सहकारिता की परिभाषा बदलने से हो सकेगा गांव का असली विकास,’राष्ट्र पुनर्निर्माण की बात’ कार्यक्रम में बोले प्रो. आर.के खांडल

Abhishek Sharma

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प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के ‘आत्मनिर्भर भारत’ बनाने वाले भाषण के बाद देश में इस मुद्दे पर जोर-शोर से चर्चाएं शुरू हो गई हैं। लोग आत्मनिर्भर भारत बनाने के लिए कोशिश शुरू कर चुके हैं। वही टेन न्यूज पर उत्तर प्रदेश टेक्निकल युनिवर्सिटी के पूर्व कुलपति एवं पर्यावरणविद प्रो. डाॅ. आर.के खांडल द्वारा’राष्ट्र पुनर्निर्माण की बात’ सप्ताहिक कार्यक्रम की शुरुआत की है।

जैसा कि हम सभी जानते हैं कि एक अदृश्य रूपी वायरस महामारी बनकर पूरे विश्व पर काल बनकर मंडरा रहा है। सभी इससे चिंतित हैं और निश्चित तौर पर इससे बचाव के लिए हर कोई प्रयास कर रहा है। ऐसे में टेन न्यूज की एक नई पहल, जो पूरे भारत के कोने-कोने से ऐसे विद्वानों को ढूंढ कर लाने की कोशिश करेगी , जो देश की उन्नति में कहीं ना कहीं अपना योगदान दे रहे हैं।

ऐसे लोगों को मंच पर लाकर उनसे हम इस महामारी के काल में, वह चाहे डॉक्टर आकर हमें यह बताते हैं कि हमें कैसे रहना हैं, कैसे इस वायरस से लड़ना हैं या समाज के बहुत सारे सामाजिक विद, जो बताते हैं समाज में क्या कुरीतियां हैं? क्या खत्म हो गई हैं और आगे क्या करना चाहिए?

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ऐसे में टेन न्यूज़ अपनी एक मुहिम प्रोफेसर डॉक्टर आर.के खांडल के नेतृत्व में लेकर आया है, जिसका शीर्षक है ‘राष्ट्र पुनर्निर्माण की बात’, यह एक सप्ताहिक सीरीज होगी। जिसमें अपने एक्सपर्ट से हम जानेंगे कि राष्ट्र के पुनर्निर्माण की आवश्यकता क्यों है, हमें पुनर्निर्माण क्यों करना है और कैसे करना है? इन तीन विषयों पर यह कार्यक्रम प्रारंभ हुआ है। यह कार्यक्रम हर गुरुवार शाम को 7:00 बजे से 7:45 बजे के बीच आयोजित किया जाएगा।

इस कार्यक्रम के पहले एपिसोड में टेन न्यूज़ के साथ यूपीटीयू के पूर्व वाइस चांसलर एवं प्रोफेसर डॉक्टर आर.के खांडल हमारे साथ मौजूद रहे और राष्ट्र के पुनर्निर्माण पर खुलकर अपनी राय दी। कार्यक्रम का संचालन अनुसंधान में महारथ हासिल करने वाले प्रो. मयंक पांडेय ने बखूबी किया। उन्होंने गांव को आत्मनिर्भर बनाने वाले के लिए बेहतरीन तरीके से प्रश्न पूछे।

उन्होंने कहा की हमारा भारत राष्ट्र बहुत क्षत-विक्षत हुआ। यह केवल एक राष्ट्र नहीं बल्कि हजारों वर्षों से यहां स्थापित और संपन्न एक सभ्यता है। विश्व में कितनी सभ्यताएं आई मानव जाति की, सभी समाप्त हो गई। लेकिन भारतीय सभ्यता अभी भी जीवित है और जीवित रहेगी। इसका पुनर्निर्माण इसलिए करने की बात चल रही है, क्योंकि निर्माण तो हमारे पूर्वज ऋषि-मुनियों ने कर दिया। पिछले हजार वर्षों में भारत में जो विदेशी शासक आए, इन्होंने भारत को और भारत की परंपराओं को भारतीय समाज को क्षत-विक्षत किया। यह हमारे लिए एक श्राप की तरह है।

