समाज के रत्न – दम्पति डॉ राजेंद्र और सुचेता धामणे की अनोखी कहानी – बड़ी पहल से दिखाया सरकार को आईना

ROHIT SHARMA

नई दिल्ली :– देश में कुछ ऐसे अनोखे लोग होते है, जिनकी प्रेरणा से बहुत कुछ सीखने को मिलता है । वो लोग प्रचार प्रसार के लिए काम नही करते है, सिर्फ समाजसेवा पर ध्यान होता है । उनका एक ही मकसद होता है कि किस तरह से निस्वार्थ होकर लोगों की सेवा की जाए , क्योंकि वो लोग सिर्फ सेवा को ही धर्म मानते है।

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वही ऐसे अनोखे लोगों को ढूंढकर टेन न्यूज़ नेटवर्क आपके सामने लाता है। आपको बता दे कि टेन न्यूज़ नेटवर्क ने “समाज के रत्ना , एक नई दास्तां” कार्यक्रम शुरू किया है। वही इस कार्यक्रम में महाराष्ट्र की दम्पति डॉ राजेंद्र और सुचेता धामणे मुख्य अतिथि के रूप में हिस्सा लिया , ये वो अनोखे रत्न है, जिन्होंने सिर्फ सेवा को ही धर्म माना है । साथ ही इस कार्यक्रम में राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग के सदस्य ज्ञानेश्वर मुले, अर्जुन फाउंडेशन की अध्यक्ष हिमांगी सिन्हा शामिल रही।

वही इस कार्यक्रम का संचालन अर्जुन फाउंडेशन की स्वयंसेवक साक्षी चावला ने किया । साक्षी चावला एक समाजसेविका , लेखिका और तेजतर्रार एंकर भी है । उन्होंने इस कार्यक्रम के मुख्य अतिथि से महत्वपूर्ण प्रश्न किए , जिसका जवाब दिया गया । आपको बता दें कि यह कार्यक्रम टेन न्यूज़ नेटवर्क के यूट्यूब और फेसबुक चैनल पर लाइव किया गया है।

चलते है एक नई दास्तां पर , जिन्होंने बिना प्रचार प्रसार के अनोखे काम किए। पढें धामणे दम्पति की कहानी, जो समाज के रत्ना है :–

महाराष्ट्र में नासिक के पास सिंगले गांव के रहने वाले दंपति डॉ राजेंद्र और डॉक्टर सुचेता धामणे एक साथ अपनी पढ़ाई पूरी की कॉलेज के दिनों में ही उन्होंने ठान लिया था कि दोनों समाज की भलाई के लिए काम करेंगे । डॉ राजेंद्र ने गांव के पास ही अहमदनगर में एक क्लिनिक में अपनी प्रैक्टिस शुरू की और डॉक्टर सुचेता एक मेडिकल कॉलेज में पढ़ने लगी ।

डॉ राजेंद्र बताते हैं कि अहमदनगर आते जाते समय वह हर रोज बहुत सी बेसहारा महिलाओं को देखते थे , जो कभी भीख मांग रही होती थी , तो कभी फुटपाथ पर सो रही होती थी

उन्होंने कहा कि शिरडी अहमदनगर हाईवे पर बहुत से लोग अपने परिवार की ऐसी महिलाओं को छोड़ जाते हैं , जिनकी मानसिक स्थिति ठीक नहीं होती है । हमने कई बार इन महिलाओं से बात हुई , लेकिन कोई जानकारी नहीं मिली ।

हम दोनों कभी कभी सोचते थे की इन लोगों के लिए क्या किया जा सकता है और फिर एक ऐसी घटना हुई , हम खुद को इस राह पर चलने से रोक नहीं पाए । एक दिन हम दोनों अपने काम पर जा रहे थे कि हमने देखा की एक महिला कूड़े के ढेर पर बैठी है , पास जाकर देखा तो पता चला कि वह मल खा रही थी । यह देखकर इनकी हैरत का ठिकाना नहीं रहा और हमने तुरंत उस महिला के पास जाकर उसे संभाला । उसे साफ किया और फिर उसे अपना खाना दे दिया।

राजेंद्र कहते हैं कि इस घटना ने उन्हें अंदर तक हिला दिया और उसके बाद उन्होंने ठान लिया कि वह अब इन महिलाओं को अनदेखा नहीं करेंगे , इसके बाद यह दोनों हर रोज हाईवे पर बेसहारा घूमने फिरने महिलाओं को खाना पहुंचाने लगे।

