
भारत के आदिवासियों ने दुनिया के 190 देशों में छलांग लगा कर विश्व को अपना बाजार बना लिया है। ट्राइफेड और जनजातीय कार्य मंत्रालय ने आदिवासियों के देशी उत्पादनों की दुनिया में पहुंच बढ़ाने के लिए अमेजन ग्लोबल से करार किया है। ताकि पूरी दुनिया में भारतीय आदिवासियों की कला, कारीगरी और विशिष्टता कायम हो, दुनिया उनसे परिचित हो। उन्हें काम, पहचान और पैसा हासिल हो जिससे वे मुख्य धारा के लोगों के साथ कंधे से कंधा मिला कर आगे बढ़ सकें।
आदिवासियों के उत्पादनों को उचित मूल्य पर पहचान के साथ बाजार तक पहुंचाने के काम में लगे ट्राइफेड ने शुक्रवार को अमेजन ग्लोबल के साथ जनजातीय उत्पादनों को आन लाइन बिक्री के जरिये दुनिया तक पहुंचाने का करार किया। इस मौके पर बोलते हुए जनजातीय राज्यमंत्री रेनुका सिंह ने कहा कि ट्राइफेड एक ऐसा प्लेटफार्म है जो आदिवासियों के जीवन में चमत्कार ला सकता है।
गो ट्राइबल अभियान के तहत किये गए इस करार का उद्देश्य 700 से अधिक भारतीय जनजातियों के सामाजिक आर्थिक कल्याण में सहायता प्रदान करना है। गो ट्राइबल अभियान के तहत अमेजन तीन पहलुओं को आगे बढ़ाएगा जिसमें ट्राइब्स आफ इंडिया हैरिटेज कलेक्शन और ट्राइब्स आफ इंडिया नेचुरल कलेक्शन शामिल होगा। इस कलेक्शन में हतकरघा से बुने कपड़े जैसे ईकत, सिल्क, पशमीना। जनजातीय आभूषण जैसे डोकरा, बंजारा और उपहार तथा बर्तन शामिल हैं।
नेचुरल कलेक्शन में तेलंगाना की काफी, उत्तराखंड के साबुन और कर्नाटक के मसाले तथा और भी बहुत कुछ शामिल है। इनका ब्योरा ट्राइब्स इंडिया और अमेजन की वेबसाइट पर उपलब्ध रहेगी। सफेद चावल तो सभी जानते हैं लेकिन आदिवासी उत्पादनों में लाल और काला चावल भी उपलब्ध होगा। इतना ही नहीं हल्दी सिर्फ पीली नहीं होती मणिपुर की काली हल्दी भी इन उत्पादनों में शामिल होगी जिसकी कीमत 2000 रुपये किलो है और जो कि अपने खास औषधीय गुण रखती है। राज्य मंत्री रेनुका सिंह ने इस मौके पर ट्राइब्स इंडिया नेचुरल कलेक्शन का भी लोकार्पण किया।
इंडिया हैबिटेट सेंटर मे आयोजित कार्यक्रम में ट्राइफेड की ब्रांड एंबेस्डर राज्यसभा सांसद और विश्व विजेता मुक्केबाज मेरीकाम भी मौजूद थीं। मेरीकाम ने संक्षिप्त संबोधन में आदिवासियों के लिए भारत सरकार द्वारा किये जा रहे कामों की सराहना की। उन्होंने इस मौके पर गीत भी गाया। इसके अलावा ट्राइफेड के चेयरमैन आरसी मीना, प्रबंध निदेशक प्रवीण कृष्णा और जनजातीय मंत्रालय के सचिव दीपक खांडेकर ने आदिवासियों के लिए शुरू किये गये वनधन कार्यक्रम और सौ दिन के भीतर वनधन के तहत जंगल के छोटे उत्पादनों की बिक्री के 300 केंद्र खोलने के लक्ष्य की भी जानकारी दी।
इस मौके पर 1000 साल के पुराने कामों कीसाड़ियां जिन्हें आदिवासियों ने तैयार किया था, का एक छोटा सा स्टेज शो भी हुआ जिसमें पश्चिम बंगाल की कांथा, उड़ीसा की बोमकाई जिसे ईकत कहते हैं, मध्यप्रदेश की महेश्वरी, पश्चिम बंगाल की लिनेन, महाराष्ट्र की भंडारा, तेलंगाना की ईकत, उड़ीसा की संभलपुरी, मध्य प्रदेश की चंदेरी, राजस्थान की कोटा धूरिया, मध्यप्रदेश का बाघ प्रिंट, छत्तीसगढ़ की टसर साड़ियां और नीलिगिरि की टोडा (शाल) माडलों के जरिये पेश किये गए।
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