पुणे में मॉनसून का आगमन हो चुका है, ऐसे में डॉक्टर कर रहे हैं पानी से होने वाली बीमारियोँ और संक्रमण के खतरे से आगाह

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पुणे, 22 जून 2018: भारत के अन्य कई हिस्से जहाँ अब भी लू की चपेट में हैं, पुणे के आसमान पर मॉनसूनी बादलोँ का पहरा आ गया है। उत्तर भारत के तमाम हिस्सोँ से रोजाना हीट स्ट्रोक और गर्मी से जुडी अन्य आपदाओँ सम्बंधी सूचनाएँ आ रही हैं। इस बीच मॉनसून कोंकण रीजन से होते हुए वेस्टर्न घाट और महाराष्ट्र को धीरे-धीरे अपने दायरे में ले रहा है।

कुछ दिन पहले ही पुणे में लगातार 45 मिनट तक बारिश हुई जिसमेँ 19 मिमी बारिश दर्ज की गई थी। ऐसे में शहर के लोगोँ को गर्मी से राहत मिल गई है।

कोलम्बिया एशिया हॉस्पिटल, पुणे के कंसल्टेंट-इंटर्नल मेडिसिन एंड इंफेक्शियस डिजीजेज, डॉ. महेश कुमार मनोहर लाखे कहते हैं,“पुणेकरोँ को इस बारिश की वजह से गर्मी से बडी राहत मिली है। चूंकि इस बार मॉनसून वेस्टर्न घाट पर मेहरबान है, ऐसे में पुणे भी भारी बारिश के अपने इस वार्षिक इवेंट से उम्मीद लगाए हुए है। मगर मॉनसून जलजनित बीमारियोँ जैसे कि इंफ्लुएंजा, डायरिया, कॉलरा, टायफॉइड, वायरल फीवर. त्वचा के संक्रमण जैसी तमाम बीमारियोँ के प्रसार के लिए अनुकूल समय होता है। ऐसे में सिर्फ बचाव ही एकमात्र उपाय है, जिससे बारिश के मजे को दवाओँ की कडवाहट से बचाकर रख सकते हैं।“

भारी बारिश के समय शहरोँ का सीवेज सिस्टम पूरी तरह से खराब हो जाता है, जिससे हहर के जन संसाधन सिस्टम की हालत सामने आ जाती है। पुणे भी उन शहरोँ में शामिल है जहाँ जल जमाव की समस्या काफी ज्यादा है, जो कि शहर को बीमारियोँ के खतरे के दायरे में लाने की सबसे बडी वजह है। इस मौसम की कुछ आम बीमारियाँ इस प्रकार हैं जिनके बारे में लोगोँ को सतर्क रहने की जरूरत है:

इंफ्लुएंजा: इंफ्लुएंजा एक आम कोल्ड व कफ की समस्या है जिसकी पहचान बुखार, छींक आने, नाक बंद होने, गला खराब होने जैसे लक्षणोँ से की जा सकती है। यह बेहद संक्रामक समस्या होती है क्योंकि इसके वायरस हवा में फैले होते हैं। यह अपर रेस्पिरेटरी ट्रैक्ट, नाक और गले को प्रभावित करता है।

कॉलरा: अगर समय पर इलाज न किया जाए तो यह बैक्टीरियल बीमारी जानलेवा भी ह सकती है। संक्रमित भोजन और पानी इस बैक्टीरिया के प्रसार में सबसे बडी भूमिका निभाता है और साफ-सफाई की कमी समस्या को और बढा देती है।इस समस्या का एक आम लक्षण है शौच का पतला होना।

टायफ़ॉइड:यह एक जलजनित बैक्टीरियल बीमारी है जो कि संक्रमित व्यक्ति के शौच से संक्रमित हुए भोजन और पानी के जरिए फैलता है। मक्खियाँ इस बीमारी को प्रसारित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं। संक्रमित व्यक्ति को तेज बुखार, मितली, उल्टी और तेज सिरसर्द जैसे लक्षण दिखाई देते हैं। इस बीमारी के बार-बार लौटने का खतरा रहता है क्योंकि इसके बैक्टीरिया पित्ताशय में तब भी मौजूद रह सकते हैं जब मरीज की रिपोर्ट “टायफॉइड नेगेटिव” आ जाती है।