उन्होंने आगे कहा कि कोरोना ने पूरे विश्व को बता दिया है कि यदि आपको ढंग में रहना है तो एक ही सभ्यता है, वह है भारतीय सभ्यता। उससे सीख लो उसके रंग में रंग जाओ और वैसे ही बन जाओ।। इसका प्रमाण भी उन लोगों को देखने को मिला है, जो बड़े-बड़े राष्ट्र हैं , जिनके पास विश्व की सबसे बेहतरीन स्वास्थ्य सुविधाएं हैं, वहां लगातार कोरोना से मौत हुई जा रही हैं। अब समय आ गया है कि सभी लोग अपने जीवन में ‘रिसैट’ का बटन दबाएं और अपना जीवन फिर से योजनाबद्ध तरीके से जीने का प्रयास करें। इसमें भारतीय संस्कृति और यहां की सभ्यता को अवश्य अपने जीवन में अपनाएं।

डाॅ खांडल ने कहा , ‘देश की दिशा ठीक करने के लिए उसकी दशा ठीक करने की जरूरत है।’ देश की दिशा ठीक करने का हर कोई संकल्प ले। इस पृथ्वी पर स्वामी विवेकानंद, गौतम बुद्ध, महावीर जैन जन्मे हैं। गौतम बुद्ध ने भारत में बैठे-बैठे पूरे विश्व में बुद्ध की स्थापना कर डाली। जबकि बुद्ध को ना तो चीनी भाषा आती थी, ना जापानी, ना कोई अन्य भाषा, फिर भी विश्व को उन्होंने एक नई राह दिखाई। हमारा देश सबसे सर्वश्रेष्ठ राष्ट्र है और कई लिस्ट में विकास के हिसाब से नीचे आए तो यह अच्छा नहीं लगता। इस लिस्ट में भी भारत नंबर 1 बने, भारत सही दिशा से अच्छी दशा में पहुंचे, इसलिए मैंने राष्ट्र पुनर्निर्माण की बात सोची।

आत्मनिर्भर गांव बनाएं

गांव को आत्मनिर्भर बनाएं इस के दो पहलू हैं। पहला आत्मनिर्भरता और दूसरा है गांव। उन्होंने कहा कि मैं पहले पहलू पर प्रकाश डालना चाहूंगा। आत्मनिर्भर कई प्रकार से हो सकते हैं। जैसे एक बच्चा 18 साल का हो गया और उसे घर वालों ने कह दिया अब तुम खुद खाओ खुद कमाओ और आत्मनिर्भर बनो। हमारी संस्कृति में आत्मनिर्भरता का मतलब है, प्रत्येक व्यक्ति हर एक के लिए, प्रत्येक व्यक्ति समाज के लिए। हमारे पूर्वज हमारे लिए इतना ज्ञान छोड़ कर गए और हमने सब को भुला दिया। अब समय आ गया है कि हम उसे याद करें। उन्होंने ज्ञान दिया कि संसार में मनुष्य का आना ‘मोह माया’ है।

उन्होंने आगे कहा कि ग्रामीण क्षेत्रों में सहकारिता की रूपरेखा ठीक नहीं है। सहकारिता की रूपरेखा को अंग्रेजों ने दिया है। भारत की रूपरेखा तो यह है कि सब लोग मिलकर एक साथ काम करें। अंग्रेजों ने भारत में सहकारिता का कंसेप्ट 1904-05 में की थी। अंग्रेजों की नीति थी कि इन लोगों को ऐसा महसूस कराया जाए कि यह किसी लायक नहीं है और फिर बोलो कि जो संपन्न नहीं है वह मिलकर सहकारिता करें। सहकारिता की रूपरेखा कागजों तक ठीक थी लेकिन अंग्रेजों की नियत ठीक नहीं थी। स्वतंत्रता से पहले अंग्रेजो ने हमारे देश की जो भी व्यवस्था खराब की थी, स्वतंत्रता के बाद उसको ठीक करने की जरूरत थी। सहकारिता से गांव आत्मनिर्भर नहीं बनेगा बल्कि हर तबके के व्यक्ति का योगदान होना चाहिए तभी ग्राम आत्मनिर्भर बन सकेगा।

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