शिक्षक दिवस पर टेन न्यूज़ के विशेष कार्यक्रम में वरिष्ठ शिक्षाविदों ने साझा किए छात्रों के लिए महत्वपूर्ण विचार

ROHIT SHARMA

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नई दिल्ली :– शिक्षक दिवस पर टेन न्यूज़ नेटवर्क ने एक बड़ी पहल की , जी हॉ टेन न्यूज़ नेटवर्क ने शिक्षक दिवस पर विशेष कार्यक्रम किया, जिसमें विद्वान शिक्षाविदों ने हिस्सा लिया। साथ ही शिक्षक दिवस पर अपने विचार प्रकट किए।

आपको बता दे की इस कार्यक्रम में बिमेटक संस्थान के निदेशक डॉ हरिवंश चतुर्वेदी, शोभित यूनिवर्सिटी के चांसलर कुंवर शेखर विजेंदर, डीपीएस ग्रेटर नोएडा की निदेशिका रेनू चतुर्वेदी, गुरुग्राम यूनिवर्सिटी के वाईस चांसलर डॉ मार्कण्डेय आहूजा, गलगोटिया यूनिवर्सिटी की वाईस चांसलर प्रीति बजाज, आईटीएस इंजिनीरिंग कॉलेज के कार्यकारणी निदेशक डॉ विकास सिंह शामिल रहे।

वही इस कार्यक्रम का संचालन टेन न्यूज़ नेटवर्क के तेज तर्रार एंकर डॉ सिद्धार्थ गुप्ता ने किया। डॉ सिद्धार्थ गुप्ता पेशे से डॉक्टर , लेखक भी है।

 

शिक्षक दिवस की शुरुआत और इसके इतिहास के बारे में बात करें तो द्वितीय राष्ट्रपति डॉ. सर्वपल्ली राधाकृष्णन का जन्म 5 सितंबर 1888 को तमिलनाडु में हुआ था। उन्हीं के सम्मान में इस दिन को शिक्षक दिवस के रूप में मनाया जाता है।

डॉ. राधाकृष्णन देश के द्वितीय राष्ट्रपति थे और उन्हें भारतीय संस्कृति के संवाहक, प्रख्यात शिक्षाविद्, महान दार्शनिक और एक आस्थावान हिन्दू विचारक के तौर पर याद किया जाता है। पूरे देश को अपनी विद्वता से अभिभूत करने वाले डा. राधाकृष्णन को भारत सरकार ने सर्वोच्च सम्मान भारत रत्न से अलंकृत किया था।

डॉ हरिवंश चतुर्वेदी (निदेशक, बिमेटक संस्थान ग्रेटर नोएडा)

डॉ हरिवंश चतुर्वेदी ने कहा की में शिक्षक दिवस पर सर्वपल्ली राधाकृष्णन को श्रंद्धाजंलि अर्पित करता हूं , जिन्होंने शिक्षक दिवस को विशाल रूप दिया , उन्होंने अपने जन्मदिन को शिक्षक दिवस के रूप में बनाने की बात कही , सारे देश के लोगों ने उसे स्वीकार किया |

हमारा पूरा देश आज भी शिक्षा दिवस को मनाता है, राष्ट्रीय दिवस के अलावा शिक्षा दिवस पर गहमागहमी होती है | स्कूल , कॉलेज और यूनिवर्सिटी में शिक्षक दिवस को उत्साह के साथ मनाया जाता है , लेकिन पहली बार एक सवाल पैदा हो रहा है , हमे शिक्षक के पेशे के अर्थ को ढूढना है , शिक्षा के मकसद को ढूढना है , क्योंकि नई राष्ट्रीय शिक्षा नीति 29 जुलाई 2020 को घोषित हुई ।

उन्होंने कहा कि आजाद हिंदुस्तान में शिक्षकों की क्या भूमिका रही है , उस पर प्रकाश डालना चाहता हूँ , प्राचीनकाल मे गुरुओं को भगवान से भी ऊपर माना गया है । आधुनिक दुनिया मे गुरुओं ही नई जनरेशन को तैयार करता है , ये नई जनरेशन जो हमारे देश को संभालेगी । जिस देश मे शिक्षक , शिक्षा प्रणाली सही न हो उस देश का विकास नही हो सकता है , सम्रद्धि और खुशहाली नही हो सकती ।

