मोदी सरकार द्वारा लाए गए तीन नए कृषि कानूनों के खिलाफ किसान संगठन करीब डेढ़ महीने से दिल्ली के बॉर्डर पर आंदोलन कर रहे हैं। किसानों की सबसे ज्यादा नाराजगी भले ही हरियाणा और पंजाब में देखने को मिल रही है, लेकिन यूपी के किसानों में भी गुस्सा कम नहीं है।
किसान कल्याण मिशन किसान सम्मेलनों के जरिए कृषि कानून पर फैले भ्रम को दूर करने के साथ-साथ चौपाल लगाकर किसानों को कृषि कानूनों के फायदे गिनाने के बाद योगी सरकार आज यानी बुधवार को किसान कल्याण मिशन का आगाज करने जा रही है। योगी सरकार इस मिशन के जरिए किसान कल्याण और किसानों की आमदनी दोगुना करने की मुहिम शुरू कर रही है।
इन किसानों ने बीते आठ दिसंबर को भारत बंद का आह्वान किया था जिसे करीब दो दर्जन विपक्षी राजनीतिक पार्टियों और विभिन्न किसान संगठनों का समर्थन मिला था।
इस प्रदर्शन के दौरान केंद्र सरकार और किसान नेताओं के बीच कई राउंड की बातचीत हुई लेकिन कोई नतीजा नहीं निकला। किसान संगठनों के कुछ प्रतिनिधियों से गृहमंत्री अमित शाह की मुलाक़ात से भी कोई रास्ता नहीं निकला।
दिल्ली के बॉर्डर पर दिन रात बैठे किसान तीनों क़ानून को वापस लेने की मांग कर रहे हैं जबकि केंद्र सरकार क़ानून के कुछ विवादास्पद हिस्सों में संशोधन के लिए तैयार है। सरकार यह भी दावा कर रही है कि नए क़ानूनों से किसानों का कोई नकुसान नहीं होगा।
टेन न्यूज लाइव पर किसानों के आंदोलन को लेकर परिचर्चा का आयोजन किया गया, जिसमें भारतीय किसान यूनियन के राष्ट्रीय प्रवक्ता राकेश टिकैत, कृषि अर्थशास्त्री डॉ बीरपाल सिंह, कृषि चिंतक व खाप प्रतिनिधि डाॅ विकास पंवार शामिल हुए।
कार्यक्रम का संचालन राघव मल्होत्रा ने बेहद बखूबी के साथ किया। उन्होंने किसानों की मांगो को स्पष्टता से दर्शाने के लिए बेहतरीन सवाल जवाब किए और कोशिश की कि किसानों की बात जन-जन तक पहुंच सके।
भारतीय किसान यूनियन के राष्ट्रीय प्रवक्ता राकेश टिकैत ने कहा कि सरकार गोल-गोल घुमा देती है। बैठक में सरकार तीनों बिल वापस लेने से मना कर देगी, एमएसपी पर कानून बनाने को लेकर कमेटी बनाने को कहेगी। फिर चाय पी जायेगी। यही बैठक में होता है।
किसान नेता राकेश टिकैत ने कहा कि सरकार के साथ बैठक का एजेंडा- स्वामीनाथन कमेटी की रिपोर्ट, तीन कृषि क़ानूनों की वापसी और न्यूनतम समर्थन मूल्य पर क़ानून बने रहेगा। उन्होंने कहा कि उम्मीद है कि सरकार बात मान ले, अगर मांगें पूरी नहीं होती तो आंदोलन चलेगा।
राकेश टिकैत ने कहा कि आंदोलन के दौरान अब तक 60 किसान अपनी जान गंवा चुके हैं। हर 16 घंटे में एक किसान मर रहा है। इसका जवाब देना सरकार की जिम्मेदारी है।
राष्ट्रीय प्रवक्ता राकेश टिकैत ने सरकार को दो टूक कहा कि जब तक सरकार ये तीनों कानून वापस नहीं लेती है, तब तक हमारी घर वापसी नहीं होगी।
राकेश टिकैत ने कहा कि 8 जनवरी 2021 को सरकार के साथ हमारी फिर से मुलाकात होगी। इस दौरान तीनों कृषि कानूनों को वापस लेने पर और एमएसपी दोनों मुद्दों पर 8 तारीख को बात होगी। हमने सरकार को बता दिया है कि कानून वापसी नहीं तो घर वापसी नहीं।
