6YearsofAap: इंडिया अगेंस्ट करप्शन से आम आदमी पार्टी बनने का सफर – अंतरकलह से घिरी पार्टी और सवालिया सर्कट के बीच क्या है आप का भविष्य

Abhishek Sharma

वैसे तो छह साल किसी भी राजनीतिक दल के कार्यकाल में एक लंबा अंतराल नहीं होता, पर राजनीति के विशाल सागर में इसे महज एक छोटी सी यात्रा ही माना जाता है।

अपितु आम आदमी पार्टी के छह साल एक नई पार्टी के रूप में भारतीय राजनीतिक जीवन में एक लंबी छलांग दर्शाते हैं। भारतीय राजनीति पिछले सत्तर सालों में अपनी जड़ों से कट गई है। राजनीतिक दल प्राइवेट लिमिटेड कंपनी बन कर रह गए हैं। जड़ से जुड़े नेताओं की जगह, करोडों रूपये के बल पर टिकट खरीदने वालों की जमात ने ले ली है।

2013 में जब ‘आप’ ने पहली बार चुनाव लड़ा तो सबने मज़ाक उड़ाया। किसी ने गंभीरता से नहीं लिया पर आदर्श से ओतप्रोत और नया हिंदुस्तान बनाने का सपना लेकर आए हज़ारों कार्यकर्ताओं ने असंभव को संभव कर दिखाया। कांग्रेस जैसी जमी जमाई पार्टी दिल्ली में ख़त्म हो गई और उठान पर खड़ी बीजेपी को सरकार बनाने से रोक दिया गया। हालांकि यह उड़ान विधानसभा तक सीमित रही और लोकसभा की सारी सीटें आम आदमी पार्टी दिल्ली में हार गई। मगर विधानसभा में वो हुआ जो इतिहास में कभी-कभी ही होता है। जब मोदी जी के विजय रथ रूपी अश्वमेध के घोड़े को रोकने की ताक़त किसी में नहीं थी तो दिल्ली में ‘आप’ ने 70 में से 67 सीटें जीत कर अजूबा कर दिया।

आप की कामयाबी ने परंपरागत राजनीति को सकते में ला दिया। स्थापित दलों को लगने लगा कि अगर आप सफल हो गई तो उनके दिन थोड़े रह जायेंगे। लिहाजा परंपरागत राजनीति का नया गठबंधन बनने लगा और आप को धराशायी करने का काम शुरू हुआ। अन्य राजनैतिक दलों ने आप सरकार के पर कतरने शुरू कर दिये। एक समय पर आमा आदमी पार्टी के लिए सरकार चलाना मुश्किल हो गया था। सरकार की बर्ख़ास्तगी की आशंका तक जताई जाने लगी। इसी बीच आप के पंद्रह विधायकों को गिरफ़्तार किया गया।

पार्टी के नेताओं पर केस लगाए गए जिसमे आम आदमी पार्टी की काफी हद तक बदनामी हुई, मुख्यमंत्री के कार्यालय पर छापा मारा गया, कथित तौर पर वरिष्ठ अधिकारियों को धमकियां दी गई कि वो आप सरकार के साथ सहयोग न करे। आप ने आरोप लगाया की उपराज्यपाल और पुलिस कमिश्नर के दफ़्तर राजनीति का अखाड़ा बन गये। पर साथ ही आप अन्य राज्यों में बढ़त का सपना संजोती रही।

इस दौरान दिल्ली की तरह पंजाब में भी आप को लेकर गजब का उत्साह दिखा। लोग ये तक कहने लगे कि पंजाब में पार्टी भारी बहुमत से जीतेगी पर ऐसा हो न सका। पार्टी को 20 विधानसभा सीटों पर जीत हासिल हुई जो एक नयी पार्टी के लिये बड़ी उपलब्धि है। दिल्ली में इस बीच पार्टी एमसीडी का चुनाव हार गई। पंजाब के बाद इस हार ने मनोबल तोड़ने में कोई कोर कसर नहीं छोड़ी। पार्टी के लिए ये मुश्किल दौर था। आलोचकों ने फिर आप को ख़ारिज करने का काम शुरू कर दिया।

इसके बाद पार्टी के सामने सबसी बड़ी समस्या आई अंतर्कलह की। दिल्ली के मुख्यमंत्री और आम आदमी पार्टी के संयोजक अरविंद केजरीवाल के लिए कुमार विश्वास एक समय मुश्किल का सबब बन गए थे। कुमार विश्वास न तो केजरीवाल से निगले जा रहे हैं और न ही उगले जा रहे हैं। ऐसे में केजरीवाल के पास डैमेज कंट्रोल के लिए केवल कुमार विश्वास को मनाने के लिए कोई अनूठा तरीका अपनाने का ही चारा है।