खासबात यह है कि डॉक्टर सुचिता खुद सबके लिए खाना पैक करती और काम पर जाते समय सभी महिलाओं को बांटती थी , यह क्रम कई साल तक चला , अक्सर वह इन महिलाओं से बात करने की कोशिश भी करते थे । ताकि उनके घर परिवार के बारे में कुछ पता चल सके , लेकिन ज्यादातर महिलाएं मानसिक तौर पर बीमार थी तो उन्हें कुछ खास जवाब नहीं मिलता था।

एक दिन 25 बरस की लड़की से उनकी मुलाकात हुई जो इधर-उधर घूम रही थी उससे बात करने पर पता चला कि उसकी दिमागी हालत थोड़ी ठीक नहीं है , तो परिवार ने उसे छोड़ दिया । उस लड़की से मिलने के बाद हम सोचने लगे कि आखिर हम किस मोड़ पर खड़े हैं , हमारे यहां कहने के लिए बेटियों की सुरक्षा को लेकर बहुत कुछ है , लेकिन यह है लड़की फुटपाथ पर रह रही है ।

 

उस लड़की ने बताया कि वह डिवाइडर के बीच में सोती है , ताकि कोई भी उसे देख ना सके इस बात ने हमें झकझोर दिया और हमें ठान लिया कि अब कुछ ऐसा करना होगा जिससे इन महिलाओं को एक सुरक्षित जीवन मिल सके।

उन्होंने कहा महिलाओं के लिए एक शेल्टर होम बनवाने की ठानी और इसमें उनके पिता ने उनकी मदद की । बता दे कि डॉ राजेंद्र के माता पिता शिक्षक थे और उस समय तक रिटायर हो चुके थे यह उनके माता-पिता की ही शिक्षा थी जो उन्हें समाज की सेवा करने की प्रेरणा देती थी ।

जब उनके माता-पिता को पता चला कि वह ऐसा कुछ कर रहे हैं तो उन्होंने अपनी जमीन उन्हें शेल्टर होम बनाने के लिए दे दी , जिसका निर्माण कार्य शुरू हुआ तो उन्हें और भी जगहों से मदद मिली और साल 2007 में शेल्टर होम बन गया।

उन्होंने कहा कि हम सबसे पहले एक महिला को लेने पहुंचे , जिन्हें हम नियमित तौर पर खाना देते थे , हमें लगा कि उन्हें सबसे पहले लेकर आते हैं , लेकिन उन्होंने आने से मना कर दिया वह बोली अगर वह उस जगह से चली गई तो उनका भाई उन्हें कैसे खोजेगा।

दरअसल सालों पहले उनका भाई उन्हें यह कहकर फुटपाथ पर छोड़ गया कि वह थोड़ी देर में आएगा , तब से वह उसी जगह पर बैठती है । जब उनकी ऐसी कहानियां हम सुनते तो लगता कि क्या वाकई में हम ऐसे समाज में रह रहे हैं ,जहां लोग अपनी के भी सगे नहीं हैं ।

उन्होंने कहा उस महिलाओं को घर पर ले आए इस तरह धीरे-धीरे उनके शेल्टर होम में हर दिन कोई ना कोई महिला आती। माउली सेवा प्रतिष्ठान में इन महिलाओं के रहने खाने और इलाज आदि की हरसंभव व्यवस्था की गई है ।

उन्होंने बताया कि एक महिला से शुरू हुई कहानी आज 300 से ज्यादा महिलाओं और उनके 29 बच्चों तक पहुंच गई है , इतने सालों में बहुतों की मृत्यु भी हुई , जिनका सम्मान पूर्वक अंतिम संस्कार किया गया ।

डॉ सुचेता धामणे ने बताया कि शेल्टर होम जब शुरू हुआ तो इन महिलाओं की देखभाल करना बहुत ही मुश्किल रहा सभी महिलाएं दिमाग रूप से अस्वस्थ थी तो सब का खास ख्याल रखना पड़ता था। नहलाने से लेकर खाना खिलाने और फिर दवाइयां देने तक सभी काम मेरा था ।

इन महिलाओं की देखभाल में कोई कमी ना आए इसके लिए मेने अपनी नौकरी छोड़ दी और सिर्फ शेल्टर का काम देखने लगी इतनी महिलाओं के लिए तीन वक्त का खाना बनाना सिर्फ सबका ध्यान रखना आसान काम नहीं था पर कहते हैं की कोशिश करने वालों की हार नहीं होती।

धीरे-धीरे डॉ राजेंद्र और सुचेता के प्रयासों से बहुत-सी महिलाओं की स्थिति में सुधार आया अब यह महिला भी शेल्टर होम के कामों में हाथ बताती हैं । उन्होंने सबको टीम में बाटा हुआ है जिन पर अलग-अलग कामों की जिम्मेदारी है ।