आजादी के बाद हमारे देश मे शिक्षकों को बड़ा रोल मिला , उसका कारण था देश को एक आधाररूप ढाँचा का निर्माण करना था । शून्य से देश की संरचना करनी थी , आजादी के आंदोलन में शिक्षकों का बड़ा रोल रहा है , आंदोलन में डॉक्टर , वकीलों और पत्रकारों के साथ साथ शिक्षकों ने बढ़चढ़कर अपना योगदान दिया ।

शिक्षक ही बच्चों के मन मे यह शब्द डालता है कि आने वाले समय मे आप ही देश के नेता होंगे , साथ ही आप ही देश को सँभालेंगे । मैं समझता हूँ कि शिक्षकों, प्राध्यापकों को इन इस बातों पर गौर करना चाहिए। वे लिखते हैं कि शिक्षकों के बारे में समाज की धारणा पिछले 50 वर्षों में कैसे बदल गई, यह हमारे साहित्य और फिल्मों में शिक्षक पात्रों के चरित्र-चित्रण में ही देखा जा सकता है। 20वीं सदी के महान लेखकों यथा प्रेमचंद, शरत चंद्र, बंकिम चंद्र, रवींद्रनाथ टैगोर आदि ने अपनी रचनाओं में शिक्षकों को बहुत सकारात्मक रूप में चित्रित किया था।

भारतीय फिल्में भी आजादी से पहले और बाद के कालखंडों में शिक्षकों को राष्ट्र निर्माता और एक आदर्श नायक के रूप में दिखाते रहे। फिल्म गंगा-जमुना में जब अभिनेता अभि भट्टाचार्य को इंसाफ की डगर पे, बच्चों दिखाओ चल के गाना स्कूली बच्चों के साथ गाता हुआ दिखाया गया, तो भारतीय युवाओं को एक बहुत मूल्यवान संदेश मिला। यह संदेश था कि शिक्षक समाज के लिए एक जिम्मेदार भावी पीढ़ी तैयार करते हैं, जो हमारे शाश्वत मूल्यों यथा-न्याय, समानता, भाईचारा और सामाजिक सद्भाव की रखवाली करती है।

दरअसल शिक्षक दिवस को एक उत्सवधर्मी औपचारिकता न समझते हुए आज यह सोचने की जरूरत है कि शिक्षक होने के क्या मायने और सरोकार होते हैं? क्या हम शिक्षकों को उतना सम्मान देते हैं, जितना कि समाज में किसी आईएएस, आईपीएस, उद्योगपति, राजनेता, इंजीनियर, डॉक्टर, वकील, पत्रकार और बैंक अधिकारी को दिया जाता है?

जिस भारतीय समाज में 20वीं सदी में सर आशुतोष मुखर्जी, एस राधाकृष्णन, वी एस झा, के एन राज, पी सी महलनोबिस, रामास्वामी मुदलियार, वी के आर वी राव और डी टी लकड़वाला जैसे शिक्षकों की पूजा होती थी, उसी समाज की हमारी नई पीढ़ी क्रिकेट, फिल्म और टीवी के कलाकारों, एथलीटों और उद्यमियों को ही अपना आदर्श क्यों समझने लगी है? कहीं यह भारतीय समाज में शिक्षकों के प्रति कम हो रहे सम्मान का एक उदाहरण तो नहीं?

