सदी के सर्वप्रिय नेता थे श्री अटल बिहारी वाजपेयी – चन्द्रपाल प्रजापति

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अटल बिहारी वाजपेयी जी काफी दिनों से बीमार थे और वह करीब 15 साल पहले राजनीति से संन्यास ले चुके थे। उनके निधन पर पूरे देश में शोक की लहर है। हर कोई उन्हें उनके भाषणों, कविताओं आदि के जरिए याद कर रहा है। पीएम नरेंद्र मोदी ने कहा है कि वाजपेयी भले ही हमें छोड़कर चिरनिद्रा में लीन हो गए हों लेकिन उनकी वाणी, उनका जीवन दर्शन सभी भारतवासियों को हमेशा प्रेरणा देता रहेगा। उनका ओजस्वी, तेजस्वी और यशस्वी व्यक्तित्व सदा देश के लोगों का मार्गदर्शन करता रहेगा। जनसंघ के संस्थापकों में से एक अटल बिहारी वाजपेयी के राजनीतिक मूल्यों की पहचान बाद में हुई और उन्हें भाजपा सरकार में भारत रत्न से सम्मानित किया गया। दलगत राजनीति और दलीय पक्षपात से उपर वाजपेयी की राजनीति ही थी कि उन्हें सर्वमान्य बनाती थी। इसीलिए उनका व्यक्तित्व विराट था। बेशक शारीरिक रूप से पिछले कुछ वर्षों से वे अक्षम थे, लेकिन लगातार संकीर्ण होती राजनीतिक मान्यताओं के बीच वे समन्वय की राजनीति के प्रेरणा पुरूष थे। उनकी कमी इस मोर्चे पर देश को लगातार खलती रहेगी।

2001 में प्रवासी भारतीयों को संबोधित करते हुए उन्होंने न्यूयॉर्क में कहा था, “आज प्रधानमंत्री हूँ, कल नहीं रहूँगा लेकिन संघ का स्वयंसेवक पहले भी था और आगे भी रहूँगा।” राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ की विचारधारा में पले-बढ़े अटल बिहारी वाजपेयी जी राजनीति में उदारवाद और समता एवं समानता के समर्थक माने जाते हैं। वाजपेयी राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के समर्पित प्रचारक रहे और इसी निष्ठा के कारण उन्होंने आजीवन अविवाहित रहने का संकल्प लिया था। सर्वोच्च पद पर पहुंचने तक उन्होंने अपने संकल्प को पूरी निष्ठा से निभाया।

भारतीय जनसंघ की स्थापना में भी उनकी अहम भूमिका रही। वे 1968 से 1973 तक जनसंघ के अध्यक्ष भी रहे। पं श्यामा प्रसाद मुखर्जी और पं दीन दयाल उपाध्याय के संपर्क में रह कर अटल जी ने सकारात्मक राजनीति की शिक्षा ग्रहण की। आजीवन राजनीति में सक्रिय रहे अटल बिहारी वजपेयी लंबे समय तक राष्ट्रधर्म, पाञ्चजन्य और वीर अर्जुन आदि पत्र-पत्रिकाओं के सम्पादन भी करते रहे। अटल बिहारी वाजपेयी ने लाल कृष्ण आडवाणी के साथ मिलकर भाजपा की स्थापना की थी और उसे सत्ता के शिखर पहुंचाया। भारतीय राजनीति में अटल-आडवाणी की जोड़ी सुपरहिट साबित हुई। अटल बिहारी वाजपेयी देश के उन चुनिन्दा राजनेताओं में से एक थे, जिन्हें दूरदर्शी माना जाता था। उन्होंने अपने राजनीतिक करियर में ऐसे कई फैसले लिए जिसने देश और उनके खुद के राजनीतिक छवि को काफी मजबूती दी।

बेहद दूरदर्शी अटल बिहारी वाजपेयी पानी को लेकर बेहद संजीदा थे। किसानों के लिए सिंचाई और आमजन को पेयजल की समस्या बढ़ने पर उन्होंने धर्मनगरी के एक हाल में कहा था कि आज पेट्रोल के लिए जंग हो रही है, अगर नहीं चेते तो आने वाले समय में पानी के लिए जंग होगी। तीसरा विश्वयुद्ध पानी के लिए हो सकता है। कहा जाता है कि संसद में इंदिरा गांधी को दुर्गा की उपाधि उन्हीं की तरफ से दी गई। उन्होंने इंदिरा सरकार की तरफ से 1975 में लादे गए आपातकाल का विरोध किया। लेकिन, बंग्लादेश के निर्माण में इंदिरा गांधी की भूमिका को उन्होंने सराहा था। विदेश नीति पर देश की अस्मिता से कोई समझौता स्वीकार नहीं था। अटल जी ने लालबहादुर शास्त्री जी की तरफ से दिए गए नारे जय जवान जय किसान में अलग से जय विज्ञान भी जोड़ा। देश की सामरिक सुरक्षा पर उन्हें समझौता गवारा नहीं था। वैश्विक चुनौतियों के बाद भी राजस्थान के पोखरण में 1998 में परमाणु परीक्षण किया। इस परीक्षण के बाद अमेरिका समेत कई देशों ने भारत पर आर्थिक प्रतिबंध लगा दिया। लेकिन उनकी दृढ़ राजनीतिक इच्छा शक्ति ने इन परिस्थितियों में भी उन्हें अटल स्तंभ के रूप में अडिग रखा। कारगिल युद्ध की भयावहता का भी डट कर मुकाबला किया और पाकिस्तान को धूल चटायी।

कुल मिलाकर चाहे एक कुशल संगठक की भूमिका हो, चाहे मंजे हुए राजनेता की, सहृदय कालजयी कवि या फिर अंतरराष्ट्रीय विश्लेषक की, अटल जी जैसा कोई दूसरा नहीं हो सकता। यह अटल जी की अभूतपूर्व मेधा का ही परिणाम था कि उन्हें विरोधी और दूसरी पार्टियों में वही सम्मान और प्रतिष्ठा प्राप्त हुई जो अपनी पार्टी के शीर्ष नेता होने के कारण अपनी पार्टी में प्राप्त हुई। अंतरराष्ट्रीय स्तर पर दूरदृष्टा, दृढ़ निश्चयी, अविचल और प्रखर प्रतिभा के धनी, अटल जी के व्यक्तित्व को जब हम परखते हैं तो उनका व्यक्तित्व सबसे ऊंचाई पर व्यक्तित्व की पराकाष्ठा को छूता नजर आता है। आजकल की चरित्रहनन, कीचड़ उछालने वाली राजनीति से दूर साफ-सुथरी छवि एवं व्यापक व्यक्तित्व तथा राष्ट्र के गौरव को शिखर पर पहुंचाने के लिए समर्पित रहने को हमेशा तत्पर रहने वाले बिरले राजनेताओं में उनको शीर्ष स्थान प्राप्त है। अटल जी सत्ता के लिए सिद्धातों से समझौता न करने एवं वैचारिक स्वतंत्रता की परम्परा के संवाहक थे।

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