माँ तुझे सलाम – टेन न्यूज़ पर अनोखे लाइव शो का हुआ आगाज़ | बेटी बचाओ की प्रणेता डॉक्टर शिप्रा धर से विशेष मुलाक़ात

ABHISHEK SHARMA

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पूरे देश में है कोरोना महामारी का प्रकोप लगातार बढ़ रहा है। इसी के साथ-साथ कोरोना के मरीजों में रोजाना वृद्धि हो रही है। आज जब पूरा देश इस महामारी से जूझ रहा है, ऐसे में टेन न्यूज़ नेटवर्क लगातार ऑनलाइन वेबिनार के माध्यम से लोगों को जागरूक कर रहा है और कई ऐसी प्रतिभाएं हैं जो समाज कल्याण के लिए काफी कार्य कर रही हैं, लेकिन उनको पहचान नहीं मिल पाती है।

इसी क्रम में टेन न्यूज़ ने ‘मां तुझे सलाम’ कार्यक्रम की शुरुआत की है। जिसके तहत पूरे देश से ऐसी महिलाओं को एक मंच प्रदान किया जाएगा, जो समाज हित में निस्वार्थ भाव से निरंतर कार्य कर रही हैं। लेकिन उनके कार्य के हिसाब से उनको ख्याति नहीं मिल सकी है। मां तुझे सलाम कार्यक्रम टेन न्यूज़ नेटवर्क पर हर सप्ताह आयोजित कराया जाएगा। जिसमें देश भर से नई नई प्रतिभाओं को खोज कर दुनिया के सामने पेश किया जाएगा।

देश में ऐसे कई डॉक्टर है जो निस्वार्थ भाव से लोगों की सेवा में लगे हैं। कोई फ्री में इलाज करता है, तो कोई फ्री में दवा देता है, तो कोई फ्री में बच्चों की डिलीवरी करता है। आज भी देश में आपके ऐसे कई डॉक्टर मिल जाएंगे जो बिना पैसे और शिकायत के सेवा करते हैं। उत्तर प्रदेश के वाराणसी शहर में एक ऐसी ही महिला डॉक्टर है जो लड़कियों के जन्म होने पर कोई भी पैसा नहीं लेती है। बल्कि अगर किसी दम्पति को लड़की होती है तो वो खुद मिठाइयां बांटती है। 15 अगस्त के मौके पर शुरू हुए इस कार्यक्रम में डॉ. शिप्रा धर उपस्थित रहीं।

वही इस कार्यक्रम का संचालन ग्रेड्स इंटरनेशनल स्कूल की प्रधानाचार्य अदिति बसु रॉय ने बेहद बखूबी से किया। उन्होंने महिला शक्ति की अंतरात्मा की आवाज को अपने प्रश्नों के जरिए बाहर निकालने की कोशिश की। उन्होंने सभी टेन न्यूज़ के दर्शकों को स्वतंत्रता दिवस की शुभकामनाएं दी और कहा कि देश में शांति बनी रहे और हम उम्मीद करते हैं कि जल्द ही कोरोना महामारी पर भी फतह हासिल कर लेंगे।

वाराणसी में रहने वाली डॉ. शिप्रा धर कुछ इसी तरह का काम पिछले कई सालों से कर रही हैं। शिप्रा धर के नर्सिंग होम में जब भी कोई दम्पति बेटी को जन्म देती है उस दम्पति से कोई भी फी नहीं लेती है। उन्होंने कहा कि जब भी नर्सिंग होम में किसी को बेटा होता था तो खुशियां मनाई जाती थी। वहीं अगर किसी को बेटी पैदा हो, तो परिवार में मायूसी छा जाती थी। जब मैंने इस बारे में अपने पति से बात की तो उन्होंने मुझे सुझाव दिया कि अगर किसी को बेटी हो और उनके चेहरे पर खुशी देखना चाहती हो, तो उनसे किसी प्रकार का चार्ज मत वसूलो, बल्कि खुशियां मनाओ। इसके अगले ही दिन नर्सिंग होम में 25 जुलाई 2014 को एक बेटी का ऑपरेशन से जन्म हुआ।

उन्होंने बताया कि जब मैंने इस बारे में अपने पति से बात की तो उन्होंने कहा कि कोई चार्ज मत लो। इसके बाद हमने उसी दिन से बेटी के जन्म पर पैसे लेने बंद कर दिए। उसके बाद से आज तक मेरे नर्सिंग होम में 366 बेटियों का जन्म हो चुका है और सभी के जन्म पर मैंने स्वयं मिठाइयां बांटकर खुशी मनाई है और भगवान के आशीर्वाद से यह है आगे भी चलता रहेगा।

उन्होंने बताया कि इस काम में उनकी सहायत उनके पति डॉ.एम.के श्रीवास्तव भी बखूबी करते हैं। दोनों मिलकर इस अच्छे काम को करने की कोशिश करते हैं। डॉक्टर शिप्रा ने बीएचयू से एमबीबीएस और एमडी किया है और पिछले कई सालों से शिप्रा धर वाराणसी में यह काम कर रही हैं।

