आडवाणीजी को सम्मान और गरिमा के साथ` मार्ग दर्शक` की भूमिका स्वीकार करना चाहिए – श्रवण कुमार शर्मा

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भारतीय जनता पार्टी ने अपने नये संसदीय बोर्ड और केंद्रीय चुनाव समिति  की घोषणा कर दी है ,जिसमें तीन बुजुर्ग और वरिष्ठ नेताओ को स्थान नहीं दिया गया है.इन नेताओ में अटलजी ,लाल कृष्ण आडवाणी और मुरली मनोहर जोशी शामिल हैं.अटलजी  लंबे समय से अस्वस्थ हैं और सक्रिय राजनीति से अलग हैं .आडवाणी जी को हटाये जाने पर टीवी चैनेल्स  पर  काफी चर्चा की गयी  और कांग्रेस ने आडवाणी जी के प्रति असाधारण सहानुभूति और लोयलटी  का प्रदर्शन किया,कुछ आंसू  जोशीजी के लिए भी गिराए गये.आडवाणीजी की आयु लगभग ८८ वर्ष है  और जोशीजी अपने यशस्वी  जीवन के ८० वर्ष से अधिक पूर्ण  कर चुके हैं .चुनाव से पहले भी  भाजपा  चाहती  थी  की  ये दोनों  लोक सभा का  चुनाव  न लड़कर  राज्य सभा में जाये  और सक्रिय राजनीति  के बजाय  अपने अनुभव से देश का मार्गदर्शन करें .पर इन दोनों की जिद के कारण  पार्टी को इन्हें लोकसभा  का टिकट  देना पड़ा  और मोदी लहर के कारण ये जीत भी गये .यदि  भाजपा और संघ यह चाहते हैं कि अब अगली पीढ़ी को नेतृत्व के लिए सामने लाया जाना चाहिए तो इसमें बुरा क्या है  और मीडिया में इतनी हायतोबा  क्यों ?हर पार्टी को अपना नेतृत्व और रणनीति बनाने का अधिकार है .आडवाणीजी हर संभव प्रयास कर चुके थे कि प्रधानमंत्री के रूप में नरेन्द्र मोदी के नेतृत्व में पार्टी  चुनाव  न लड़े ,पर पार्टी ने मोदीजी के नेतृत्व में चुनाव लड़ा  और २८० लोकसभा जीत कर इतिहास की सबसे बड़ी जीत हासिल की, आडवाणीजी का रथ अब इतिहास की बात बन चुकी है ,पर , आडवाणीजी बदलते समय को स्वीकार नहीं कर पा रहे हैं,जीत के बाद  के उनके बयान और  हाव भाव  यही  बताते  है कि वे अप्रासंगिक हो चुके हैं,जिसे वे  और उनके  कुछ हमदर्द  समझना  नहीं चाहते हैं .पार्टी के अशुभचिंतक उन्हें  असंतुष्टता  और विवादों  का एक केंद्र बनाये रखना चाहते थे  और  इस लिए चाहते थे  कि वे संसदीय दल में बने  रहते  ताकि पार्टी में विवादों को पैदा करने में उनकी ego का कुछ  इस्तेमाल कभी कभी  किया जा सकता .मीडिया में अंग्रेजी  और हिंदी खबरचियो  कीएक बहुत बड़ी जमात है जो यह नहीं चाहते कि मोदी सरकार कामयाब हो , अतः  वे दिन रात ऐसी ख़बरों की खोज में लगे रहते  है जिससे  यह दिखाया जा सके की अंदरूनी तौर पर पार्टी एक नहीं है , यदि ऐसी स्थिति  ना भी  हो तो भी वे अफवाहें  बना कर सूत्रों के हवाले से  समाचार पैदा  कर देतें हैं.पार्टी  शायद समझ चुकी थी की वृधावस्था  और भावनात्मक निर्भरता के कारण पत्रकारों और  दिल्ली राजनीति के दबंगों का एक वर्ग उन्हें हमेशा  मोहरा बनाने  की कोशिश  करता रहेगा .

 

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