भारतीय नागरिकों के अधिकारों पर खुली बहस : श्रवण कुमार शर्मा

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दिनांक ५ अक्टूबर को नॉएडा में भारतीय नागरिकों के अधिकारों पर इंदिरा गांधी कला केंद्र मै एक खुली बहस हुई, जिसमें अनेक राजनीतिग्यों,पूर्व आई०ए०एस० अधिकारियों,अर्थशास्त्रियों ,सामाजिक विचारकों और प्रतिष्ठित नागरिको  ने भाग लिया .सवाल यह उठता है कि भारतीय नागरिकों के अधिकारों के सम्बन्ध में बहस तो संविधान सभा में की जा चुकी है और संविधान के भाग ३ के अंतर्गत आर्टिकल १२ से ३२ तक भारतीय नागरिकों के Fundamental Rights को परिभाषित किया जा चुका है,अब  बहस की आवश्यकता  और गुंजाइश कहां है..? आयोजक संस्था, राष्ट्रीय लोकाधिकार संगठन, की ओर से यह पक्ष रखा गया कि क्योंकि स्वतंत्रता  के बाद राज्य  नागरिकों को शिक्षा, स्वास्थ्य की बुनियादी सुविधाएँ प्रदान  करने में असफल  रहा है और  महिलओं का सशक्तीकरण करने की जुम्मेदारी भी अधूरी है, ऐसे अनेक कारण हैं ,जिनमें भ्रष्टाचार और misgovernance भी शामिल है, जिसके कारण नागरिकों की बड़ी आबादी मूलभूत अधिकारों से व्यवहार के स्तर पर लगभग  वंचित है अतः इन नये संदर्भों के अंतर्गत इस विषय पर देशव्यापी  बहस की जरूरत है.इस बात पर बहुत बल दिया गया कि नागरिकों को अपने मूलभूत तथा अन्य अधिकारों  का ग्यान होना चाहिए  और इसके लिए उनका वकील होना जरूरी  नहीं है .ग्यान और सूचना  प्राप्त होने के बाद ही आम नागरिक सीधे न्यायालयों में अधिकारों की लड़ाई स्वयं भी लड़ सकता है.एक विद्वान वक्ता ने इस बात को प्रभावी ढंग से रखा कि राज्य किसी नागरिक को अधिकार प्रदान नहीं करता है अपितु उनके प्रकृति दत्त अधिकारों को मात्र  recognize करता है.बाद वापस वहीँआती है कि यदि देश की बड़ी आबादी व्यावहारिक तौर पर अशिक्षित, गरीब और स्वास्थय की  bare minimum सुविधाओं से वंचित हो तो क्या वह न्यायालयों के माध्यम से अपने अधिकार की लड़ाई लड़ सकते हैं?आज़ादी के समय देश की साक्षरता १२% थी जो यदपि आज बढ़ कर ७४% हो गयी है पर दुनिया के औसत ८४%से अब भी कम है.इसमें भी महिला साक्षरता केवल ६५% है.संविधान में संशोधन कर धारा २१ ए जोड़ी गयी,जिससे Right to elementary education, ६ से १४ वर्ष की आयु के बच्चों को दिया गया है.सरकारी प्राइमरी स्कूलों की दुर्दशा से  सब अवगत हैं.यह अधिकार इन बच्चों को कौन दिलवाएगा?क्या भारत के नागरिकों को वास्तव मैं कोई स्वास्थय संबधी सुविधा सरकारी या निजी क्षेत्र में उपलबध हैं?नहीं. भारत में केवल nominal health care system मौजूद है जहाँ ज्यादातर आबादी के लिए ना तो अस्पताल हैं,न डाक्टर, न मेडिकल स्टाफ  और ना अम्बुलंस.३ वर्ष से कम की आयु के४२%बच्चे कुपोषण के शिकार हैं अर्थ व्यवस्था बढ़ रही है और कुपोषण भी. यह कैसा विरोधाभास है?क्या स्वस्थ रहना हर भारतीय का अधिकार नहीं है? यह भी सच है कि महिलाएं कमजोरों में भी अधिक कमजोर हैं,उनमें शिक्षा कम है,मेडिकल केयर में परिवार में उनका नंबर सबके  बाद  है,रोज़गार, संपत्ति के अधिकार, सब मामलों में उन्हें पीछे रखा जाता है,फिर ऊपर से दहेज , घरेलू हिंसा और असुरक्षा ही असुरक्षा.क्या इन सब संदर्भों  पर समाधान लाए बिना हमारे अधिकार अपूर्ण नहीं है?चर्चा बड़ी लम्बी हुई, जिसे शब्दों में समेटना कठिन है.अनुरोध है कि इस मंथन से आप भी जुड़ें.

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