कोई भी लड़ाई हथियारों से नहीं परन्तु हौसले से जीती जाती है: हरसिमरत बादल

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नई दिल्ली, (22 सितम्बर, 2015): अगर बहादुर सिख फौजियों ने 1965 के भारत-पाक युद्ध के दौरान अपनी बहादुरी के जौहर नहीं दिखाये होते तो आज देश का नक्शा कुछ और होता। इस आशय को केन्द्रीय खाध प्रस्संकरण मंत्री हरसिमरत कौर बादल ने श्री गुरु तेग बहादर खालसा कालेज में 1965 की भारत-पाक युद्ध की यादों को ताजा करने के लिए करवाऐ गए सेमीनार के दौरान प्रकट किया। बादल ने अपनी बात पर जोर देते हुए कहा कि कोई भी युद्ध हथियारों से नहीं अपितू हौसले से जीता जाता है तथा सिखों ने अपनी बहादुरी की मिसाल हमेंशा ही कायम रखी है।
बादल ने 1965 के युद्ध में पश्चिमी कमान के इन्चार्ज लैफ्टिनेंट जनरल हरबख्श सिंह की जीवनी को ब्रिगेडियर के.एस. काहलों द्वारा पंजाबी भाषा में किये गए अनुवाद का प्रतीक ‘‘ पंजाब एवं कश्मीर का रक्षक‘‘ किताब को भी जारी किया। इतिहास का हवाला देते हुए बादल ने कहा कि यदि हरबख्श सिंह ने इस युद्ध के दौरान तत्कालिन फौज प्रमुख का जुबानी हुक्म मान कर श्री अमृतसर शहर खाली कर दिया होता तो हम श्री ननकाणा साहिब की तरह श्री हरिमंदिर साहिब को भी अपने हाथों से सदा के लिए निकाल देते। बादल ने शहीद अब्दुल हमीद के हौसले एवं सिख फौजियों की बहादुरी के चलते आज पंजाब भारत के नक्शे में होने का भी दावा किया।
पूर्व फौज प्रमुख जनरल जे.जे. सिंह ने ‘‘ निश्चय कर अपनी जीत करू‘‘ के खालसाई नारे की इस लड़ाई के दौरान आॅपरेशन जिब्रालटर मंें इस्तेमाल की बात करते हुए बहादुर फौजियों द्वारा ब्यास नदी के पीछे आने के हुक्मों को ना मानकर कौम एवं देश की चड़दीकला के लिए किये गये कार्याे को बेमिसाल बताया।
लैफ्टिनेंट जनरल हरबख्श सिंह की बेटी हरमाला कौर एवं उसके पति ने जनरल हरबख्स की नेतृत्व क्षमता की समर्थता के बारे रौशनी डाली। ईरान में भारत के पूर्व राजनयिक  के.सी. सिंह ने शांति एवं संघर्ष के लिए भारतीय फौज की भूमिका का जिक्र किया।
दिल्ली सिख गुरुद्वारा प्रबंधक कमेटी के प्रधान मनजीत सिंह जी.के. ने पूर्व प्रधानमंत्री लाल बहादुर  शास्त्री को याद करते हुए देश के लिए कुर्बानी देने वाले अनगिनत योद्धाओं की कुर्बानी को नहीं भूलने की भी देशवासियो से अपील की। कमेटी के महासचिव एवं कालेज के पूर्व विद्यार्थी मनजिन्दर सिंह सिरसा ने दावा किया कि यदि यह लड़ाई भारत हार जाता तो यह सिखों की हार होती क्यांेकि पाकिस्तान फौज का हमला उस ईलाके में हो रहा था जहां पर सिख फौजी अधिकारियों के हाथों में कमान थी। इस दौरान यू.जी.सी. के सचिव डा.जसपाल सिंह संधू, इतिहासकार पूष्पिन्दर चोपड़ा आदि ने भी अपने विचार रखे। इस मौके दिल्ली कमेटी के पदाधिकारीयों के साथ बड़ी संख्या में कमेटी सदस्य मौजूद थे।

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