नवीनता की कस्तूरी: प्रोफ़ेसर पी.के.आर्य
जीवन की गहरी से गहरी अनुभूतियों में ये तथ्य छिपे हैं कि नवीनता सुख देने हारी है। इस नवीनता में शुभत्त्व का समावेश हो जाये, तो क्या कहने ! फिर वह अनुभव न सिर्फ कालजयी हो जाता है अपितु हम अपने जीवन में बार-बार उसकी पुनरुक्ति भी चाहते हैं।जब भी मन के अनुसार हो जाता है, तब हम प्रसन्न होते हैं और जब मन के विपरीत घटे, तो अवसाद और उदासी के धूसरित स्वप्नों के चलचित्र निर्मित होते हैं। हमारे मन,मष्तिष्क और चित्त पर उभरने वाले संवेगों के केंद्र हम स्वयं हैं। हमारे ही भीतर सभी तरह की अनुभूतियों और भावनाओं की कस्तूरी छिपी है।सुखों की खोज में मानव मन का मृग साल दर साल,महीना दर महीना और दिन ब दिन भटकता रहता है; बिना इस बात को जाने की जिस कस्तूरी के लिए वह मारा-मारा फिर रहा है ;वह तो स्वयं उसी के नफे में चस्पा है। जीवन को काटना नहीं अपितु जीना ही अपनी कस्तूरी को पा जाना है।दीवार पर टंगे कैलेंडर को तो अवश्य बदलिये पर बदलिये स्वयं को भी और फिर देखिये अपनी पूरी दुनिया को बदलते हुए।
समय का चक्र फिर से अपने एक नए बदलाव के पड़ाव पर है। अवस्थाओं के क्षितिज पर पुनः 365 रश्मियों को समेटे एक नया भास्कर दैदीप्यमान होगा; वर्ष 2016 के नाम से।हमें अनेक नईं आशाओं के मीठे झौकें फिर से नईं चुनौतियों से ऑंखें चार करने की हिम्मत देंगे। वक़्त के सीने को चाक कर फिर से कामयाबी और हौसले की नई इबारतें अपना वज़ूद तलाशेंगी।नित नया करने ,देखने और सीखने का नाम ही ज़िन्दगी है। ज़िन्दगी नाम है नई-नई गलतियों, नये-नये अनुभवों की कुँवारी फसल काटने का। एक ही गलती को दोबारा दोहराना खुद को पतन की खाई में धकेलना है। जाते साल ने सिखाया कि कोई कैसा भी क्यों न हो ,जब वह सियासत से हमराह होता है. तो वह नहीं रह जाता; जो वह था ? या जो उसे होना चाहिए था? भगवान श्री कृष्ण ने ‘गीता’ में राजा के कुछ गुण धर्म बताये हैं। वे सभी आज शाश्वत हैं। बन्दर के हाथ में उस्तरा दे तो दिया है आगे की कथा देखने की तैयारी रखिये। दिल्ली के दिलवालों ने जाते साल दिल का इस्तेमाल तो किया पर अब वह दिमाग से सोचने पर भी विवश हैं। इतिहास में केजरीवाल का प्रयोग वर्ष 2015 के सभी प्रयोगों में सर्वाधिक भोथरा और किरकिरा रहेगा; इसकी किसी को भी कल्पना नहीं थी । भविष्य का इतिहास लिखने वाले इस खट्टे अनुभव को सदा सर्वदा के लिए भूलना चाहेंगे।
साल हो या अनुभव नया होने पर अच्छा लगता है। प्रदूषण मुक्ति के नाम पर ‘सम-विषम संख्या’ वाले वाहन का केजरी सरकार का प्रयोग पूरी तरह फ्लॉप रहेगा। बुद्ध कहते थे जीवन सदा विरोधाभासों में गति करता है। उन्होंने कहा था कि उनकी देहयात्रा उपरान्त उनकी कहीं भी कोई भी मूर्ति नहीं बनाई जानी चाहिए। हुआ ठीक इससे उल्टा अकेले चीन में स्थित शाओलिन टेम्पल में उनकी 10 हज़ार प्रतिमाएं अवस्थित हैं। अन्य अन्यत्र भी वे सर्वाधिक मूर्तिमान हैं। जबकि उन्होंने अपना समूचा जीवन मूर्ति परंपरा के भंजन में व्यतीत किया। आप याद रखना जितना अधिक भ्रष्टाचार केजरी सरकार के पूरे कार्यकाल (अगर पूरा हुआ तो ?) में होगा इतना कभी भी नहीं हुआ होगा !अब दिल्ली की आम जनता अपनी जेब में उतने नकद पैसे लेकर चलेगी जितनी अधिकांश आम जनों की आधी चौथाई तनख्वाह हुआ करती है।ऐसे प्रयोगों और ऐसे सीखतड़ों के हाथ में लगाम अस्तित्व के रथ को कहाँ ले जाएगी , कहा नहीं जा सकता। भ्रष्टाचार की नईं गंगोत्रियों का उदय होने वाला है। सडकों पर जगह- जगह आपको हुज्जत और ज़िरह दिखाई देगी; जो अंततः एक क्षोभ और असंतोष को जन्म देगी। ऐसी व्यवस्थाओं से ही प्रायः अराजकता और अविश्वास की आँधियाँ जन्मती हैं। ऐसे नए से तो पुराना ही भला ? यह रोशन नगरी का चौपट राजा है।
