महाराष्ट्र की मदर टेरेसा सिंधुताई सपकाल की अनोखी कहानी – तमाम नामी हस्तियों समेत पीएम खुद कर चुके है तारीफ 

ROHIT SHARMA

नई दिल्ली :– देश में कुछ ऐसे अनोखे लोग होते है, जिनकी प्रेरणा से बहुत कुछ सीखने को मिलता है । वो लोग प्रचार प्रसार के लिए काम नही करते है, सिर्फ समाजसेवा पर ध्यान होता है । उनका एक ही मकसद होता है कि किस तरह से निस्वार्थ होकर लोगों की सेवा की जाए , क्योंकि वो लोग सिर्फ सेवा को ही धर्म मानते है।

वही ऐसे अनोखे लोगों को ढूंढकर टेन न्यूज़ नेटवर्क आपके सामने लाता है। आपको बता दे कि टेन न्यूज़ नेटवर्क ने “समाज के रत्ना , एक नई दास्तां” कार्यक्रम शुरू किया है। वही इस कार्यक्रम में  महाराष्ट्र की वरिष्ठ समाजसेवी सिंधुताई सपकाल ने मुख्य अतिथि के रूप में हिस्सा लिया , ये वो अनोखी रत्न है, जिन्होंने सिर्फ सेवा को ही धर्म माना है । साथ ही इस कार्यक्रम में राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग के सदस्य ज्ञानेश्वर मुले, अर्जुन फाउंडेशन की अध्यक्ष हिमांगी सिन्हा शामिल रही।

वही इस कार्यक्रम का संचालन शुभदा जाम्भेकर ने किया । शुभदा जाम्भेकर एक समाजसेविका , लेखिका और तेजतर्रार एंकर भी है । उन्होंने इस कार्यक्रम के मुख्य अतिथि से महत्वपूर्ण प्रश्न किए , जिसका जवाब दिया गया । आपको बता दें कि यह कार्यक्रम टेन न्यूज़ नेटवर्क के यूट्यूब और फेसबुक चैनल पर लाइव किया गया है।

चलते है एक नई दास्तां पर , जिन्होंने बिना प्रचार प्रसार के अनोखे काम किए। पढें महाराष्ट्र की वरिष्ठ समाजसेवी सिंधुताई सपकालकी कहानी, जो समाज के रत्ना है :–

https://www.youtube.com/watch?v=zhPnGlhy_mk

 

समाज में बहुत सारी महिलाएं हैं जो अपने ऊपर हुए जुल्म को नियति मान कर बैठ जाती हैं लेकिन सिंधु ताई उनके लिए एक उदाहरण हैं। जो अपने ऊपर हुए सितम को सहती हैं लेकिन फिर भी दूसरों की मदद के लिए हाथ आगे बढ़ाती हैं। सिंधु ताई ने अपनी जिंदगी अनाथ बच्चों की सेवा में गुजारी और बन गईं महाराष्ट्र की मदर टेरेसा। तो जानिए सिंधु ताई के संघर्षमय जीवन की दास्तान।

सिन्धुताई का जन्म 14 नवंबर 1948 महाराष्ट्र के वर्धा जिले में ‘पिंपरी मेघे’ गाँव मे हुआ। उनके पिताजी का नाम ‘अभिमान साठे’ है, जो कि एक चरवाह थे। सिंधुताई ने अपना बचपन गरीबी में निकाल दिया है , उन्हें पढ़ने का बहुत शोक था , उनके पिता भी चाहते थे की सिंधुताई पढ़कर अपना भविष्य बना सके | उनके पिता सिन्धु कि माँ के खिलाफ जाकर सिन्धु को पाठशाला भेजते थे। माँ का विरोध और घर की आर्थिक परस्थितीयों की वजह से सिन्धु की शिक्षा मे बाधाएँ आती रही।

पहले समय में अगर किसी के यहाँ बच्ची का जन्म होता था तो परिवारों में मायूसी छाह जाती थी , क्योकि उस समय बेटों को तबज्जु दी जाती थी | ऐसा ही सिंधुताई के साथ हुआ , उन्हें घर में कोई पसंद नहीं करता था , इसलिए उन्हे घर मे ‘चिंधी'(कपड़े का फटा टुकड़ा) बुलाते थे। परन्तु उनके पिताजी सिन्धु को बहुत चाहते थे , लेकिन माँ उन्हें पसंद नहीं करती थी |

 

9 साल की उम्र में सिंधुताई की शादी उनसे काफी बड़ी उम्र के व्यक्ति से कर दी गई। सिंधुताई ने आगे पढ़ने की इच्छा जताई, तो ससुराल वालों ने इसका विरोध किया। जब ताई ने अपनी इच्छाओं को मारना उचित नहीं समझा, तो गर्भवती होने के बावजूद पति ने पिटाई करके घर से निकाल दिया।

 

खासबात यह है की सिंधुताई ने कई महीने सड़कों पर जिंदगी गुजारी , फिर एक तबेले में बेटी को जन्म दिया। सिन्धुताई ने बच्ची के जन्म के तीन साल बाद तक ट्रेनों में भीख मांगकर गुजर-बसर की।

 

सिंधु ताई बताती हैं कि जब उन्होंने अपनी बेटी को जन्म दिया तो मेरे पास कोई नहीं था। तब अपने गर्भनाल को मैंने पत्थर से मार-मारकर काटा। इतने कष्टों को झेलने के बाद सिंधु ताई ने निश्चय कर लिया कि आगे भी उन्हें ऐसी ही मजबूती दिखानी है।

