Udit Raj MP : Maurya Ji & all Dalits should associate with the party which could them Forward.

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नई दिल्ली : डॉ0 उदित राज, राष्ट्रीय अध्यक्ष, अनुसूचित जाति/जन जाति संगठनों का अखिल भारतीय परिसंघ, ने कहा बहुजन समाज पार्टी कभी राजनैतिक दल नहीं रहा है। विशेषरूप से दलित ही इसके आधार हैं और उन्हें भ्रमित करके रखा जा रहा है कि बहुजन समाज पार्टी उनका राजनीतिक दल है। सुश्री मायावती जी को संवैधानिक अधिकार है कि वे संगठन चलाएं लेकिन भ्रमित करके कि यह राजनैतिक दल है, वह गलत है। श्री स्वामी प्रसाद मौर्य द्वारा पार्टी को छोड़ दिए जाने के बाद यह बात और स्पष्ट हो गयी कि यह राजनैतिक दल न होकर निजी संगठन हो गया  है। लोग ज्यादातर सामाजिक आधार पर जुड़े हैं तो वह भी अपने आप में यह सिद्ध करता है कि बसपा राजनैतिक दल नहीं है। आगे कहा कि राजनैतिक दल की परिभाषा के अनुसार किसी भी प्रकार से प्रमाणिकता नहीं होती है कि यह एक राजनैतिक दल है। ‘‘राजनैतिक दल लोगों का एक समूह है, जिसकी एक निश्चित विचारधारा और मांगें हैं और सत्ता में आकर उन पर कानून बनाना या लागू करना।’’ बसपा का कोई चुनावी घोषणा-पत्र नहीं होता। केवल चुनाव के समय वोट मांगने का कार्य होता है और उसके बीच कार्यकर्त्ताओं और जनता की समस्याओं पर कोई संघर्ष नहीं होता। संघर्ष तब करते जब कोई निश्चत विचारधारा या मांगें या अधिकार की बात होती। वास्तव में सैकड़ों वर्षों तक दलितों का जो शोषण हुआ है, उससे निजात पाने के लिए अपनी ही जाति के नेता से आशा रखता है। कांशीराम जी ने इस पार्टी की स्थापना की लेकिन उनके कुछ विचार थे। दलित अपनी जाति के नेता के माध्यम से अपनी समस्याओं का निराकरण चाहते हैं। ज्यादातर बसपाई दलित सामाजिक कुरीतियों से लड़ना चाहते हैं, उसके लिए उन्हें राजनैतिक दल का सहारा न लेकर खुद में परिवर्तन लाना होगा। एक ताक़तवर सामाजिक आंदोलन चलाएं। बाबा साहेब डॉ. अम्बेडकर ने जातिविहीन समाज की लड़ाई लड़ी। बौद्ध धर्म को अपनाने के लिए कहा। देखा यह जा रहा है कि राजनीति की वजह से बाबा साहेब के विचार प्रभावहीन होते जा रहे हैं। राजनैतिक दल और खासतौर से बसपा जातीय ध्रुवीकरण करके वोट लेती है। डॉ0 उदित राज, राष्ट्रीय अध्यक्ष, अजा/जजा परिसंघ, ने कहा कि  बहुजन समाज पार्टी कोई राजनैतिक काम नहीं करती है। यदि यह राजनैतिक पार्टी होती तो यह गरीबांे और दलितों की दैनिक समस्याएं जैसे बेरोजगारी,अत्याचार, आरक्षण का कमजोर होना, ठेकेदारी प्रथा,आउटसोर्सिंग, खाली पदों पर भर्ती आदि मुद्दों पर सड़क से लेकर संसद तक लगातार धरना, प्रदर्शन और आवाज उठाती। उ0 प्र0 में हजारों कर्मचारियों-अधिकारियों की पदावनति हो गयी है और यह केवल बसपा की ही गलती की वजह से हुआ है। वाजपेयी जी की केन्द्र की सरकार ने तीन संवैधानिक संशोधन किए। 85वां संवैधानिक संशोधन पदोन्नति में आरक्षण और वरिष्ठता से संबंधित था। उ0प्र0 में जब बसपा की सरकार थी तभी यह अधिकार छिना। डॉ0 उदित राज ने ही इसकी पैरवी सुप्रीम कोर्ट में करके बचाव किया था और दुर्भाग्यवश सुश्री मायावती की संवेदनहीनता और वोट की लोलुपता की वजह से यह अधिकार छिन गया। दलितों को समझना चाहिए कि आरक्षण का बचाव यदि राजग पूर्व में किया है तो आगे भी उम्मीद उन्हीं से की जा सकती है।


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