कुंवर शेखर विजेंदर (चांसलर, शोभित यूनिवर्सिटी)

 

शोभित यूनिवर्सिटी के चांसलर कुंवर शेखर विजेंदर ने कहा कि में शिक्षक दिवस पर सभी शिक्षकों को नमन करता हूँ। उन्होंने कहा कि पूर्ण समाज मे जब सीखने की चाहत होती है तो हम किसी से सीख सकते है, सीखने की लग्न होनी चाहिए ।

सभी ने देखा होगा कि जिसको सबसे ज्यादा नॉलेज होती है , हमे लगता है कि इस व्यक्ति से कुछ सीख सकते है, जिससे हमारा भविष्य बन सकता है , वो व्यक्ति हमारा गुरु होता है । गुरु हमेशा अपने शिष्यों के लिए ही जीता है , साथ ही उसे बहुत ज्यादा खुशी तब होती है जब उसका शिष्य अच्छे मुकाम पर होता है ।

शिक्षक दिवस का मौका हम सबके लिए खास होता है। 5 सितंबर का दिन एक ऐसा दिन होता है जब हम अपने गुरुओं (शिक्षकों) के द्वारा किए गए मार्गदर्शन और ज्ञान के बदले हम उन्हें श्रद्धा से याद करते हैं।

हम सभी आज जो भी अपने शिक्षकों के प्रयासों और नेक मार्गदर्शन के कारण ही हैं। भारतीय जीवन-दर्शन में गुरुओं को ईश्वर से भी बढ़कर बताया गया है। देश को नई शिक्षा नीति मिलने में 34 वर्ष का समय सरकारों को लग गया। 6 साल पहले सत्ता में आई नरेंद्र मोदी की सरकार ने यह साहस दिखाया है और देश के सामने एक नई शिक्षा नीति पेश की है, जिससे निश्चित ही बच्चों में सीखने का जज्बा पैदा होगा।

उन्होंने कहा कि मैं एचआरडी मिनिस्टर निशंक जी का धन्यवाद करना चाहूंगा, जिन्होंने यह साहस भरा फैसला लिया। क्योंकि जब भी कोई नई नीति बनाई जाती है तो उसके लिए काफी चुनौतियां सामने आती हैं, लोग आलोचना करते हैं। देश को नई शिक्षा नीति की बड़े लंबे समय से जरूरत थी जो अब पूरी हो गई है़।

हम ना केवल अपने विश्वविद्यालयों को विदेशों तक लेकर जाएंगे, बल्कि विदेशों के विश्वविद्यालयों को अपने यहां आमंत्रित करेंगे। यह जो साथ आने की ललक है, यह शिक्षा में काफी आवश्यक है और देश को आगे बढ़ाने में महत्वपूर्ण घटक साबित होगा।

उन्होंने कहा कि नई शिक्षा नीति के तहत अफसरशाही खत्म हो जाएगी पहले कॉलेज यूनिवर्सिटी के लिए मान्यता प्राप्त करने में ही इंसान चकरा जाता था अब इस सिस्टम को काफी पारदर्शी बनाने का प्रयास किया गया है और सबसे महत्वपूर्ण बात इस नई शिक्षा नीति में यह है कि इसमें संपूर्ण विकास की बात कही गई है।


रेनू चतुर्वेदी (निदेशिका, डीपीएस ग्रेटर नोएडा)

डीपीएस ग्रेटर नोएडा की निदेशिका रेनू चतुर्वेदी ने कहा कि भगवान गणेश भी शिक्षक रहे है , उनको तस्वीरों में दर्शाया गया है कि भगवान गणेश शिष्यों को ज्ञान दे रहे है। मेरा मानना है कि भगवान गणेश की इडोलॉजी अपनानी चाहिए , प्रथम हम अपने गुरु का स्मरण करते है ।

उन्होंने कहा कि शिक्षक उस दिए की तरह होते हैं जो खुद तो जलता है लेकिन दूसरों को रोशनी देता है। हम सभी को अपनी जिम्मेदारियों का अहसास करते हुए बच्चों की बेहतर शिक्षा के लिए निरंतर प्रयास करते रहना चाहिए। शिक्षा के बिना जीवन अधूरा है। शिक्षा प्राप्त करनी है तो सुख और सुविधाओं का त्याग करना होगा।

कठिन परिश्रम करने वाले विद्यार्थी सदैव ही शिखर पर पहुंचते हैं। भारत में प्राचीन समय से ही गुरु व शिक्षक परंपरा चली आ रही है, लेकिन जीने का असली सलीका हमें शिक्षक ही सिखाते हैं। सही मार्ग पर चलने के लिए प्रेरित करते हैं।

