पी आर सोमानी का आरोप केंद्र सरकार नही उठा रही है कदम , सभी दवाइयों पर 30 फीसदी का ट्रेड मार्जिन करे तय

ROHIT SHARMA

दिल्ली :– निजामाबाद चैंबर ऑफ कॉमर्स एंड इंडस्ट्री के संस्थापकअध्यक्ष पी. आर. सोमानी ने दिल्ली के प्रेस क्लब ऑफ इंडिया में प्रेस कॉन्फ्रेंस को संबोधित करते हुए कहाकि  अधिसूचितऔर गैर अधिसूचित दवाओं में इस तरह के विभाजन की कोई जरूरत नहीं है। सरकार कैंसर कीदवाओं की तरह सभी तरह की दवाओं, जीवनरक्षक दवाओं, 2 या 2 रुपये से अधिक के डत्च्पर (व्यवहारिकता के लिए) 30 फीसदी का ट्रेड मार्जिन तय कर सकती है।

उन्होंने कहाकि इससे दवा और मेडिकल उपकरणों की कीमतें 90 फीसदी तक कम हो जाएंगी, लेकिनदवा निर्माताओं के दवा की बिक्री के दामों पर कोई असर नहीं पड़ेगा। इससे होलसेलर औररिलेटर को भी अच्छा मुनाफा मिलेगा, लेकिन इसका सबसे बड़ा लाभ यह होगाकि इससे 130करोड़ लोगों को लाभ पहुंचेगा। महंगे इलाज से हुई आर्थिक तंगी से लोग बाहर निकलपाएंगे क्योंकि आजकल दवाओं और इलाज का खर्च खाने-पीने के खर्च से ज्यादा हो गयाहै।



पीआर सोमानी ने कहा मैंने माननीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के सामनेदवाओं की कीमतों पर 30 फीसदी का मार्जिन कैप लगाने के सिलसिले में 20अक्टूबर 2018को रिप्रेंजेटेशन दिया था। काफी दबाव बनाने सें 8मार्च 2019से सरकार ने कैंसर की 390 दवाओं पर ट्रेड मार्जिन कैप तय कर दी थी। दवाकी कीमतों पर 30फीसदी मार्जिन की कैप लगाने से दवा निर्माताओं की बिक्री के दाम पर कोई असर नहींपड़ा। इससे होलसेलर्स और रिलेटर को भी उचित मुनाफा हुआ। इसी का नतीजा यह हुआ किकैंसर की 87फीसदी तक दवाओं के दाम कम हो गए। आज कैंसर के 26 लाख मरीज सस्ते दामों पर दवाएंलेकर अपने जीवन की रक्षा कर रहे हैं।

आज83फीसदी गैर अधिसूचित और 17 फीसदी अधिसूचित दवाएं हैं। गैर अधिसूचित दवाओं पररिटेलर की खरीद की कीमत से 5000 फीसदी तक से ज्यादा दाम ग्राहकोंसे वसूला जा रहा है। इससे दवा निर्माताओं को कोई मुनाफा नहीं हो रहा है। इसके उलटउन्हें ड्रग प्राइस कंट्रोल ऑर्डर (डीपीसीओ) के कारण नुकसान झेलना पड़ रहा है।इसलिए वह डीपीसीओ के तहत दवा का निर्माण करना नजरअंदाज करते हैं।

निजामाबाद चैंबर ऑफ कॉमर्स एंड इंडस्ट्री के अध्यक्ष ने कहा कि जीएसटी से पहलेदवाओं की एमआरपी पर 65 फीसदी की एक्साइज ड्यूटी लगती थी। इसके लिए दवानिर्माता दवाओं पर मनमानी एमआरपी लिखने के लिए सतर्क रहते थे और उपभोक्ताओं केहितों की रक्षा होती थी। अब दवाओं के बिक्री मूल्य पर जीएसटी वसूला जाता है। दवाओंकी एमआरपी पर जीएसटी नहीं लिया जाता। अब दवाइयों की कीमतों पर लगाम लगाने के लिएकोई नई नीति नहीं है। इसलिए अस्पताल मालिकों, डॉक्टरों और उससे जुड़ी केमिस्टशॉप की मांग के अनुसार अब दवा निर्माता दवाओं के पैकेट या स्ट्रिप पर 5000फीसदी तक मनमानी एमआरपी प्रिंट कर रहे हैं।

सोमानीने कहा, “मैंने5प्रमुख कंपनियों के 1107 दवाइयों की स्टडी की है, जिसकाऔसत एमआरपी रिटेलर की दवाओं की खरीद की कीमत से 500 फीसदी ज्यादा है। आज अगरदवा निर्माता का कुल टर्नओवर (निर्यात के बिना) 3 लाख करोड़ हो तो इसका मतलब है किरिटेलर का टर्नओवर 15 लाख करोड़ होना चाहिए। तो क्या सरकार को 15लाख करोड़ के हिसाब से आयकर और जीएसटी मिल रहा है। इस पर मेरा जवाब हैं कि नहीं।सरकार को करीब 4लाख करोड़ की आय पर आयकर और जीएसटी मिल रहा है। इसका मतलब यह है कि सरकार को करीब 3.3लाख करोड़ के आयकर और 1.1 लाख करोड़ के जीएसटी का नुकसान हो रहा है, परआम जनता को दवाओं पर प्रिंट एमआरपी के बहाने 5000 फीसदी तक ज्यादा दाम वसूलकर लूटा जा रहा है। दवाओं की कीमतों पर 30 फीसदी का मार्जिन कैप लगाने सेसरकार को राजस्व का घाटा नहीं होगा और लोगों के हितों की सुरक्षा की जा सकेगी।

उन्होंने कहा  की एकतरफ सरकार जेनेरिक दवाएं खरीदने की बात कर बात कर रही है, दूसरीतरफ जेनेरिक दवाओं की कीमतों ब्रैंडेड दवाओं के समान ही है। इससे दोनों में कोईअंतर नहीं रह गया है। कोई भी जेनेरिक और ब्रैंडेड दवाओं में अंतर नहीं कर सकता।क्योंकि दोनों ही ब्रैंड नेम से प्रिंट होती है। पेटेंट के खत्म होने के बाद सभीकेवल जेनेरिक दवाएं ही होती हैं। ब्रैंडेड और जैनेरिक दवा केक्वालिटी में कोई अंतर नही ब्रैंडेड के नाम पर दवा कम्पनी की लुट व जैनेरिक के नाममें एबनोरमल एमआरपी प्रिंट करवाकर अस्पताल, डाॅक्टर और उनसे संबधिंत दवाविक्रेता की लुट मची है।

आजडॉक्टरों पर बड़े-बड़े या कैपिटल अक्षरों में जेनेरिक दवाएं लिखने की कोई बाध्यतानहीं है। इसलिए वह न पढ़े जाने वाली भाषा में ब्रैंडेड दवाइयां लिख रहे हैं। मरीजोंको डॉक्टरों के पास बनी केमिस्ट की दुकानों से वह दवाएं मनमाने दामों पर खरीदनीपड़ती है।


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