सिखो ने कांग्रेस से किया किनारा

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अपने पिता की विरासत के सहारे दिल्ली की सिख राजनिती में खास मुकाम रखने वाले मनजीत सिंह जी.के. ने जबसे शिरोमणी अकाली दल के प्रदेश अध्यक्ष के रूप में सुखबीर सिंह बादल के आदेशो के बाद कार्य शुरू किया है, तबसे अकाली दल की पकड जिसको अकाली दल के ही एक पुराने सिपहसलार परमजीत सिंह सरना ने नेस्तनाबूद करने के लिए कांग्रेस के साथ मिलकर अपनी पुरी ताकत लगा दी थी, को वापिस प्राप्त करने में शुरूआती आशिंक सफलता के बाद अब फिर एकजुट नजर आने लगी है। शिरोमणी अकाली दल जिसे की आमतौर पर सिखो की पार्टी माना जाता था, को अब हिंदू, मुस्लिम, इसाई एवं दलित समाज भी अपने पैरोकार के रूप में मान्यता देने लग गया है। हालांकि अकाली दल की यह पकड यकायक नही बनी है अपितु इसमें प्रदेश अध्यक्ष मनजीत सिंह जी.के. का कडा परिश्रम और जननेता के रूप में उनकी निर्विवाद छवि ने बहुत बडा योगदान डाला है। अकाली दल की प्रधानगी संभालते ही दिल्ली सिख गुरूद्वारा प्रबंधक कमेटी के बादल गुट के कुछ मौकाप्रस्त सदस्यों ने सरना दल में यह सोचकर कदम रखा था कि अकाली दल शायद ही दिल्ली मे कभी अपने पैरों पर खड़ा हो पाऐगा।
सुखबीर बादल ने मनजीत सिंह जी.के. को खुल कर कार्य करने की छूट से मनजीत सिंह के होंसले बुलंद रहे और उन्होंने अपने कार्यंकर्ताओं को एकजुट रखते हुए सड़क से लेकर न्यायलय तक अपनी लड़ाई को जारी रखते हुए सरना के घपलों को संगतो के बीच रखने का कार्य जारी रखा। हालांकि दिल्ली जैसे महानगर में एक राजनैतिक दल के रूप में चलाने के लिए अकाली दल को साधनो का शुरू से अभाव था और इसके साथ ही वह विरोधी पक्ष में होने के कारण किसी सुविधा को प्राप्त करने के लिए भी हकदार नही था। उच्चतम न्यायलय के आदेश के बाद दिल्ली सरकार को मजबूरी में दिल्ली कमेटी के चुनाव करवाने का फैंसला लेते हुए कभी भी इस बात का आभास नही था कि अकाली दल इन चुनावों में सरना को करारी पटकनी देगा, पर शायद नियति को यहीं मंजूर था कि अकाली दल लाख विरोधो के बावजूद संगत को अपने पक्ष में करता हुआ गुरूद्वारा कमेटी पर काबिज हो गया है। दिल्ली में 5 निगम पार्षद और 41 गुरूद्वारा कमेटी सदस्यों के सहारे अपने बुते पर दिल्ली विधानसभा की 16 सीटों पर चुनाव लड़ने के फैंसले को हाईकमान ने नकारते हुए भाजपा के साथ मिलकर 4 सीटों पर ही लड़ने का फैंसला लिया है। राजनैतिक पडिंतो ने नामांकन से पहले अकाली दल के खाते में एक भी सीट आने की पुष्टि नही की थी परन्तु परिस्थितियो ने एक बार फिर से गुरूद्वारा चुनाव की तरह करवट लेते हुए अकाली दल के हाथ मजबूत कर दिए है और लगता है कि अकाली चारो सीटों पर जीत प्राप्त करने की स्थिती में है।
दिल्ली की सिख राजनीती मे सर्वमान्य नेता के रूप में परमजीत सिंह सरना के साथ जुडे हुए उनके सहयोगी अब एक एक करके दूर छिटकते जा रहे है। गुरूद्वारा चुनाव में गुरमीत सिंह शन्टी, इन्द्रजीत सिंह मौन्टी, गुरमीत सिंह मीता, गुरप्रीत सिंह जस्सा, सुरिन्दर पाल सिंह ओबराय, अमरजीत सिंह गुल्लु, निशान सिंह मान, रजिन्दर सिंह राजवंशी, तेजपाल सिंह, वशिन्दर सिंह और चुनावो के बाद सरना दल के जीते हुए 8 सदस्यों में से 5 सदस्य अमरजीत सिंह पिंकी, कुलदीप सिंह करोल बाग, बलबीर सिंह विवेक विहार, भुपिन्दर सिंह सब्बरवाल एवं जतिन्दर सिंह साहनी के बाद अब गुरशरन सिंह संधू, तरजीत सिंह नागी, अजीत ंिसंह सीरा, जसबीर सिंह काका एवं मनजीत सिंह गोबिन्द पुरी ने भी अब सरना दल का साथ छोड़ दिया है। गुरूद्वारा चुनावो में पतंग के चुनाव चिन्ह पर उम्मीदवार उतारने वाली दशमेश सेवा सोसाईटी का भी विलय अकाली दल में हो गया है। सोसाईटी के महासचिव इन्द्रमोहन सिंह के बाद अब अध्यक्ष रजिन्दर सिंह टेक्नो ने भी अकाली दल का हिस्सा बनकर दिल्ली की सिख राजनीती में अकाली दल का विरोधी पक्ष लगभग खत्म कर दिया है।
पिछले विधानसभा चुनाव इन सिख नेताओं के सिर पर जितने वाली शीला दीक्षित को अब सिख नेताओं का अकाल पड़ गया है और मजबूरीवश दल बदलूओं की थाली के बैंगन राजा हरप्रीत सिंह और स्वघोषित अकाली नेता जसजीत सिंह यू.के. के साथ पत्रकार वार्ता करते हुए सिखो के समर्थन का दावा करना पड रहा है। यहा यह विदित है कि जसजीत सिंह गुरूद्वारा चुनाव में तिलक नगर वार्ड से अकाली उम्मीदवार गुरबख्श सिंह मौन्टू शाह के सामने अपनी जमानत भी नही बचा पाए थे, वहीं दूसरी ओर राजा हरप्रीत ंिसह को भी कोई चुनाव जीतने का अनुभव नही है। यही कारण है कि पश्चिम दिल्ली में सिख बहुसंख्या होते हुए भी कांग्रेस प्रधानमन्त्री मनमोहन सिंह की रैली हरी नगर में घोषित करने के बावजूद रैली करने का साहस नही जुटा पाई। पोप गायक दलेर मेहंदी के सहारे अपनी नैया पार लगाने की कोशिश कर रही कांग्रेस 1984 पीडीतो के विरोध के कारण तिलक नगर विधानसभा से टिकट देने में कन्नी काटती रही है। अगर इन सभी तथ्यो पर गौर किया जाए तो जहां अकाली दल सारे सिख समाज को एकजुट रखकर इन चुनावों मे लड़ाई लडता नजर आ रहा है वहीं दूसरी ओर कांग्रेस के पास सिख समर्थन का अभाव स्पष्ट नज़र आ रहा है।

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