ईमानदारी से कमाने का काम छोटा नहीं होता।
तिल का ताड़ कैसे बनता है और किसी बयान को नेतागण किस प्रकार तोड़-मरोड़कर अपने हित में प्रचारित करते हैं। इसका ताजा उदाहरण प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी का हाल ही में दिया गया पकौड़े बेचकर रोज़गार पाने वाला बयान है। जी न्यूज के एडिटर इन चीफ सुधीर चौधरी को दिए इंटरव्यू में उनसे जब अपर्याप्त नौकरी सृजन के बारे में पूछा तो उसके जवाब में पीएम ने पकौड़े बेचने से जुड़े रोजगार का जिक्र किया था उन्होंने कहा कि चैनल के स्टुडियो के बाहर अगर कोई पकौड़ा बेचकर प्रतिदिन 200 रूपया कमाता है तो उसे भी नौकरी के तौर पर माना जाना चाहिए। जिस पर विपक्ष ने पीएम के इस बयान पर जमकर हंगामा किया। बस प्रधानमंत्री का बयान क्या सामने आया इस पर विपक्षी दलों की तरफ से व्यंग्य वाण चलने शुरू हो गए। बेरोजगारी के मुद्दे पर मोदी सरकार को घेरने में लगे विपक्ष ने इसे बड़ा मुद्दा बना लिया। सोशल मीडिया पर भी पकौड़े वाले बयान को लेकर बहस तेज हो गई। बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह ने विपक्ष द्वारा रोज़गार के मामले में प्रधानमंत्री मोदी के पकौड़े बेचने वाली दलील का मज़ाक उड़ाने की तीखी आलोचना करते हुए कहा, ‘पकौड़े बनाना शर्म की बात नहीं है बल्कि उनकी तुलना भिखारी से करना शर्म की बात है।’
व्यावहारिक स्तर पर रोजगार के अन्तर्गत सरकारी-गैर सरकारी नौकरियों सहित व्यक्तिगत और सामूहिक स्तरपर किए जाने वाले समस्त व्यवसाय आते हैं, किन्तु आज का युवा रोजगार के रूप में किसी देशी-विदेशी कंपनी की नौकरी अथवा सरकारी-गैरसरकारी संस्था की नौकरी को ही रोजगार समझता है। इसी अर्थ में उसने वर्तमान प्रधानमंत्री के वायदे को ग्रहण किया है किन्तु जब उसे उसकी पूर्वधारणा के विपरीत पकौड़ा व्यवसाय जैसी सस्ती और पारम्परिक व्यवस्था की सलाह दी गई तो बेरोजगार युवा वर्ग का आक्रोशित होना स्वाभाविक है।
यह रोचक है कि होटल मैनेजमेंट, कैटरिंग जैसे बड़े व्यवसायों में तो खाने-पीने की चीजें बनाने-बेचने को तो सम्मानजनक समझा जाता है जबकि छोटे स्तर पर स्टाल या ठेले पर यही व्यवसाय तुच्छ माना जा रहा है और विपक्षी दलों के नेता प्रधानमंत्री के बयान को गलत दिशा में व्याख्यायित करके सियासी रोटियां सेंकने में लगे हैं। यह दुखद है, क्योंकि ईमानदारी से रोजी-रोटी कमाने का कोई भी काम कभी छोटा नहीं कहा जा सकता। बड़े-बड़े पदों पर बैठकर भ्रष्टाचार करके मोटी रकम डकारने वालों से तो इस देश के ठेले वाले, बूट पालिश वाले, रिक्शा चालक और मेहनतकश मजदूर-किसान लाख दर्जा अच्छे हैं। उनके छोटे समझे जाने वाले व्यवसाय निश्चय ही महान हैं, क्योंकि उनमें मेहनत का रंग और ईमानदारी की खुशबू है। इसलिए पकौड़े बेचकर उनका उपहास करने की ओछी राजनीति की जितनी निन्दा की जाए कम है। चुनावी घोषणा पत्र में किए गए वायदों को पूरा करना सत्ताधारी दल की नैतिक जिम्मेदारी होती है और इस दृष्टि से रोजगार देने का कार्य वर्तमान सरकार की प्राथमिकता होनी चाहिए। इससे इनकार नहीं किया जा सकता किन्तु कांग्रेस एवं अन्य विपक्षी दल रोजगार के वायदे को लेकर जिस प्रकार सरकार की टांग खींच रहे हैं, वह शर्मनाक है, क्योंकि ऐसे चुनावी वादे इन दलों ने भी सत्ता में आने पर कभी पूरे नहीं किए हैं। जिनके अपने चेहरे पूरी तरह काले हैं वे दूसरों के दाग दिखा रहे हैं। ऐसी ओछी राजनीति से बाज आना चाहिए।
चन्द्रपाल प्रजापति नोएडा