गुरु’ का हर किसी के जीवन में बहुत महत्व होता है। समाज में भी उनका अपना एक विशिष्ट स्थान होता है। सर्वपल्ली राधाकृष्णन शिक्षा में बहुत विश्वास रखते थे। वे एक महान दार्शनिक और शिक्षक थे। उन्हें अध्यापन से गहरा प्रेम था। एक आदर्श शिक्षक के सभी गुण उनमें विद्यमान थे।

डॉ मार्कण्डेय आहूजा (वाईस चांसलर, गुरुग्राम यूनिवर्सिटी )

गुरुग्राम यूनिवर्सिटी के वाईस चांसलर डॉ मार्कण्डेय आहूजा ने कहा कि हमेशा बताया गया है कि गुरु का पद भगवान से बड़ा होता है। जिसने हमे भगवान से मिलाया, वो गुरू ही है। मैं उन्हें नमन करता हूँ। गुरु ने हमे देखना सिखाया, परखना और पथ का ज्ञान सिखाया है, गुरु ने हमे जीना सिखाया है।

गुरु को लेकर स्वामी विवेकानंद ने कहा था कि मुझे 100 आत्मवान व्यक्ति चाहिए, ताकि में देश की दशा और दिशा बदल सकूं, ये आत्मवान व्यक्ति आएंगे कहां से , ये आत्मवान व्यक्ति निश्चित तौर पर गुरु ही पैदा करेंगे, अन्यथा हो नही सकते। ‘गुरु’ केवल शब्द नहीं, बल्कि वास्तविक अर्थ को स्वयं में समेटे हुए ज्ञान का वह पुंज है जो हमें अंधकार से प्रकाश की ओर ले जाता है।

आज की चकाचौंध में गुरु-शिष्य का पावन रिश्ता पीछे छूटता जा रहा है। इसलिए शिक्षकों को प्राथमिकता के तौर पर पुरातन गुणों को पुन: विकसित कर चन्द्रगुप्त, शिवाजी जैसे शिष्य पैदा करने होंगे। राष्ट्र की उन्नति देश के युवाओं पर निर्भर होती है और शिक्षक इस कार्य में नैतिक भूमिका निभा सकते हैं।

उन्होंने कहा कि छात्र जीवन पर्यन्त अपने शिक्षक के आदर्शों, चाल-चलन को अपने जीवन में समाहित करता है। इसलिए शिक्षक को अपने जीवन में आदर्श स्थापित करते हुए छात्रों के लिए प्रेरणास्रोत बने रहना चाहिए।

प्रीति बजाज (वाईस चांसलर, गलगोटिया यूनिवर्सिटी)

गलगोटिया यूनिवर्सिटी की वाईस चांसलर प्रीति बजाज ने कहा कि शिक्षक का कार्य शिष्यों को सही शिक्षा देना है, जिससे शिष्य अपना भविष्य अच्छा बना सके। साथ ही अच्छा मुकाम हासिल कर सके, वही जब शिष्य बड़े मुकाम पर पहुंच जाता है तो माँ बाप से ज्यादा गुरु को खुशी होती है।

सर्वपल्ली राधाकृष्णन के रास्ते पर चलकर देश का नाम रोशन कर सकते हैं और शिक्षा के क्षेत्र में आगे बढ़ सकते हैं। हमे लर्न , अनलर्न , रीलर्न जैसे तीन शब्दों को हमेशा याद रखना पड़ेगा। जिसकी वजह से हम अपना जीवन सुधार सकते है। यही बाते गुरु कहते है , वही इन तीनों शब्दों में भी अमल करती हूं ।

उन्होंने कहा कि अगर द्रोणाचार्य नही होते तो अर्जुन जैसे महान योद्धा नही होते, ऐसे बहुत से महान व्यक्ति जिन्होंने अपने गुरुओं के मार्गदर्शन पर चलकर भविष्य बनाया है। हमारा देश सावित्री बाई फुले का योगदान कभी नही भूल सकता क्योंकि उन्होंने लड़कियों की पढ़ाई के लिए बहुत ज्यादा मेहनत की है।

