भारतीय खुफिया एजेंसियां संदेह के कटघरे में

प्रोफेसर अनिल कुमार निगम

जम्मू-कश्मीर के पुलवामा में सीआरपीएफ जवानों पर आतंकी हमले ने पूरे देश को स्‍तब्‍ध कर दिया है। हमले में 40 जवानों की मौत हो गई और इससे अधिक संख्‍या में घायल हो गए। यह हमला 18 सितंबर 2016 को उरी सेक्टर में हुए हमले से भी बड़ा है। इस हमले ने यह साबित कर दिया है कि हमारी सुरक्षा व्‍यवस्‍था में भारी खामी है और आतंकी संगठन हमारे सुरक्षा चक्र को बहुत आसानी से भेद सकते हैं। निस्‍संदेह, कश्‍मीर में आतंकी संगठनों को संरक्षण देने का काम पड़ोसी देश पाकिस्‍तान करता है, लेकिन जिस तरीके से साढ़े तीन सौ किलोग्राम विस्‍फोटक सामग्री लिए एक कार ने सुरक्षा चक्र को भेदते हुए हमारे जवानों को खाक कर दिया, हमारी आंतरिक सुरक्षा व्‍यवस्‍था पर बहुत बड़ा प्रश्‍न चिह्न लग गया है। यही नहीं, देश की सभी खुफिया एजेंसियां भी संदेह के कटघरे में आ गई है।

वास्‍तव में यह जम्मू कश्मीर के इतिहास में अब तक का सबसे बड़ा आतंकी हमला है। विस्‍फोट इतना ताकतवर था कि मौके पर जवानों के चीथड़े उड़ गए और मशीनों के पुर्ज़ें इधर-उधर बिखर गए। इसके पहले 18 सितंबर 2016 को जम्मू और कश्मीर के उरी सेक्टर में  एलओसी के नजदीक भारतीय सेना के स्थानीय मुख्यालय पर हमला हुआ था जिसमें 18 जवान शहीद हो गए थे। उसके बाद भारतीय सेना ने सीमा पार पाकिस्‍तान में सर्जिकल स्‍ट्राइक कर कई आतंकी शिवरों को नष्‍ट करते हुए 38 आतंकियों को ढेर कर दिया था।

पुलवामा आतंकी हमले के बाद भारत सरकार का रुख बेहद सख्त है। पाकिस्तान में भारत के उच्चायुक्त अजय बिसारिया को दिल्ली बुलाया गया है। भारत ने पाकिस्तान को दिया गया सर्वाधिक वरीयता वाले राष्ट्र का दर्जा वापस ले लिया है। विदेश सचिव विजय गोखले ने पाकिस्तान के भारत में उच्चायुक्त सोहेल मोहम्मद को तलबकर फटकार लगाई है। इसके अलावा विदेश सचिव ने पाकिस्तान के उच्चायुक्त से वहां की जमीन से चल रहे आतंकी संगठनों के विरुद्ध सख्त कार्रवाई करने को कहा है। भारत ने इस आतंकी हमले की जिम्मेदारी पाकिस्तान की जमीन से चल रहे आतंकी संगठनों पर लगाया है। इसके अलावा उसने इस मुद्दे को जी 5+1 देशों के समूह, संयुक्त राष्ट्र संघ जैसे सभी अंतरराष्‍ट्रीय प्‍लेटफार्मों पर पाकिस्तान को घेरने की तैयारी कर  ली है।

इस बात में भी कोई दोराय नहीं है कि पाकिस्तान हमेशा से आतंकियों की पनाहगार रहा है। इसी का नतीजा है कि पाकिस्तान सीरिया से भी ज्यादा खतरनाक हो गया है। ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी और स्ट्रैटजिक फॉरसाइट ग्रुप द्वारा ‘ह्यूमैनिटी एट रिस्क- ग्लोबल टेरर थ्रेट इंडिकेंट’ प्रकाशित रिपोर्ट में कहा गया था कि आतंक की वजह से सीरिया के मुकाबले पाकिस्तान से मानवता को तीन गुना अधिक खतरा है। दूसरी ओर, पाकिस्तान आतंकियों को पनाह देने के मामले में अव्‍वल रहा है।

यहां पर सबसे बड़ा सवाल यह है कि जिस हाईवे में चप्‍पे-चप्‍पे पर सुरक्षा कर्मचारी तैनात रहते हैं, वहां पर अचानक विस्‍फोटक सामग्री से लदी गाड़ी कैसे और कहां से आ गई? आतंकवादियों को किस तरीके से यह सूचना मिली कि इतनी बड़ी संख्‍या में सुरक्षा कर्मचारी एक साथ जा रहे हैं? आतंकी हमलों की पूर्व सूचना एकत्र कर लेनी वाली खुफिया एजेंसियां यह क्‍यों नहीं पता लगा पाईं कि यहां आत्‍मघाती आतंकी हमला हो सकता है? हमारे देश के नीति नियंताओं को इस दिशा में मंथन करना चाहिए कि खुफिया एजेंसियां सही समय पर इसका पता क्‍यों नहीं लगा पाईं? साथ ही यह भी देखना चाहिए कि हमारी खुफिया और सुरक्षा एजेंसियों के अंदर भितरघाती और भेदिया तो पैदा नहीं हो गए, जो हमारी सुरक्षा संबंधी गुप्‍त सूचनाओं को लीक कर रहे हैं? ये ऐसे सवाल हैं जिन पर गंभीरतापूर्वक चिंतन और मंथन करने की आवश्‍यकता है ताकि पूरे देश को चैन की नींद से सुलाने वाले सैनिकों और अर्ध सैनिक बलों को इस तरह के घात और प्रतिघात में अपनी जानें न गंवानी पड़ें।

प्रोफेसर अनिल कुमार निगम, आईआईएमटी कॉलेज समूह के पत्रकारिता एवं जनसंचार संकाय में डीन के पद कार्यरत हैं। प्रो. निगम वरिष्‍ठ स्‍वतंत्र पत्रकार भी हैं। हिंदी पत्रकारिता में 22 वर्षों का अनुभव प्राप्‍त है। हलचल पत्रिका में एसोसिएट एडीटर, दैनिक जागरण में इनपुट एडीटर, ब्‍यूरो चीफ और संस्‍करण प्रभारी के पद पर कार्यरत रह चुके हैं। इसके अलावा अमर उजाला में चार वर्षों तक संवाददाता के पद पर कार्य किया।

आईआईएमटी के पूर्व उन्‍होंने आईएमएस कॉलेज, गाजियाबाद के पत्रकारिता एवं जनसंचार संकाय में दो वर्ष तक एसोसिएट प्रोफेसर के तौर पर अध्‍यापन कार्य किया। इसके पूर्व उन्‍होंने सक्रिय पत्रकारिता के साथ-साथ विभिन्‍न विश्‍वविद्यालयों एवं कॉलेजों में अतिथि प्रवक्‍ता के तौर लगभग 12 वर्षों तक अध्‍यापन भी किया। प्रो. निगम की दो पुस्‍तकें हिंदी पत्रकारिता दृष्टि और सृष्टि तथा पत्रकारिता के बदलते आयाम प्रकाशित हो चुकी हैं। इसके अलावा उनके विभिन्‍न रिसर्च जर्नल में अनेक शोघ लेख और  विभिन्‍न समाचार-पत्रों और पत्रकाओं में छह सौ से अधिक लेख प्रकाशित हो चुके हैं।


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