खलनायक बनने की ओर अग्रसर हैं नरेंद्र मोदी और अमित शाह
यह भाजपा है, या कांग्रेस? जी हाँ, यह सवाल आज कल आम जनता ही नहीं, बल्कि भाजपा के ही कार्यकर्ता एक-दूसरे से करते नजर आ रहे हैं, यह सवाल सोशल साइट्स पर भी चर्चा का विषय बना हुआ है। जो हिंदू कट्टरपंथी रात-दिन भाजपा, नरेंद्र मोदी और अमित शाह सहित हर विवादित भाजपा नेता के पक्ष में तर्क गढ़ कर बहस करते नजर आते थे, वही कट्टरपंथी आज कल मौन नजर आ रहे हैं, या फिर स्वयं भी नरेंद्र मोदी और अमित शाह की आलोचना करते हुए यही सवाल दोहराते दिख रहे हैं कि यह भाजपा है, या कांग्रेस? यह सवाल यूं ही नहीं उठा है। लोगों के पास सवाल उठाने का सटीक कारण है।
इस सवाल की शुरुआत दलित छात्र रोहिथ वेमुला आत्म हत्या कांड के बाद से हुई है। रोहिथ की आत्म हत्या को वामपंथियों ने मुद्दा बनाया, जिसे भुनाने में कांग्रेस ने अपनी समस्त ऊर्जा झोंक दी। जनता भी समझती है कि रोहिथ की आत्म हत्या पर फर्जी तर्क गढ़े गये और केंद्र सरकार को बदनाम करने का प्रयास किया गया, इसीलिए भाजपा कार्यकर्ताओं के साथ अधिकांश लोग भी सरकार का लगातार बचाव करते नजर आये, लेकिन प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी 22 जनवरी 2016 को सार्वजनिक रूप से अफजल के पक्ष में आंदोलन चलाने वाले रोहिथ को लेकर भावुक हो गये, साथ ही उन्होंने रोहिथ को भारत माँ का लाल करार दे दिया, तो उन लाखों लोगों के हृदय को आघात लगा, जो रोहिथ की आत्म हत्या पर सरकार का बचाव कर रहे थे।
एक तरह से नरेंद्र मोदी द्वारा रोहिथ आत्म हत्या कांड पर समर्थक अपमानित ही किये गये, जिन्हें तत्काल मौन होना पड़ा, लेकिन जेएनयू कांड पर समर्थक रोहिथ कांड भूल कर पुनः सक्रिय हो गये और एक नई ऊर्जा के साथ देश भर में राष्ट्रवाद की अलख जगाने लगे। वामपंथियों को पीछे हटने पर मजबूर होना पड़ा। वामपंथियों के शब्दों में बदलाव इसी दबाव के कारण आया। भारत के टुकड़े करने के नारे लगाने वाले वामपंथी कहने लगे कि उन्हें संविधान में आस्था है, देश और लोकतंत्र में आस्था है, इस बीच उत्तर प्रदेश में स्थित जिला बदायूं के अतिवादी भाजयुमो जिलाध्यक्ष कुलदीप वार्ष्णेय ने कन्हैया कुमार की जीभ काटने पर पांच लाख रूपये इनाम देने की घोषणा कर दी, तो कुलदीप को तत्काल भाजपा से निष्कासित कर दिया गया। लोकतंत्र में ऐसे विचारों को कोई जगह नहीं होनी चाहिए, इसलिए कुलदीप वार्ष्णेय को भाजपा से निष्कासित करना सही निर्णय कहा जायेगा, लेकिन भाजपा के पांचाल क्षेत्र के अध्यक्ष बीएल वर्मा के बयान से आम जनता ही नहीं, बल्कि भाजपा कार्यकर्ता भी मायूस हैं और खुल कर भाजपा की आलोचना करते नजर आ रहे हैं। बीएल वर्मा ने अपनी ही पार्टी के युवा मोर्चा के जिलाध्यक्ष कुलदीप वार्ष्णेय को पागल करार दे दिया, लेकिन बीएल वर्मा के विरुद्ध पार्टी ने अभी तक कोई कार्रवाई नहीं की है, जिससे आम जनता के साथ भाजपा कार्यकर्ता ही यह सवाल उठाने लगे हैं कि यह भाजपा है, या कांग्रेस?
सवाल उठाने का आशय यह है कि कट्टरपंथी छवि के कारण नरेंद्र मोदी आज पूर्ण बहुमत की सरकार के प्रधानमंत्री हैं। कट्टरपंथी छवि के कारण ही अमित शाह केंद्र में नेतृत्व करने वाली भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष हैं। कट्टरपंथी छवि के कारण ही नरेंद्र मोदी और अमित शाह हिंदू कट्टरपंथियों के चहेते हैं, वहीं मुस्लिम कट्टरपंथियों के दुश्मन नंबर- वन हैं। कश्मीर में पीडीएफ के साथ सरकार बनाने पर हिंदू कट्टरपंथी नरेंद्र मोदी और अमित शाह को कूटनीतिज्ञ मान सकते हैं, लेकिन देश द्रोहियों के पक्षधरों को भारत माँ का लाल कहने पर क्षमा नहीं कर सकते। देश द्रोहियों का पक्ष लेने वालों का हौसला बढ़ाने पर हिंदू कट्टरपंथी ही उनके दुश्मन नंबर- वन हो सकते हैं, इसलिए समय रहते नरेंद्र मोदी और अमित शाह को सचेत होना पड़ेगा, क्योंकि हिंदू कट्टरपंथियों की विचारधारा का नेतृत्व करने वाले नेताओं और दलों का देश में अभाव है। हिंदू कट्टरपंथियों को अपना समर्थक बनाये रखने के लिए उनकी विचारधारा पर ही चलना पड़ेगा, वरना हिंदू कट्टरपंथी पल भर में उन्हें भी लाल कृष्ण आडवाणी बना सकते हैं। हिंदू कट्टरपंथियों की भी दूसरी पसंद कांग्रेस ही है, इसीलिए वे खुल कर कहने लगे हैं कि यह भाजपा है, या कांग्रेस? और अगर, भाजपा भी कांग्रेस जैसी ही है, तो फिर कांग्रेस ही सही है। कम से कम उसकी विचारधारा स्पष्ट तो है, इस संकेत का अर्थ नरेंद्र मोदी और अमित शाह को तत्काल समझना होगा, क्योंकि जिस गति से वे नायक बने हैं, उसी गति से खलनायक भी बन सकते हैं।
बी. पी. गौतम
स्वतंत्र पत्रकार