पर्यावरण का संकट दिन-ब-दिन गहराता जा रहा है। पर्यावरण के जानकार चेता रहे हैं, सजग कर रहे हैं लेकिन हमारी नींद नहीं टूट रही है। पर्यावरण संरक्षण के लिए अकेले सरकार को कटघरे में खड़ा करना या उसकी जवाबदारी तय करना अनुचित है। पर्यावरण संरक्षण में समाज की भागीदारी सुनिश्चित किया जाना चाहिए। आखिरकार सरकार हम बनाते हैं और हम ही सरकार हैं। इसलिए समाज को पर्यावरण की दिशा में पहले जागरूक होना होगा। किसी और पर जिम्मेदारी डालकर फौरीतौर पर हम बच सकते हैं लेकिन दुष्परिणाम हमें ही भुगतना होगा।
इसी मुद्दे को लेकर टेन न्यूज़ नेटवर्क ने लाइव कार्यक्रम ‘सच्ची बात : प्रोफेसर विवेक कुमार के साथ’ का आयोजन किया, जिसमें विभिन्न क्षेत्रों से जुडे लोगों ने हिस्सा लिया।
आपको बता दें कि प्रोफेसर विवेक कुमार टेन न्यूज़ नेटवर्क पर सच्ची बात कार्यक्रम का संचालन करते आ रहे हैं। जिसमें अलग-अलग क्षेत्र के लोग किसी भी अहम मुद्दे पर चर्चा करते हैं और चर्चा के दौरान समस्याओं और समाधान पर भी जोर दिया जाता है। प्रोफेसर विवेक कुमार ने इस कार्यक्रम के 19वें संस्करण का बेहद बखूबी संचालन किया।
कार्यक्रम के पैनलिस्ट
राजीव खुराना, सहसंस्थापक, ट्रस्टी-लंग केयर फाउंडेशन, डाॅ बीरपाल सिंह, कृषि अर्थशास्त्री सेवानिवृत्त, भारतीय कृषि अनुसंधान, राहुल चौधरी, अधिवक्ता
राजीव खुराना ने अपनी बात रखते हुए कहा कि दुनियाभर में लगभग 70 लाख लोग प्रदूषण की वजह से जान गंवा देते हैं। वहीं भारत में इसका आंकडा 16 लाख है। कोरोना वायरस के चलते इसकी स्थिति और बिगड़ गई है। ना ही सरकार इसकी परवाह कर रही है और ना ही समाज को कोई फर्क पड़ रहा है। आज एयर क्वालिटी इंडेक्स दिल्ली का 450 है। पिछले साल दिवाली पर पीएम10 दिल्ली में 2600 था। किसी ने परवाह नहीं की।
उन्होंने बताया कि ऐसी स्थिति में एक व्यक्ति 22 सिगरेट के बराबर धुंआ हवा के जरिए अंदर लेता है। इसके बारे में जागरूकता फैलाने की जरूरत है। हमारी युवा पीढ़ी को इसके बारे में जानकारी लेकर इसका कंट्रोल अपने हाथ में लेने की जरूरत है। बुजुर्गों की जिम्मेदारी है कि युवाओं का मार्गदर्शन कर इस स्थिति से निपटने में सहायक बने।
उन्होंने बताया कि एक इंसान दिन में 25,000 बार सांस लेता है, जिसमें 10000 लीटर वायु अंदर खींचता है। उन्होंने कहा कि जिस प्रकार एसी खराब हवा को फिल्टर कर देता है, उस प्रकार हमारे फेफड़े कार्यशील नहीं हैं। एक बार फेफड़े काले पड़ गए तो उनको ठीक करने का कोई भी उपाय देश में नहीं है। 8.5% लोग भारत में वायु प्रदूषण से ग्रसित हैं और हम इस बारे में कुछ भी नहीं सोच रहे हैं।