उन्होंने आगे कहा कि जब हमने यह कार्य शुरू किया तो दो स्लोगन दिमाग में आए एक ‘बेटी है तो सृष्टि है’, दूसरा, ‘बेटी नही है बोझ, आओ बदलें सोच।’ उनका कहना है कि जब तक हम अपनी सोच नहीं बदलेंगे तो सृष्टि कैसे बदलेगी। बेटियों के प्रति लोगों का अपना नजरिया बदलना पड़ेगा। बेटी किसी पर भी बोझ नहीं है। उन्होंने बताया कि जब वह मात्र 7 वर्ष की थी तब उनके पिता का देहांत हो गया। मेरी मां ने हमें अकेले पाला है और कभी भी यह महसूस नहीं होने दिया कि अगर मैं लड़का होती तो कुछ ज्यादा मिलता। मेरी मां ने बेटी और बेटे में कभी कोई फर्क नहीं समझा। उन्होंने बताया कि उनकी शादी भी डॉक्टर बनने के बाद हुई। ऐसा नहीं कि बेटी बोझ है और ऐसे ही शादी कर दी जाए।

वहीं उन्होंने अपने निजी जीवन के बारे में बताते हुए कहा कि यह मेरा जन्म यूपी के देवरिया जिले में हुआ था और मेरे पिता एक इंजीनियर थे, जोकि धनबाद में कार्यरत थे। हम भी उनके साथ वही रहते थे और जब मैं 7 साल की थी तो उनको ब्रेन हेमरेज हुआ और उनका देहांत हो गया। इसके बाद हम नानी के घर आ गए। उन्होंने बताया कि मेरे पापा का हमेशा से सपना था कि बेटी को पढ़ा लिखा कर बडी अफसर बनाएंगे। उन्होंने कहा कि जब मैं छोटी थी तो मेरी मां ज्यादातर बीमार रहती थी तो तब मैंने सोचा कि डॉक्टर बन के मम्मी का इलाज करना है।

उन्होंने बताया कि मैं अपनी मां की अकेली संतान थी, उन्होंने मेरे लिए बहुत कुर्बानियां दी हैं और आज मैं जिस मुकाम पर हूं उसके पीछे मेरी मां और पति का सबसे बड़ा सहयोग रहा है। हमारे समाज में कहा जाता है कि बेटी के ससुराल में माँ नहीं रह सकती , इसके चलते मैंने शादी ना करने का फैसला लिया था, लेकिन लोगों ने बोला कि तुम शादी करो और मां को अपने साथ रख लेना। उन्होंने कहा कि मैं अपने ससुराल पक्ष का भी धन्यवाद देना चाहूंगी क्योंकि उन्होंने कहा कि जब तुम अपनी मां की अकेली संतान हो तो उनको अपने साथ ही रखो।

उन्होंने आगे बताया कि कभी-कभी ऐसा होता है कि लगातार बेटियों का ही जन्म होता है और इससे हमें भी थोड़ी आर्थिक परेशानी होती है। लेकिन जब इस बारे में अपने बच्चों से बात करती हूं तो वह भी बोलते हैं कि मम्मी पैसे नहीं मिले कोई बात नहीं, लेकिन आपका काफी नाम हो रहा है, लोग आपको आशीर्वाद दे रहे हैं। तो यह सब सोच कर मुझे भी मोटिवेशन मिलती है कि इस काम को आगे बढ़ाया जाए।

उन्होंने आगे कहा कि 22 जनवरी 2015 को देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने पानीपत से ‘बेटी पढाओ, बेटी बचाओ’ अभियान की शुरुआत की थी। जिसके बाद से हमारे समाज में काफी बदलाव देखने को मिले हैं और कन्या भ्रूण हत्या पर काफी हद तक रोक लगी है। केंद्र सरकार द्वारा चलाए गए इस अभियान के बाद से लोगों की सोच में भी काफी बदलाव देखने को मिलता है लेकिन इसके लिए जमीनी स्तर पर भी लोगों को अपना दायित्व समझ कर कार्य करना होगा। तभी इस सोच को हम समाज से पूरी तरह से खत्म कर सकेंगे।

उन्होंने बताया कि उनके और पति डॉ.एमके श्रीवास्तव के कार्य को सभी ने सराहा है। इन दोनों दम्पति की ओर से अस्पताल में बेटी के जन्म पर कोई फीस नहीं लेने की बात जब देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को पता चली तो वो डॉ. धर से मिले भी थे। दरअसल, जब ये बात प्रधानमंत्री को चली तो थी तो वो उन दिनों प्रधानमंत्री वाराणसी आए हुए थे। उन्होंने मंच से कहा था कि सभी डॉक्टरों को भी किसी एक दिन फ्री में डिलिवरी करवानी चाहिए।

आपको बता दें कि डॉ शिप्रा धर बच्चों को कुपोषण से बचाने के लिए एक बैंक भी चलती है। धर अपनी तरफ से बहुत गरीब परिवारों को अपनी तरफ से अनाज भी प्रदान करती हैं। त्योहारों पर गरीब परिवार को मिठाइयां और कपड़े भी देती हैं। यही नहीं, शिप्रा गरीब लड़कियों की पढाई लिखाई में भी सहायता करती हैं। नर्सिंग होम चलाने के बाद जब भी उन्हें टाइम मिलता वो गरीब लड़कियों को शिक्षा देती हैं।

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