चन्द्रपाल प्रजापति
उत्तर प्रदेश मे चुनावी शंखनाद बज चुका है। विधानसभा चुनावों मे उतरने वाली प्रत्येक राजनीतिक पार्टी ने कमर कस ली है। उत्तर प्रदेश का चुनाव कोई विकास या भ्रष्टाचार पर नही बल्कि जातिगत होगा। यहां जातिगत जोड़ तोड़ पर ही कोई पार्टी सत्ता का सुख प्राप्त कर पायेगी। यहां की प्रमुख क्षेत्रीय पार्टियां सपा और बसपा क्रमशः पिछड़े + मुस्लिम , दलित + मुस्लिम वोट बैंक पर अपना दांव अजमा रहीं हैं। अभी तक सपा की मजबूती से मुस्लिम वोट बैंक बंटता नजर आ रहा था जिसकी वजह से बीजेपी मजबूत स्थिति मे दिखाई दे रही । परन्तु एकाएक सपा का मुस्लिम वोट बसपा की और खिसकने से इस लड़ाई त्रिकोणीय हो गयी है और बीजेपी का ग्राफ गिरा है।
उत्तर प्रदेश मे मुस्लिम लगभग 124 सीटों पर निर्णायक भूमिका मे है और इसी के तहत बसपा ने लगभग 100 सीट मुस्लिमो को देकर बहुत बड़ा दांव खेलने की कोशिश की है। इस घमासान मे कांग्रेस का कोई जनाधार नही दिखाई दे रहा है। उसने शीला दिक्षित और राजब्बर को नेतृत्व देकर ब्राह्मण + मुस्लिम समीकरण बनाने का प्रयास किया था परंतु उसको उत्तर प्रदेश की जनता ने एक सिरे से नकार दिया है।
असल मे सत्तारूढ़ समाजवादी पार्टी , भाजपा, सपा , और अन्य पार्टियों के लिए करो या मरो की स्थिति बन गयी है। प्रत्येक पार्टी सत्ता पाने के लिए कोई भी कसर नही छोड़ने की स्थिति मे नही है। समाजवादी पार्टी के पारिवारिक घमासान से उनका एक मात्र मुस्लिम वोट बैंक बसपा की ओर खिसकता दिखाई दे रहा है। वहीं बसपा दलित +मुस्लिम वोटों की वजह से सत्ता के करीब पहुंच सकती है । परन्तु बसपा के टिकट वितरण मे मुस्लिम तुष्टिकरण की वजह से क्षत्रिय एवं ब्राह्मण वोट बीजेपी मे ही रहने की संभावना है। जो बसपा को सत्ता से वंचित कर सकता है। यदि बीजेपी अति पिछड़ा वर्ग को लुभाने मे कामयाब हो गयी तो उसको सत्ता हासिल करने मे कोई नही रोक सकता है। 2014 चुनाव मे यह वर्ग बीजेपी की ओर था जिसकी वजह से बीजेपी को अपार सफलता मिली थी। बीजेपी को हिंदुत्व के मुद्दों पर भी ईमानदारी से काम करने की आवश्यक्ता है। यदि बीजेपी हिंदुत्व के मुद्दों को लागू करने एवं अति पिछड़ों को आकर्षित करने मे कामयाब हो गयी तो उसको कोई भी सत्ता पाने से नही रोक सकता है।
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