उन्होंने कहा कि पानी दूषित हो रहा है, तो लोगों ने बोतल में बंद पानी खरीदना शुरू कर दिया है। हवा दूषित हो रही है तो लोगों ने एयर प्यूरीफायर लगाने शुरू कर दिए हैं। कब तक इन चीजों पर पैसा खर्च किया जाएगा, जब कुदरत ने हमें मुफ्त का पानी और हवा दी हुई है। लोगों को इसके प्रति जागरूक होना पड़ेगा और अपनी जिम्मेदारी समझते हुए आगे आना होगा, जिससे कि हमारी आने वाली पीढ़ी वायु प्रदूषण से ग्रसित ना हो।
डॉक्टर बीरपाल सिंह ने अपने वक्तव्य में कहा कि आज के समय में पर्यावरण संरक्षण से बड़ा मुद्दा इस देश में कोई हो ही नहीं सकता। जिस प्रकार देश में प्रदूषण की स्थिति बिगड़ती जा रही है, वह बेहद चिंताजनक है। लोगों को इसके बारे में जागरूक होना होगा और अपनी जिम्मेदारी समझते हुए आगे आना होगा। पर्यावरण का संरक्षण करना अन्य किसी भी मुद्दे से बढ़कर है। यदि हमारी सांस लेने के लिए हवा शुद्ध नहीं होगी तो हम किस तरह से आगे बढ़ सकेंगे।
उन्होंने कहा कि पर्यावरण में सबसे मुख्य जरूरत पानी है। कारखानों का गंदा पानी नदियों और पोखरों में छोड़ा जा रहा है और वह पानी मुख्य नदियों में मिल रहा है, जिसको हम पीते हैं। हमारे यहां जितनी भी सीवर लाइन डाली गई हैं, उनका स्तर ठीक नहीं है। जितने भी सीवरेज बनाए गए हैं, जिनमें फ्लैश वाटर जा रहा है। यह पानी जमीन के अंदर जाता है और इसे ही हम पीने के लिए इस्तेमाल करते हैं।
उन्होंने कहा कि कारखानों से छोड़े जाने वाले दूषित पानी में कई प्रकार के रसायन होते हैं, जो नदियों में जाकर मिल रहा है। इससे हमारा पेयजल दूषित हो रहा है। यही पानी नहर के जरिए किसानों को मिलता है। उसी से खेती की सिंचाई हो रही है। इससे हमारी फसल भी प्रभावित होती है और खानपान भी दूषित हो रहा है। इस पानी के चलते हमारी सब्जियां और अनाज शुद्ध नहीं मिल पा रहे हैं।
वहीं उन्होंने कहा कि आज के समय में हमारे जीवन में वायु प्रदूषण का बेहद प्रभाव पड़ रहा है। इससे लाखों लोग प्रतिवर्ष जान गवा देते हैं। बड़े बड़े कारखानों और फैक्ट्रियों से निकलने वाला पानी और धुंआ हमारी हवा को दूषित कर रहा है। यह गंदा धुआं हमारे वातावरण में मिलता है और ऑक्सीजन के जरिए हम उसे अंदर सींच रहे हैं। यह हमारे फेफड़ों पर काफी हद तक प्रभाव डाल रहा है।
महेश कुमार सेठ ने अपनी बात रखते हुए कहा कि हमारी धरती और मिट्टी आज के समय में काफी प्रदूषित हो गई है। इसको ठीक करने के लिए हमें जिम्मेदारी उठानी पड़ेगी। उन्होंने कहा कि बहुत जल्द देश में 5G टेक्नोलॉजी आने वाली है। इसमें नैनो सेंसर्स होंगे, जो मिट्टी की गुणवत्ता के बारे में तुरंत आपको जानकारी दिला सकेंगे। इसके जरिए हर चीज की जानकारी लोगों तक पहुंचेगी। कौन सी मिट्टी किस कार्य के लिए बेहतर है, इसकी भी जानकारी आसानी से मिल जाएगी।