मान मर्दन ही परस्पर परम ध्येय बन जाये, तो सामजिक स्वास्थ्य को खतरा पनपता है। इस साल राजनीति ने पतन की जिन सीढ़ियों पर उतरना प्रारम्भ किया है, वे एक ऐसे अंधे कुँवें की ओर उतरती हैं, जिसका कोई ओर छोर नहीं। विरोध और प्रतिस्पर्धा के अपने मानदंड हैं। उन्हें स्वीकारना भी चाहिए लेकिन इसकी आड़ में जिस छलभरी कुटिल और कुत्सित सियासत की चारपाई बिछी है, उसपर सिर्फ मूल्यों की अर्थी ही उठेगी ,इसमें तनिक भी संदेह नहीं है।
हम पूर्वाग्रहों और ढकोसलों को लम्बे समय तक पाले रखने का अनुभव रखते हैं। आज लाभ और लोभ से परे दृष्टिकोणों का नितांत अकाल दिखाई दे रहा है। मैं अक्सर कहता हूँ कि अध्यात्म के अभाव में राष्ट्र हो राज कभी संतुलित नहीं हो सकता है। असल में हम धर्म ,अध्यात्म और सम्प्रदाय को अक्सर एक ही समझने की भूल करते हैं। ये नदी के अलग अलग किनारे हैं। इनको एक मानना भूल है। जब भी जहाँ भी कोई व्यक्ति अथवा राष्ट्र प्रतिष्ठा के सर्वोच्च शिखर तक पहुंचा है, तो उसकी नींव में अध्यात्मरूपी प्रस्तर खण्डों ने ही उसे मज़बूती प्रदान की है। यदि व्यक्ति के जीवन -संस्कारों और दिनचर्या में आध्यात्मिक मूल्यों का समावेश होगा, तो वह भ्रष्ट होगा ही नहीं। फिर इस भ्रष्टाचार मुद्दा बनाकर नए भ्रष्टाचारों की फसलों को भी खाद पानी नहीं मिलेगा। जड़ों में पानी दीजिये पत्ते स्वयं ही नये आएंगे। पत्तों को झाड़ने ,पोछने या उनपर पानी छिड़कने से कुछ भी नहीं होगा, याद रखियेगा।
नरेंद्र मोदी के रूप में देश को एक शुभ नीतिकार मिला है, पार्टी और पक्ष से इतर उसकी क़द्र करने की ज़रूरत है। जिनका काम है वो अहले सियासत जाने आपका मकसद क्या है आपको साफ होना चाहिए। आज सूचना क्रांति और डिजिटल मीडिया के प्रादुर्भाव वाले युग में प्रत्येक देशवासी अपने भले बुरे के संज्ञान के प्रति चौकस रहे। यह भी समय की मांग है। बीते 17 महीनों में भारत में प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (एफ डी आई ) में 35 फीसदी की बढ़त हुई है। यह एक सुखद संकेत है विशेष रूप से उस परिप्रेक्ष्य में जब विश्व मंदी का दौर है। आंकड़ें बताते हैं कि दुनिया भर में इसमें 16 प्रतिशत की गिरावट दर्ज की गई है। विश्व के सभी सयाने राजनेता मोदी के कार्य कौशल से प्रभावित हैं और हम आदतन उसमें नुक्ताचीनी के सुराख़ ढूढ़ते फिरें; तो कोरी मूर्खता ही होगी। जाते साल का ये नयापन बना रहे तो अच्छा।
‘मेक इन इंडिया’ भारत का पुनर्निर्माण है; किसी पार्टी या विचारधारा का नहीं। अगर देश बनेगा तो सब बनेंगे।कईं देश इसी तर्ज़ पर अपने यहाँ कार्यक्रमों का ताना बाना बुनने के लिए गंभीर हैं। आता साल जो ‘स्टार्टअप इंडिया आंदोलन’ से शुरू होगा उससे भी काफी उम्मीदें हैं। इस अभियान के लिए जिस भारी ऊर्जा ,उत्साह और गतिशीलता का दावा किया जा रहा है; यदि वह विनिर्माण,कृषि और सामाजिक नवोन्मेष के क्षेत्रों को रुपातंरित कर सकी , तो 2016 हम तुम्हें याद रखेंगे। भारतीय अर्थव्यवस्था मौज़ूदा दौर में 7.4 प्रतिशत की दर से विकास के पथ पर आरूढ़ है ;आते दशकों में यदि यह आंकड़ा 9 -10 फीसदी हो गया ;तो क्या कहने !
