विधान से ऊपर कुछ नहीं। पर आदमी को कोशिश तो करनी ही चाहिए।
मैं तो इतना ही कह सकता हूं कि हमारी सरकार को शिक्षा पाठ्यक्रम में इन विषयों को शामिल करना चाहिए और इन्हें ज़रूर पढ़ाना चाहिए, ताकि आदमी जीना सीख सके।

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