मेवाड़ में हिन्दुत्व विषय पर विचार संगोष्ठी आयोजित
’हिन्दुत्व’ कोई धर्म या जाति नहीं है, बल्कि जीवन जीने की एक सर्वश्रेष्ठ पद्धति है। सभी धर्म इस सर्वश्रेष्ठ पद्धति तक आते हैं। इसे किसी सम्प्रदाय या विशेष पूजा-पद्धति से जोड़ना अनुचित है। वसुंधरा स्थित मेवाड़ ग्रुप आॅफ इंस्टीट्यूशंस के विवेकानंद सभागार में आयोजित मासिक विचार संगोष्ठी में शामिल हुए वक्ताओं ने यह बात लोगों के समक्ष कही।
मुख्य वक्ता राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ मेरठ प्रांत के प्रचार प्रमुख अजय मित्तल ने कहा कि हिन्दुत्व हमारी विरासत है। इसे वर्ष 1996 में सुप्रीम कोर्ट ने भी मान्यता दी है। इसके जरिये हमें पूरा विश्व संचालित करना है। उन्होंने कहा कि हिन्दु शब्द हमारी ही भाषाओं से उत्पन्न हुआ है, यह नाम विदेशियों ने नहीं दिया। उन्होंने घर वापसी को भी गलत नहीं बताया। उन्होंने दावा किया कि महात्मा गांधी, फूले, स्वामी विवेकानंद आदि ने भी लोगों की घर वापसी कराई थी। विजय लक्ष्मी पंडित की भी घर वापसी हुई थी। हिन्दुत्व की वैज्ञानिकता व उपादेयता के लिए पूरा संसार आज एकमत है। उन्होंने अपनी बात को साबित करने के लिए अनेक देशों के इतिहास के अलावा फें्रक मौरिस, महर्षि अरविन्द, लोकमान्य तिलक, वेद, आइंस्टीन, आर्य आदि के संदर्भ उदाहरण के रूप में पेश किये।
मेवाड़ ग्रुप आॅफ इंस्टीट्यूशंस के चेयरमैन डाॅ. अशोक कुमार गदिया ने कहा कि हम सम्प्रदाय, पूजा पद्धति विशेष से धर्म को जोड़ बैठते हैं। जबकि धर्म और रिलीजन शब्द के मायने अलग-अलग हैं। मगर अफसोस कि कुछ फिरकापरस्त लोग धर्म व रिलीजन को एक बताकर लोगों के जेहन में खाइयां पैदा करने से बाज नहीं आ रहे। उन्होंने कहा कि उपासना पद्धति व्यक्तिगत हो सकती है लेकिन जो शाश्वत नियम है वह सार्वजनिक है। हिन्दुत्व कहता है-तमसो मा ज्योर्तिगमय, सर्वे भवन्तु सुखिनः, सर्वे भवन्तु निरामया। उन्होंने कहा कि पूरे विश्व की पूजा पद्धतियों या जातियों का अध्ययन कर लें तो हम पाएंगे कि हिन्दु धर्म सबसे अधिक संवेदनशील है, सहिष्णुता इसमें सबसे ज्यादा है। उन्होंने कहा कि हिन्दुत्व ’वसुधैव कुटुम्बकम’ की भावना को मजबूत करता है। हम एक से, दो, फिर परिवार, फिर राष्ट्र व विश्व से जुड़ने की बात करते हैं। हमारे भीतर एकीकृत की भावना है, जो और किसी धर्म या जाति में नहीं है। उन्होंने कहा कि हमें अपनी बौद्धिक ताकत को और मजबूत करना है। जो तलवारों की ताकत रखते हैं, उन्होंने हमारे देश में तलवारों का शासन किया मगर हम फूलों व प्यार की बात करने वाले हैं, यही कारण है कि अनेक संस्कृतियां हमारे देश में ही सुरक्षित हैं। हमारे यहां कबीर हुए तो रसखान को भी हमने दिल में जगह दी। उन्होंने कहा कि हम अधिक पढ़ना व समझना सीखें। हमारी ये दो आदतें हमें विश्व में सर्वोपरि बनाये रख सकती हैं।
इससे पूर्व उन्होंने मुख्य वक्ता अजय मित्तल को शाॅल व स्मृति चिह्न देकर सम्मानित किया। उपस्थित लोगों ने मुख्य वक्ता से अनेक सवाल-जवाब भी किये। संगोष्ठी में मेवाड़ इंस्टीट्यूशंस की निदेशिका डाॅ. अलका अग्रवाल, वरिष्ठायन संस्था के सदस्य सत्यदेव राय, वैद्य शांति कुमार मिश्र के अलावा करतार सिंह, केके शर्मा, सतेन्द्र कुमार अग्रवाल, अजय भाई समेत मेवाड़ इंस्टीट्यूशंस का समस्त शिक्षण स्टाफ मौजूद था। संगोष्ठी का सफल संचालन प्रोफेसर आईएम पांडेय ने अपने चिर परिचित अंदाज में किया।
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