अच्छे लोकतंत्र के लिए सच्चे लोकतंत्र का होना भी लाज़िमी है। सच्चे लोकतंत्र के लिए जो उसके पाये हैं उन्हें भी मज़बूत रखने की दरकार है। ऐसा ही एक पाया है -पत्रकारिता। बीता साल मीडिया के लिए मनहूसियत से भरा रहा।’रिपोर्टर्स विदआउट बॉर्डर्स’ नामक अंतर्राष्ट्रीय संस्था कहती है कि भारत में पत्रकारों के लिए सबसे बुरा दौर चल रहा है। गत वर्ष भारत में 9 पत्रकारों को मौत के घाट उतार दिया गया।ये सभी खनन माफियाओं और संगठित अपराधों के राजनेताओं से संबंधों आदि विषयों पर रिपोर्टिंग कर रहे थे। यह संख्या पाकिस्तान और अफगानिस्तान से भी ज़्यादा है।हालांकि मीडिया; खासकर टेलीविज़न मीडिया का ऊँट जिस करवट बैठ रहा उसका भगवान ही मालिक है। यह मीडिया एक ऐसे ऐसे बच्चे का जन्म है; जिसकी गर्भअवधि अभी पकी नहीं थी। अब ये पलेगा -बढ़ेगा तो ज़रूर लेकिन अत्यंत विकारों के साथ।
देवियों की पूजा करते हो तो उनके देश में ही उन्हें उनकी स्वरूपा स्त्री के वास्तविक अस्तित्व को मौलिक गरिमा भी प्रदान करो। हम खाली बातें बनाने वाले व्यक्तियों का एक बड़ा समूह हैं, कुछ देशों की इस गलत फहमी को दूर करने की ज़रूरत है। देश के सर्वोच्च शिक्षा संस्थान जवाहर लाल नेहरू विश्वविद्यालय दिल्ली और इनफ़ोसिस पुणे में महिलाओं के साथ हुई यौन घटनाएँ बहुत सी अन्य अनेक ऐसी ही घटनाओं के साथ ऐसे दुःस्वपन थे, जिन्हें हम हमेशा के लिए भूल जाना चाहेंगे। हमें साबित करना होगा कि हम साक्षर भर नहीं हैं, सच्चे अर्थों में शिक्षित हैं।
यदि समृद्धि सिर्फ मायावी है; तो अंततः आपको विक्षिप्त कर देगी। पूरी दुनिया में जितने मनोरोगी और मनो चिकित्सक अमेरिका में हैं इतने अन्यत्र कहीं नहीं। टी वी सीरियल बनाने वाले व्यक्ति ‘बिगबॉस’ बनने के चक्कर में देश का ‘बिगलॉस’ कर रहे हैं; यह तथ्य इसे बनाने वालों को छोड़कर सभी की समझ में आ चुका है। युवा पीढ़ी पहले ही अपने झंझटों में फंसी है; अब ऊपर से ऐसे प्रोग्राम बनाकर क्यों घरों को अवसादगृहों में परिवर्तित करने पर आमादा हो। नए सूर्योदय के साथ ही ऐसे अवसरवादी लोभपरक विचार का अस्त हो, यह भी कामना है।
शिक्षा यदि मूल्य विहीन है तो उसे अर्जित करने वाला निरा पशु ! देश के सर्वाधिक पढ़े लिखे प्रदेशों में गत वर्ष बेज़ुबान जानवरों खासकर सड़क निवासी कुत्तों के साथ जिस तरह की निर्मम घटनाएँ घटी वे निंदनीय हैं। गाँव की चौपाल पर हुक्का गुड़गुड़ा रहे अनपढ़ किसान पूछ रहे हैं कि तुमने पढ़ लिखकर बस यही सीखा ? प्रकृति के अपने नियम हैं इस जगत में सभी कुछ परस्पर आबद्ध हैं।हम उसके नियमों से खेलेंगे तो प्रकृति हमारे जीवन से ! चेन्नई में आई बाढ़ का सभी को दुःख है। हम सब साथ हैं लेकिन अगर फुर्सत मिले, तो सोचना ज़रूर कि यह अव्यवस्था कहीं कोई संकेत तो नहीं जो हमें अपने किये पर पुनर्विचार को प्रेरित कर रही हो ?
जिस देश और दुनिया में सब कुछ शुभ और सुन्दर है वहां प्रतिदिवस एक एक नया वर्ष है और प्रतिपल एक नवहर्ष। फिर उपलब्धियों और शांति की कस्तूरी से यह जगत निश्चित ही सुवासित होता है ; सुगन्धित होता है।
दुनिया सिर्फ दोहन के लिए ही नहीं है कुछ देने के लिए भी है। मरहूम शायर हफ़ीज़ मेरठी यादआ रहें हैं-
‘ मयारे ज़िन्दगी को उठाने के शौक में
किरदार पस्तियों से भी नीचे गिरा दिया,
ये भी तो सोचिये कभी तन्हाई में ज़रा
दुनिया से हमने क्या लिया दुनिया को क्या दिया ?’
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