हर क्लास के बाद,10 मिनट के ब्रेक से, स्क्रीनटाइम का बच्चों की आंखो पर नही पडेगा प्रभाव : रचना पंत, प्रधानाचार्या, रामजस स्कूल

ABHISHEK SHARMA

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NOIDA : लॉकडाउन में स्कूल कॉलेज लगातार बंद चल रहे हैं। इस बीच बच्चो की पढ़ाई पर खासा असर पड़ा है। इससे बचने के लिए सभी शिक्षण संस्थाएं ऑनलाइन क्लासेज का सहारा ले रही हैं। लेकिन इसके जितने फायदे है समय के साथ अब इसके उलट प्रभाव भी नजर आने लगे हैं। लगातार घंटो तक लैपटॉप और मोबाइल के स्क्रीन पर नजर गड़ा के पढ़ाई करने से बच्चों की आंखों पर विपरीत असर पड़ रहा है। इसके चलते अभिभावको की चिंता लगातार बढती जा रही है।

टेन न्यूज लगातार अभिभावकों व शिक्षकों की राय जानने की लिए लाइव कार्यक्रम के जरिए लोगों को जागरुक कर रहा है। विशेषज्ञों के जरिए लोगों के मन में चल रहे सवालों के जवाब दिए जा रहे हैं। कोरोना काल के चलते बच्चों की पढ़ाई छूट रही है, जिसको लेकर स्कूलों ने ऑनलाइन एजुकेशन सिस्टम अपनाया है। लेकिन बच्चों पर इसके दुष्प्रभाव भी देखे जा रहे हैं। घंटों मोबाइल और लैपटॉप के सामने बैठने से बच्चों की आंखों पर काफी जोर पड रहा है। वही बच्चों का मानसिक तनाव भी बढ़ रहा है।

इसी को लेकर टेन न्यूज ने एक कार्यक्रम आयोजित किया, जिसमें अभिभावक, मनोरोग विशेषज्ञ, स्कूल टीचर समेत अन्य विशेषज्ञों ने हिस्सा लिया।

कार्यक्रम का संचालन राघव मल्होत्रा द्वारा किया गया उन्होंने बच्चों की पढ़ाई से जुड़े सवालों के जवाब विशेषज्ञों के समक्ष उठाए और उनकी राय जानी। आपको बता दें कि राघव मल्होत्रा आंखो के विशेषज्ञ हैं। उन्होंने बच्चों को ब्रेक लेकर लैपटाॅप, मोबाइल पर आॅनलाइन पढाई करने की सलाह दी।

कार्यक्रम के पैनलिस्ट

– रचना पंत, प्रधानाचार्य, रामजस स्कूल एवं राष्ट्रपति अवार्डी

– डाॅ. शेख अब्दुल बसीर, एम.बी.बी.एस, मनोरोग विशेषज्ञ

– बिपिन शर्मा, अभिभावक एवं जर्नलिस्ट

– निशा राय, नोफा सचिव, जोन-3

डाॅ. शेख अब्दुल बशीर ने अपनी बात रखते हुए कहा कि पूरे देश में कोरोना महामारी फैली हुई है। कोरोना काल में बच्चों पर इसका काफी प्रभाव पड़ रहा है। इस समय जहां बच्चों को मैदानों में खेलना कूदना चाहिए था। ऐसे समय में वे पिंजरे में बंद हैं। निश्चित रूप से इससे उनका शारीरिक विकास थमेगा। लेकिन इन परिस्थितियों से उन्हें काफी कुछ सीखने को मिलेगा। बच्चों के जीवन में यह बेहद कठिन समय है लेकिन ऑनलाइन एजुकेशन के जरिए बच्चे अपने कोर्स को कंप्लीट कर सकते हैं। यह समय बच्चों को काफी कुछ सिखाकर जाने वाला है। जिससे बच्चे नई ऊंचाइयों को छू लेंगे।

उन्होंने कहा कि स्कूली छात्रों पर किए गए एक अध्ययन के मुताबिक करीब 56 प्रतिशत बच्चों को स्मार्टफोन उपलब्ध नहीं है, जबकि लॉकडाउन के दौरान ‘ई-लर्निंग’ के लिए यह एक आवश्यक उपकरण के रूप में उभरा है। यह अध्ययन 42,831 स्कूली छात्रों पर किया गया। Covid-19 के बीच परिदृश्य-जमीनी स्थिति एवं संभावित समाधान’ शीर्षक वाला अध्ययन बाल अधिकार मुद्दों पर काम करने वाले गैर सरकारी संगठन स्माइल फाउंडेशन ने किया है। इस अध्ययन का उद्देश्य प्रौद्योगिकी की उपलब्धता का विश्लेषण करना है।