बता दें कि किसान आंदोलन का 39वां दिन गुजर गया है। सरकार और किसान संगठनों के बीच 8 राउंड की वार्ता हो चुकी है, लेकिन अबतक इसका कोई नतीजा नहीं निकला है। किसान कृषि कानून को वापस करवाने की मांग पर अडिग हैं।
भारतीय किसान यूनियन के राष्ट्रीय प्रवक्ता राकेश टिकैत ने कहा कि मीटिंग में किसानों ने एक सुर में कहा कि जब तक सरकार कानून वापस नहीं लेती है, तबतक कोई बातचीत नहीं होगी। राकेश टिकैत ने कहा कि पिछली बार के मुकाबले इस बार सरकार के रुख में सकारात्मक बदलाव दिख रहा था। उन्होंने कहा कि सरकार ने कहा है कि अगले चार दिन में हम आपस में सलाह मशविरा करके 8 जनवरी को फिर से बातचीत की टेबल पर आएंगे।
डॉक्टर बीरपाल सिंह ने अपनी बात रखते हुए कहा कि किसान खुशहाल तो देश खुशहाल। हमारे देश में आज की तारीख में 86% छोटे किसान हैं, जिनके पास दो हेक्टेयर से कम जमीन है। 60% ऐसे किसान है, जिनके पास 1 हेक्टेयर से कम जमीन है। उनके पास ना तो कोई बैल है, ना ट्रैक्टर है और ना ही कोई अन्य साधन है।
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उन्होंने कहा कि छोटा किसान हमेशा से पिसता आया है। छोटे किसान ही हमेशा सुसाइड करते आ रहे हैं। सबसे ज्यादा समस्याएं उन्हीं के साथ हैं। उन्होंने कहा कि किसानों को न्यूनतम समर्थन मूल्य जरूर मिलनी चाहिए। छोटे किसानों के पास ट्रांसपोर्टेशन की व्यवस्था नहीं है, ताकि वे अपने अनाज या फसल को आजादपुर मंडी लेकर जा सके। छोटे किसान ग्रामीण क्षेत्रों में ही बिना न्यूनतम समर्थन के अपनी फसल को बेच देते हैं।
किसान यूनियन के राष्ट्रीय अध्यक्ष सवित मलिक ने अपनी बात रखते हुए कहा कि सरकार के जो नुमाइंदे किसानों के साथ वार्ता करने आते हैं, उनके हाथ में कुछ है ही नहीं। किसानों को बरगलाने के लिए वार्ताओं का दौर चल रहा है। कृषि कानूनों पर सरकार वैसे ही काम कर रही है, जैसे उद्योगपति उनको आदेश दे रहे हैं। किसानों के प्रतिनिधि रोज आते हैं और अपनी घिसी-पीटी बातें कर चले जाते हैं।
उन्होंने कहा कि किसानों की मांगों का कोई हल नहीं निकल रहा है। सरकार कॉरपोरेट्स घरानों के लोगों के सामने कठपुतली की तरह नाच रही है। सरकार उद्योगपतियों के इतने दबाव में है कि अपना फैसला ही नहीं ले पा रही है। जब किसानों ने पहले ही लिख कर दे दिया है कि उनकी यह मांगे हैं, फिर बार-बार क्यों वार्ताओं का दौर चल रहा है। क्यों ना एक बार ही बैठकर मुद्दों को सुलझाया जाए। लेकिन सरकार उद्योगपतियों के कब्जे में हैं।
तीनों कृषि कानून उद्योगपतियों को फायदा पहुंचाने के लिए बनाए गए हैं। इसलिए अभी तक इन पर कोई भी निर्णय नहीं निकल सका है। किसान दिन रात कड़ाके की ठंड में सड़क पर प्रदर्शन कर रहा है। उसकी सुध लेने वाला कोई नहीं है। अब तक 60 से अधिक किसान आंदोलन के दौरान अपनी जान गंवा चुके हैं। लेकिन सरकार के कान पर जूं तक नहीं रेंग रही है।
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