 

सिंधुताई के जीवन में आया नया मोड़ :–

सिंधुताई सपकाल  ने कहा की मेरी जीवन में एक ऐसा मोड़ आया , जो में समाजसेवा के रास्ते पर चल पड़ी , एक दिन रेलवे स्टेशन पर मुझे एक बच्चा पड़ा मिला , यहीं से उन्हें बेसहारा बच्चों की सहायता करने की प्रेरणा मिली। इसके बाद शुरू हुआ एक अंतहीन सिलसिला, जो आज महाराष्ट्र की 6 बड़ी समाजसेवी संस्थाओं में तब्दील हो चुका है। इन संस्थाओं में 1200 से ज्यादा बेसहारा बच्चे एक परिवार की तरह रहते हैं।

 

सिंधुताई की संस्था में ‘अनाथ’ शब्द का इस्तेमाल वर्जित है। बच्चे उन्हें ताई (मां) कहकर बुलाते हैं। इन आश्रमों में विधवा महिलाओं को भी आसरा मिलता है। वे खाना बनाने से लेकर बच्चों की देखरेख का काम करती हैं।

साथ ही उन्होंने कहा की इन आश्रमों में रहने वाले बच्चों के पालन-पोषण व शिक्षा-चिकित्सा का भार मेरे कंधों पर है।  रेलवे स्टेशन पर मिला पहला बच्चा आज उनका सबसे बड़ा बेटा है। वह उनके बाल निकेतन, महिला आश्रम, छात्रावास व वृद्धाश्रम का प्रबंधन देखता है।

साथ उन्होंने कहा की आज 300 से ज्यादा बेटियों की धूमधाम से शादी कर चुकी हैं और उनके परिवार में 36 बहुएं भी आ चुकी हैं। राष्ट्रीय, अंतरराष्ट्रीय समेत करीब 700 अवॉर्ड मिल चुके है ,आज भी में बच्चों को पालने के लिए किसी के आगे हाथ फैलाने से नहीं चूकतीं। सिंधुताई कहती हैं कि मांगकर यदि इतने बच्चों का लालन-पालन हो सकता है, तो इसमें कोई हर्ज नहीं।

 

आपको बता दे कि सिंधुताई को ‘आइकोनिक मदर’ का नेशनल अवार्ड तत्कालिक राष्ट्रपति प्रणव मुखर्जी के हाथों मिला था। सिंधुताई के जीवन पर ‘मी वनवासी’ बायोपिक मराठी में पब्लिश हुई है। वहीं ‘मी सिंधुताई सपकाल’ फिल्म भी बन चुकी है।

 

महाराष्ट्र की वरिष्ठ समाजसेवी सिंधुताई सपकाल को  रुस में एक कार्यक्रम में शामिल होने के लिए न्योता मिला था। सिंधुताई के भाषण से रुस के लोग भी काफी प्रभावित हुए। 70 साल की सिंधुताई के परिवार में 36 बहुएं, 300 से ज्यादा दामाद और करीब हजार बच्चे हैं। ये वो लोग हैं, जो सिंधुताई को यहां-वहां भटकते मिले थे। कोई बच्चा भीख मांगते मिला, तो किसी को जन्म के बाद कोई मां-बाप छोड़कर चले गए थे। सिंधुताई के आश्रम में इन बच्चों को सहारा मिला। फिर सिंधुताई ने ही उनकी शादी भी की।

 

राष्ट्रीय मानवाधिकार के सदस्य ज्ञानेश्वर मुले ने कहा कि महाराष्ट्र की वरिष्ठ समाजसेवी सिंधुताई सपकाल की जितनी तारीफ की जाए उतना कम है | आज के समय में सिंधुताई उन महिलाओं के लिए उदाहरण है , जो संघर्ष कर रही है | साथ ही उन्होंने कहा की सिंधुताई ने देश का नाम विदेशों में रोशन किया है , आज तमाम हस्तिया समेत पीएम नरेंद्र मोदी खुद तारीफ कर चुके है | कहते है की समाज के प्रति काम करोगे , तो आने वाले समय समाज उन्हें उच्चस्तरीय पर बैठा देता है | आज हमारे सामने मदर टेरिसा बैठी है , जिनकी वजह से मुझे बहुत ही ज्यादा प्रेरणा मिली है |

अर्जुन फाउंडेशन के अध्यक्ष हिमांगी सिन्हा ने कहा कि  महाराष्ट्र की वरिष्ठ समाजसेवी सिंधुताई सपकाल की कहानी सुनकर बहुत रोना आ गया , जिस पहल को सिंधुताई सपकाल कर रही है वो काफी ज्यादा सरहानीय है , उन्होंने बहुत ही ज्यादा अच्छा काम किया है । आज उन्हें पूरी दुनिया के लोग सलाम कर रहे है और आगे भी करेंगे । हमारा सौभाग्य होगा कि हम उनके साथ जुड़कर काम कर रहे है  । में यह भी चाहती हूँ कि सरकार को भी इस पहल में आगे आना चाहिए । ऐसे लोग जिन्होंने समाज के लिए बहुत कुछ किया परंतु समाज उनके कार्यों से अनभिज्ञ है , ऐसे समाज के रत्नों को सबके सामने लाने का प्रयास दिल्ली की अर्जुन फाउंडेशन कर रहा है।


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