शहर में विकास और गांवों में जाति हावी – प्रत्याशियों को वोटर को अपने पाले में करने में छूट रहे पसीने

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ग्रेटर नोएडा। पिछले दिनों करप्शन के खिलाफ आम आदमी पार्टी द्वारा चलाई गई मुहिम लोकसभा चुनाव में छू-मंतर हो गई है। इस बार के चुनाव में भी विकास का मुद्दा जहां शहरों में हावी है, तो ग्रामीण इलाकों में जातीय मुख्य मुद्दा बना हुआ है। लिहाजा प्रत्याशियों को वोटर्स को अपने पाले में करने में पसीने छूट रहे हैं। पिछले दिनों भ्रष्टाचार के मुद्दे पर दिल्ली विधानसभा चुनाव में आम आदमी पार्टी ने चैकाने वाला प्रदर्शन किया था। ऐसा लग रहा था कि लोकसभा चुनाव में भी भ्रष्टाचार प्रमुख मुद्दा रहेगा। मगर ऐसा लगता नहीं है। जैसे-जैसे जनपद में मतदान की तारीख करीब आती जा रही है, मुद्दे बदलते जा रहे हैं। शहरी क्षेत्रों में प्रमुख मुद्दा विकास का छाया हुआ है। लोगों को दैनिक जीवन में इस्तेमाल होने वाली वस्तुएं सस्ती दर पर मिले। रोजगार और सुरक्षा जैसे मुद्दे शहरी क्षेत्र के वोटर्स पर हावी है। लेकिन ग्रामीण इलाकों में विकास की बजाय जातीय मुद्दा ज्यादा हावी होता जा रहा है। ग्रामीण क्षेत्रों में वोटर्स जातीय आधार पर बंटते जा रहे हैं। ऐसे में प्रत्याशियों की चिंता बढ़ गई है। जनपद में गुर्जर और मुसलिम वोटर्स पर सभी राजनीतिक दलों की निगाहें हैं। इन वोटर्स को अपने पाले में करने के लिए भाजपा, सपा, बसपा और कांग्रेस पूरी ताकत लगा चुकी हैं। मगर यह वोटर्स अभी किसी के झांसे में नहीं आ रहे हैं। माना तो यह जा रहा है कि जिस प्रत्याशी ने करीब 250 गांवों में निवास करने वाले गुर्जर वोटर्स के साथ मुसलिम वोटर्स को अपने पाले में कर लिया, उसकी ही जीत सुनिश्चित है। एक प्रत्याशी के प्रतिनिधि के चेहरे पर चिंता साफ देखी जा रही थी। उनका कहना है कि हम शहर में मजबूत हैं, मगर गांव में पकड़ नहीं बन पा रही है।

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