वह बताती हैं इन महिलाओं में कोई यौन शोषण का शिकार हुई है और इस वजह से गर्भवती हो गई , तो परिवार ने छोड़ दिया । किसी को ससुराल वालों के अत्याचारों की वजह से सड़क पर आना पड़ा , तो कोई मानसिक रूप से ठीक नहीं तो , उसे छोड़ गए।

हम अक्सर यही सोचते हैं कि महिलाएं सड़क तक कैसे पहुंच जाती हैं क्योंकि उनके अपने ही उन्हें बोझ समझने लगते हैं और क्यों सरकार और प्रशासन इस बारे में कुछ नहीं करता लेकिन धामणे दंपति पिछले 20 सालों से इन महिलाओं की देखभाल में जुटा है उन्होंने इन महिलाओं के इलाज के लिए इंटेंसिव केयर यूनिट भी बनवाई है और साथ ही हर एक को सही इलाज भी मिल रहा है ।

उनका उद्देश्य सिर्फ इन महिलाओं को छत या खाना देना नहीं है बल्कि एक जिंदगी देना चाहते हैं उनकी कोशिश रहती है कि यह महिलाएं पूरी तरह से ठीक हो जाए और अपने बारे में सब कुछ उन्हें याद आए।

उन्होंने बताया कि सरकार से उन्हें अभी तक कोई भी किसी तरह का सपोर्ट नहीं मिला यह शायद इसलिए है , क्योंकि फुटपाथ पर रहने वाली है महिलाएं बेनाम होती हैं , इनका वोटर लिस्ट में नाम नहीं होता और इसलिए किसी को इनकी परवाह नहीं है इन महिलाओं को उनकी पहचान देने के लिए धामणे दंपति ने सब का आधार कार्ड और वोटर कार्ड भी बनवाया है ताकि उन्हें गुमनामी की जिंदगी से बाहर लाया जा सके।

साथ ही उन्होंने इन महिलाओं को आत्मनिर्भर बनाने की पहल भी शुरू की है अलग-अलग कार्यों के लिए उनकी टीम बनाई जाती है जिसमें रसोई , साफ सफाई , गोपालन , खेती आदि शामिल है । महिलाओं को धूप अगरबत्ती आदि बनाना भी वह सिखा रहे हैं । डॉ राजेंद्र के मुताबिक इन महिलाओं की देखभाल और बच्चों की पढ़ाई आदि पर प्रतिमाह 8 लाख तक का खर्च होता है , इसके लिए वह डोनेशन पर निर्भर करते हैं।

राष्ट्रीय मानवाधिकार के सदस्य ज्ञानेश्वर मुले ने कहा कि महात्मा गांधी की छवि राजेंद्र और सुचेता धामने में दिखाई देती है । महात्मा गाँधी सेवा को अपना धर्म मानते थे , जिसके चलते आज पूरा देश महात्मा गांधी को राष्ट्रीय पिता के रूप में मानता है । उन्होंने कहा कि आज देश मे कुछ अनोखे व्यक्ति होते है जो सेवा को धर्म मानते है , जिसके चलते उन्हें समाज के प्रति प्यार और स्नेह हमेशा मिलता है । मूझे सिर्फ इस बात से दुख है कि इस मामले में प्रशासन और सरकार आगे क्यों नही आई । सरकार को इस महान काम में बढ़चढ़कर हिस्सा लेना चाहिए। साथ ही उन्होंने कहा कि इस मुद्दे को लेकर में आवाज उठाऊंगा, जिससे सरकार इस पर काम करना शुरू करें ।

अर्जुन फाउंडेशन के अध्यक्ष हिमांगी सिन्हा ने कहा कि डॉ राजेन्द्र और सुचेता धामने की कहानी सुनकर बहुत रोना आ गया , जिस पहल को धामने दम्पति कर रहे है वो काफी ज्यादा सरहानीय है , उन्होंने बहुत ही ज्यादा अच्छा काम किया है । आज उन्हें पूरी दुनिया के लोग सलाम कर रहे है और आगे भी करेंगे । हमारा सौभाग्य होगा कि हम उनके साथ जुड़कर काम कर रहे है  । में यह भी चाहती हूँ कि सरकार को भी इस पहल में आगे आना चाहिए । ऐसे लोग जिन्होंने समाज के लिए बहुत कुछ किया परंतु समाज उनके कार्यों से अनभिज्ञ है , ऐसे समाज के रत्नों को सबके सामने लाने का प्रयास दिल्ली की अर्जुन फाउंडेशन कर रहा है।

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