डेंगू:यह एक वायरल संक्रमण होता है जो मच्छरोँ के जरिए फैलता है और इसमेँ बुखार, जोडोँ व मांसपेशियोँ में तेज दर्द, लिम्फ नोड्स में सूजन, सिरदर्द, बुखार थकान और शरीर पर रैशेज जैसे लक्षण दिखाई देते हैं। अगर समय पर इलाज नहीं किया गया तो मरीज को हेमरेज और सर्कुलेटरी कोलैप्स तक हो सकता है।

मलेरिया: यह मॉनसून के सीजन में होने वाली सबसे आम बीमारियोँ में से एक है। मलेरिया गंदे पानी में पैदा होने वाले एक खास प्रकार के मच्छर के काटने से फैलता है। बारिश के मौसम में जल-जमाव होने पर इन मच्छरोँ के पनपने और इनके कै गुना बढने के लिए अनुकूल वातावरण मिल जाता है।

लेप्टोस्पायरोसिस: यह गंदे पानी अथवा मलबे से फैलता है। इस बीमारी के आम लक्षण हैं इंफ्लेमेशन. सिहरन, मांसपेशिययोँ में दर्द, सिरदर्द और बुखार।

त्वचा में फंगल संक्रमण: एग्जिमा, रिंग वॉर्म, नाखूनोँ में संक्रमण आदि सबसे आम फंगल संक्रमण हैं जो कि गंदे पानी और खराब साफ-सफाई के चलते मॉनसून के मौसम में फैलते हैं।

चूंकि बचाव हमेशा इलाज से बेहतर विकल्प साबित होता है, ऐसे में निम्नलिखित उपायोँ को ध्यान में रखना जरूरी है:

• तकलीफ के असहनीय होने का इंतजार बिल्कुल न करेँ। समस्या होने पर तुरंत डॉक्टर के पास जाएँ। इलाज जल्द कराने से बीमारी से जल्दी पीछा छूटता है।

• मॉनसून के मौसम में बाहर खाने से बचेँ, खासतौर से फास्ट फूड अथवा फ्रोज़न फूड् के इस्तेमाल से। फ्रोजन फोड में फगस जल्दी पैदा होने का खतरा रहता है जिससे डायरिया अथवा पेट में संक्रमण हो सकता है।

• मॉनसून में स्वच्छ्ता से कोई समझौता न करेँ। बाहर से घर लौटकर माइल्ड साबुन से नहाएँ अथवा नहाने के पानी में डिसइंफेक्टेंट मिला लेँ।

• शरीर को भरपूर नमी देँ। इसके लिए खूब सारा तरल लेँ क्योंकि इससे शरीर में नमी बनी रहेगी और पानी का अच्छा संतुलन मॉनसून सम्बन्धी तमाम समस्याओँ और वायरस के असर से लडने में सहायक होता है।

• बारिश वाले बूट पहनेँ, इससे आपके पैर संक्रमित पानी के सम्पर्क में आने से बचेंगे और फंगल संक्रमण से बचाव होगा।

• डेंगू, मलेरिया से बचाव के लिए बाहर जाते समय मॉस्क्वीटो रेपेलेंट का इस्तेमाल करेँ और घर में मच्छरदानी लगाएँ। सुरक्षा की लिए डॉक्टर की सलाह से पैरासिटामॉल की मामूली खुराक ली जा सकती है।

• हमेशा अपने साथ हैंड सैनेटाइजर रखेँ, कुछ भी खाने से पहले इसे इस्तेमाल करेँ।

• बाहर जाते समय उबले हुए पानी की बोतल अपने साथ रखेँ, बाहर का पानी पीने से बचेँ अथवा पैकेज्ड पानी का इस्तेमाल करेँ।

• सडकोँ के किनारे चल रही रेडी आदि से कभी न खाएँ।

डॉ. महेश कहते हैं,“सिर्फ बचाव के उपायोँ के प्रति सतर्क रहकर ही मॉनसून के अनुभवोँ को बुरा बनने से रोका जा सकता है। क्योंकि इसी से बारिश के मौसम की बीमारियाँ आपसे दूर रहेंगी। कोई भी लक्षण सामने आने की स्थिति में, अपनी मर्जी से दवाएँ लेने के बजाय किसी प्रशिक्षित डॉक्टर से सलाह लेँ।“

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