पार्टी के विधायक सूत्र के अनुसार जिस दिन कुमार विश्वास ने सोशल मीडिया पर वीडियो अपलोड किया था, उसी दिन उन्होंने विश्वास को फोन किया था। पार्टी की अंदरुनी स्थिति पर पार्टी के संस्थापक नेता से चर्चा की थी। आम आदमी पार्टी के दक्षिणी दिल्ली के एक अन्य विधायक का कहना था कि इस समय पार्टी के अधिकांश विधायक और नेता कुमार विश्वास के संपर्क में हैं।

यही स्थिति पार्टी के कार्यकर्ताओं की भी है। एचसीएल की नौकरी छोडक़र आम आदमी पार्टी के साथ जुडऩे वाले सूत्र के मुताबिक एमसीडी चुनाव में जिस तरह से टिकट का वितरण हुआ, प्रचार की रणनीति बनी उससे पार्टी के भीतर काफी गुस्सा है। ऐसे में पार्टी कार्यकर्ता कुमार विश्वास के सामने लगातार अपनी नाराजगी जाहिर कर रहे हैं।

कुमार विश्वास के विरोधी कुमार की नाराजगी को दो हवा देने में जुट गए हैं। मीडिया से राजनीति में आए आम आदमी पार्टी के एक नेता का कहना है कि राज्यसभा में जाने का रोग बहुत खराब है। वहीं पार्टी के एक अन्य नेता का कहना है कि कुमार विश्वास लगातार भाजपा के संपर्क में हैं।

पार्टी के विधायक अमानतुल्लाह खान ने भी इसी तरह की सोच को हवा दे दी। अमानतुल्लाह खान ने कहा कि कुमार विश्वास पार्टी का संयोजक बनकर उसे हड़पना चाहते हैं। वह भाजपा के संपर्क में हैं। अमानतुल्लाह खान ने कुमार विश्वास द्वारा पार्टी की हार के पीछे ईवीएम की बजाय कारणों के जिम्मेदार होने की बात कही थी। वहीं कुमार विश्वास अब बहुत सध कर चल रहे हैं।

यह पार्टी किसी न किसी बात के कारण चर्चा में रहती है। पन्द्रह-बीस दिन में इससे जुड़ी कोई न कोई अनोखी बात होती रहती है। पार्टी ने शुरुआत में ख़ुद को बीजेपी और कांग्रेस से अलग दिखाने की कोशिश की, पर 2014 के चुनाव में इसके नेतृत्व ने मोदी के समांतर खड़े होने की कोशिश की। संयोग से दिल्ली में उसे सफलता मिली

इस पार्टी के भविष्य को लेकर सवाल खड़े हो रहे हैं। एक सवाल यह भी है कि इस पार्टी में बार-बार इस्तीफ़े क्यों होते हैं?

आशुतोष ने अपने इस्तीफ़े की घोषणा ट्विटर पर जिन शब्दों से की है, उनसे नहीं लगता कि किसी नाराज़गी में यह फ़ैसला किया गया था। दूसरी तरफ अरविंद केजरीवाल ने जिस अंदाज़ में ट्विटर पर उसका जवाब दिया, उससे लगता है कि वे इस इस्तीफ़े के लिए तैयार नहीं थे।

भ्रष्टाचार के विरुद्ध भारत देश का राष्ट्र-व्यापी जन-आंदोलन है, जिसके द्वारा देश में भ्रष्टाचार के विरुद्ध कठोर कानून बनाने की मांग की गई। कई जाने-माने सामाजिक कार्यकर्ता जैसे अन्ना हजारे, अरविन्द केजरीवाल, मेधा पाटेकर, किरण बेदी आदि ने इस आंदोलन का नेत्र्तव किया। भ्रष्टाचार विरोधी भारत (इंडिया अगेंस्ट करप्शन) नामक गैर सरकारी सामाजिक संगठन का निमाण करेंगे। संतोष हेगड़े, वरिष्ठ अधिवक्ता प्रशांत भूषण, मैग्सेसे पुरस्कार विजेता सामाजिक कार्यकर्ता अरविंद केजरीवाल ने यह बिल भारत के विभिन्न सामाजिक संगठनों और जनता के साथ व्यापक विचार विमर्श के बाद तैयार किया था। इसे लागु कराने के लिए सुप्रसिद्ध सामाजिक कार्यकर्ता और गांधीवादी अन्ना हजारे के नेतृत्व में 2011 में अनशन शुरु किया गया। 16 अगस्त को हुए जन लोकपाल बिल आंदोलन 2011 को मिले व्यापक जन समर्थन ने मनमोहन सिंह के नेतृत्व वाली भारत सरकार को संसद में प्रस्तुत सरकारी लोकपाल बिल के बदले एक सशक्त लोकपाल के गठन के लिए सहमत होना पड़ा।


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