उन्होंने कहा कि हमारे किसानों को भी पता नहीं रहता कि उनके खेत की मिट्टी में क्या समस्या है। मिट्टी खराब होने का सबसे बड़ा कारण है कि मिट्टी में केमिकल का प्रयोग किया जा रहा है। पंजाब में खेती के लिए जरूरत से ज्यादा केमिकल का प्रयोग किया जाता है। उसकी वजह से पंजाब में कैंसर काफी बढा। इसके साथ कई अन्य दिक्कतें हैं। इन दिक्कतों का समाधान तब तक नहीं होगा, जब तक लोगों में इन सब के प्रति जागरूकता नहीं होगी।
लोगों को जब तक पता नहीं चलेगा कि इन चीजों का उनके जीवन में किस प्रकार का प्रभाव पड़ रहा है, तो वह कैसे सीख सकेंगे। इसमें सरकार का योगदान होना जरूरी है। ऐसी चीजें जो जनसामान्य के जीवन में घातक हैं, उनको बॉयकॉट कराना जरूरी है। वहीं जिन चीजों का हमारे जीवन में अच्छा प्रभाव होगा, उनको इंप्लीमेंट कराने की आवश्यकता है।
उन्होंने कहा कि हमारे यहां ऐसा सिस्टम बन गया है कि घर में प्रत्येक सदस्य के लिए अलग गाड़ी है। अगर किसी को बाहर जाना है, तो हर कोई अलग-अलग गाड़ी से निकलता है, जिसके चलते प्रदूषण काफी बढ़ रहा है। सरकार को सोचना पड़ेगा की ट्रांसपोर्ट सिस्टम की बेहतरी के लिए क्या कर सकते हैं। हर व्यक्ति को अपनी अपनी गाड़ी लेकर चलने की जरूरत नहीं होनी चाहिए, अगर सरकार अच्छी ट्रांसपोर्ट फैसिलिटी लोगों को दे। फैक्ट्री से निकलने वाले जहरीले पानी और धुंए को लेकर तब तक जागरूकता नहीं आएगी, जब तक कोई बड़ा जनाधार आंदोलन नहीं किया जाएगा।
अधिवक्ता राहुल चौधरी ने कहा कि मैं पेशे से वकील हूं लेकिन पर्यावरण से संबंधित मुद्दों को लेकर कोर्ट जाता हूं और हमने एक संस्था भी बनाई है ‘लीगल इनीशिएटिव फॉर फॉरेस्ट एनवायरनमेंट’ जो पर्यावरण के मुद्दे पर काम करती है।
उन्होंने कहा कि जब दिल्ली में प्रदूषण बढ़ता है, तो यह नेशनल डिबेट का मुद्दा बन जाता है। जबकि वायु प्रदूषण या किसी अन्य प्रकार का प्रदूषण देश के अन्य राज्यों में काफी घातक है। छत्तीसगढ़ और रायगढ़ में प्रदूषण का स्तर काफी खतरनाक है। उड़ीसा, गुजरात या कोयंबटूर में बढ़ रहे प्रदूषण की बात कोई नहीं करता है।
उन्होंने कहा कि लैंड पोलूशन काफी बढ़ रहा है। ई-रिक्शा काफी चल रहे हैं। अब घर-घर में ई-रिक्शा की बैटरी चार्ज हो रही है, जो प्रदूषण पहले खत्म हो चुका था, हम धीरे-धीरे उसकी और बढ़ रहे हैं। पर्यावरण संरक्षण सरकार और समाज की संवैधानिक जिम्मेदारी है। एक तरह से देखा जाए तो सरकार के ऊपर ज्यादा जिम्मेदारी है।
पर्यावरण से संबंधित जितने भी रिसोर्स हैं, सरकार एक तरह से उनकी ट्रस्टी है। साथ में लोगों पर भी जिम्मेदारी दी गई है कि जो नदियां, तालाब, वन्य जीव और पेड़ पौधे हैं उनको हम किस तरह से संरक्षित कर सकते हैं। भारत में सस्टेनेबल डेवलपमेंट के नाम पर लोगों को मिस गाइड किया जा रहा है। ना हमारे कानून में इसकी कोई परिभाषा है और ना ही लोगों को पता है।