निशा राय ने कहा कि मेरी बेटी 9वीं क्लास में हैं और ऑनलाइन एजुकेशन में चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है। बच्चे एक साथ कई सब्जेक्ट पढ़ रहे हैं। जो बच्चे क्लास और लैब में एक्सपेरिमेंट करते थे वे अब सिर्फ और सिर्फ घर पर बैठकर पढ़ाई कर रहे हैं। निश्चित रूप से उनकी पढ़ाई का नुकसान हो रहा है, उनका मानसिक विकास पूरी तरह नहीं हो पा रहा है। अब समय यह है कि स्कूल की तरफ से होमवर्क भेज दिया जाता है, उसे डाउनलोड कर लो और खुद समझो।

उन्होंने कहा कि अभिभावक होते हुए भी हमको टीचर बनना पड़ रहा है। ऐसे में उन लोगों को काफी चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है, जो लोग नौकरी कर रहे हैं। क्योंकि वह अपने बच्चों को पढ़ाने के लिए समय नहीं निकाल पा रहे हैं। हर किसी बच्चे के मां-बाप पढ़ाई के लिए समय नहीं निकाल सकते हैं।

उन्होंने आगे कहा कि लॉकडाउन के दौरान बच्चों की पढ़ाई के लिए ऑनलाइन क्लासेज का विकल्प बहुत बढ़िया माना गया था। लेकिन घंटो तक बच्चे लैपटॉप मोबाइल पर बैठे रहते हैं, इससे हम चिंतित है कि क्या इस से उनकी आंखो पर कोई उलट असर तो नहीं पड़ रहा?

मोबाइल लैपटॉप से पढ़ते समय बच्चों का स्क्रीन टाइम काफी अधिक हो रहा है इस पर रामजस स्कूल की प्रधानाचार्य रचना पंत ने कहा कि वर्ल्ड हेल्थ ऑर्गेनाइजेशन ने कहा है कि ऑनलाइन एजुकेशन मे स्क्रीन टाइम 1 घंटे से साढे 3 घंटे का होना चाहिए। बेहतर यह होगा कि अगर बच्चे को यह टाइम रुक-रुक कर ब्रेक देकर दिया जाए तो बेहतर होगा। इससे बच्चे की आंखों पर ज्यादा असर नहीं पड़ेगा। इसके बारे में स्कूल को सोचना होगा कि अगर वह क्लास का टाइम टेबल बनाए तो हर आधे घंटे बाद 10 मिनट का ब्रेक बच्चे को दें। लगातार एक पढ़ाई के बाद दूसरी पढ़ाई ना दें। एक क्लास के बाद बच्चे को म्यूजिक की क्लास दे या फिर फिजिकल एजुकेशन की क्लास है, जिससे कि बच्चे का मानसिक संतुलन ठीक रहेगा और उसका मन पढ़ाई में अधिक लग सकेगा।

उन्होंने आगे कहा कि इसी के साथ-साथ बच्चों के अभिभावकों को भी थोड़ा नॉर्मल होना पड़ेगा। क्योंकि किसी को नहीं पता कि कोरोना वायरस महामारी कब तक चलने वाली है। बच्चों और अभिभावकों को ऑनलाइन एजुकेशन की आदत डाल लेनी चाहिए। क्योंकि विदेशों में तो यह सिस्टम वर्षों से चला आ रहा है, लेकिन इमरजेंसी के तौर पर हमने इस सिस्टम को अपनाया है। अभिभावकों एवं शिक्षकों को बैठकर सही समय के बारे में चर्चा करनी चाहिए और जिस समय अभिभावक अपने बच्चे को पढ़ाने में सक्षम हो वह समय बच्चों की पढ़ाई के लिए फिक्स कर दिया जाए।

विपिन शर्मा ने अपनी बात रखते हुए कहा कि अगर अभिभावक बच्चों का संपूर्ण विकास चाहते हैं तो उन्हें इस कठिन समय में बच्चों का साथ देना चाहिए। किसी को नहीं पता कि यह कोरोना वायरस महामारी कब खत्म होगी। लेकिन हम एक अभिभावक तौर पर रुक नहीं सकते, हमें अपने बच्चों की पढ़ाई के लिए ऑनलाइन एजुकेशन सिस्टम का सहारा लेना ही होगा। चाहे इसके गलत प्रभाव बच्चों पर पड़ रहे हैं। बच्चों पर इसका गलत प्रभाव ना पड़े इसके लिए स्कूल एवं अभिभावकों को बैठकर सोचना होगा और इसका ऐसा हल निकाला जाए जिससे अभिभावक बच्चे एवं शिक्षकों को कोई परेशानी ना हो।

उन्होंने आगे कहा कि जब तक बच्चों के आसपास अभिभावक रहते हैं, तब तक वे अपनी पढ़ाई को लेकर सीरियस रहते हैं। जैसे ही अभिभावक इधर-उधर हुए, बच्चे तुरंत अपना दिमाग लगाना शुरू कर देते हैं और पढ़ाई से कैसे बचा जाए इसका हल निकालने में वह भी लगे हुए हैं। इसलिए अभिभावकों को पूरी कोशिश करनी होगी और ऑनलाइन एजुकेशन सिस्टम के बहाने बच्चा गलत रास्ते पर ना भटक जाए इसका भी ख्याल अभिभावकों को ही रखना होगा।

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