उन्होंने कहा कि इस कोरोना महामारी में बच्चों की पढ़ाई और उनका साल खराब न हो , इसलिए शिक्षकों ने वेबिनार के माध्यम से बच्चों को शिक्षा दे रहे है, साथ ही उन्होंने कहा कि हमारी यूनिवर्सिटी में 400 से ज्यादा वेबिनार हो चुके है।

डॉ. विकास सिंह (कार्यकारिणी निदेशक, आईटीएस इंजिनीरिंग कॉलेज)

आईटीएस इंजिनीरिंग कॉलेज के कार्यकारणी निदेशक डॉ विकास सिंह ने कहा कि मैं इस बात से बहुत सहमत हूँ कि समाज मे शिक्षक को बहुत सम्मान मिलता है , ये सम्मान इसलिए मिलता है क्योंकि शिक्षक ही बच्चों के अंदर छिपी हुई प्रतिभाओं को बाहर निकाल कर लाता है।

उन्होंने कहा की अपनी महत्ता के कारण गुरू को ईश्वर से भी उच्च पद दिया गया है। गुरू को ब्रह्मा कहा गया है क्योंकि वह शिष्य को बनाता है नव जन्म देता है। गुरू, विष्णु भी है, क्योंकि वह शिष्य की रक्षा करता है। गुरू, साक्षात महेश्वर भी हैं क्योंकि वह शिष्य के सभी दोषों का संहार भी करता है।

शिक्षक पीढ़ी का निर्माता होता है। देश के विकास में शिक्षक का अमूल्य योगदान होता है। शिक्षक किसी भी राष्ट्र की रीढ़ होता है। शिक्षक समाज को प्रज्ञावान, सभ्य, सुसंस्कृत और सदाचारी बनाने के लिये सदैव नि:स्वार्थ भाव से प्रयत्नशील रहता है। शिक्षक के लिये उसके विद्यार्थी सदैव जीवन की पूंजी की भांति होते हैं। शिक्षक अपने विद्यार्थियों के भविष्य को कुम्हार की तरह गढ़ता है।

डॉ विकास सिंह ने कहा, विदित है कि भारत के द्वितीय राष्ट्रपति डॉ. सर्वपल्ली राधाकृष्णन एक अनुकरणीय शिक्षक, दार्शनिक और विद्वान थे, जिन्होंने अपना जीवन शिक्षा और देश के युवाओं के लिए समर्पित किया। डॉ. सर्वपल्ली राधाकृष्णन ने कहा था कि, ”यदि मेरा जन्मदिन मनाने के बजाय, 5 सितंबर को शिक्षक दिवस के रूप में मनाया जाता है, तो यह मेरे लिये गौरवपूर्ण सौभाग्य होगा।” इसलिए वर्ष 1962 से 5 सितम्बर को राष्ट्रीय शिक्षक दिवस के रूप में मनाया जाता है।

वर्तमान में कोविड-19 ने शिक्षा का संपूर्ण परिदृश्य ही परिवर्तित कर दिया है। अब विशेष परिस्थितियाँ निर्मित होने से हमारे शिक्षकों से विद्यार्थियों की आशायें और अपेक्षायें तथा उनके नैतिक मार्गदर्शन की आवश्यकता बढ़ गई है। इन विकट परिस्थितियों में भी शिक्षक अपने विद्यार्थियों के अज्ञान के अंधकार को दूर करते हुए उनके जीवन को प्रकाशित करने का प्रयास कर रहे हैं।

वैसे तो शिक्षक प्रतिवर्ष नवीन शिक्षण सत्र के प्रारंभ होने से पूर्व ही आगामी कार्य योजना बनाकर उसके अनुसरण का प्रयास करते हैं। परन्तु कोरोना महामारी के चलते इस बार संपूर्ण विश्व के साथ-साथ हमारा राष्ट्र तथा उसकी शैक्षणिक व्यवस्था भी प्रभावित हुई है।

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