शारदा यूनिवर्सिटी का ‘आर्किटेक्चर पर अत्याधुनिक ट्रेंड्स’ पर अंतर्राष्ट्रीय सभा

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ग्रेटर नोएडा15 सितंबर 2017: शारदा यूनिवर्सिटी के स्कूल ऑफ आर्किटेक्चर एंड प्लानिंग द्वारा एजुकेशन पार्क में आयोजित आर्किटेक्चर में अत्याधुनिक ट्रेंड्स‘ पर तीन दिवसीय सभा अनुभवी बुद्धि के साथ संयोजित व्यावसायिक ज्ञान का एक खजाना है। ग्रेटर नोएडा में आयोजितइस सभा के उद्घाटन सत्र में पूरे देश के प्रसिद्ध आर्किटेक्ट्स व शिक्षाविदों ने उन सबसे अच्छे अभ्यासोंनई तकनीकों व अत्याधुनिक पर अपने दृष्टिकोण साझा किए जिन्होंने आर्किटेक्चर के क्षेत्र में अपनी उपस्थिति दर्ज करा दी है।

यह कार्यक्रम डीन एसएपी डॉ. शोवन के. साहा के स्वागत भाषण के साथ शुरू हुआजिन्होंने प्रमुख वक्ताओं को उनकी उपस्थिति के लिए धन्यवाद किया। इस सभा में पूरे देश के प्रसिद्ध आर्किटेक्ट्स उपस्थित हुए थेजिन्होंने बड़ी खुशी से युवा विद्यार्थियों से संवाद किया। स्वागत भाषण के बादएसएपी के विभागाध्यक्ष प्रो. एस.एन. सेगल ने सभा के लिए परिचय नोट अर्पित किया।

प्रो. चेतन वैद्य, स्कूल ऑफ प्लानिंग एंड आर्किटेक्चर (एसपीए), दिल्ली के निदेशक ने उद्घाटन भाषण दिया। स्थाई आर्किटेक्चर के मुद्दे पर गंभीरता से चर्चा की गई और शारदा यूनिवर्सिटी के प्रो वाइस चांसलर प्रो. रंजीत गोस्वामी ने इस विषय पर अपने दृष्टिकोण से सभा का ज्ञान बढ़ाया।

प्रो. चेतन वैद्य ने तकनीकी सत्र को शुरू किया, जिसके बाद ‘दुनिया का ध्येय’ के मुख्य विषय पर भारत के सबसे सम्मानित आर्किटेक्ट व नगरीय प्लानर प्रो. क्रिस्टोफर सी बेनिंगर का सत्र आयोजित किया गया। इस सत्र में मौसम के परिवर्तन, संसाधनों की बाधाएं, असुरक्षा की चिंताएं, परंपराओं के लिए आकर्षण, कौशल व प्रक्रियाओं का यांत्रिकीकरण, और इन सबसे भी ऊपर प्रत्येक एक मास्टर क्रिएटर के रूप में देखे जाने के हर आर्किटेक्ट के पैदायशी सपने पर बात की गई। प्रो. मनोज माथुर, एसपीए, नई दिल्ली में आर्किटेक्चर विभाग के प्रमुख, ने ‘अत्याधुनिक आर्किटेक्च व उनके प्रबंधन के महत्वपूर्ण निर्धारक’ के विषय पर विस्तार से चर्चा की। प्रो. देशबंधु के सक्षम समभाव के मार्गदर्शन में दोपहर बाद के सत्र के दौरान इस विषय पर 7 रिसर्च पेपर भी प्रस्तुत किए गए।

स्थाई जीवन पर फोकस देने हेतु भारत की जरूरतों पर जोर देते हुए, स्कूल ऑफ प्लानिंग एंड आर्किटेक्चर (एसपीए) दिल्ली के निदेशक प्रो. चेतन वैद्य ने कहा, “हम एक ऐसे देश में रहते हैं जिसका आबादी घनत्व बहुत ज्यादा है और संस्कृति में भी काफी भिन्नता है। इस देश में विभिन्न समुदायों व धर्मों के लोग रहते हैं और देश की विविध संस्कृति के कई तत्व आर्किटेक्चर की स्टाइलों में भी दिखाई पड़ते हैं या प्रतिबिंबित होते हैं। ऐसे कोई एक समान साइज नहीं हो सकता है जो हमारे देश जैसे भारी आबादी वाले देश में सब चीजों पर फिट बैठे। नगरीयकरण की तेज प्रगति के बीच, स्थाई प्लानिंग, नवाचार व इको—फ्रेंडली समाधानों की भी बहुत जरूरत है। ऊर्जा दक्ष इमारतें और खुला स्पेस लोगों को खुश व सेहतमंद रहने में मदद कर सकता है, क्योंकि उन्हें नियमित तौर पर प्रकृति से जुड़े रहने की सुविधा देता है।”

इस सत्र से पहले ही बहुत सारी प्रत्याशाएं थी क्योंकि प्रसिद्ध अमेरिकी—भारतीय आर्किटेक्ट क्रिस्टोफर बेनिंगर, लगभग चाढ़े चार दशक पहले अपनी जिंदगी के दूसरे दशक के आखिर में भारत के सफर में आए थे, और तब से ही यहां हैं, उन्होंने एक घंटे का सत्र आयोजित किया जिसमें उन्होंने आर्किटेक्चर के टाइपोलॉजी व सौंदर्य के गुणों के बारे में अपने अनुभवों को साझा किया। उन्होंने भारतीय तत्वों व कोष का प्रयोग करने के फायदों पर भी जोर दिया, एक्सपोल्ड ईंटों, एक्सपोज्ड कंक्रीट, सेन्ट्रल स्पेस, चिमनी जो अं​दरूनी जगह को ठंडा कर सकती हैं, स्काईलाइट, सागौन की लकड़ी, बरामदा, जेल्स का प्रयोग करना, जो पारंपरिक सामग्री व शिल्पकारिता का प्रयोग किए जाने के साथ ही वातावरण के साथ जुड़ने में भी मदद कर सकता है।

बेहद प्रतिभाशाली आर्किटेक्ट व ‘लेटर्स टू अ यंग आर्किटेक्ट’ के लेखक, क्रिस्टोफर बेनिंगर ने कहा, “एक आर्किटेक्ट होने के नाते आप एक ऐसे व्यवसाय में हैं जो भविष्य देखता है जो विकास व नवाचार के समाधानों को जोड़ता है। मेरे हाल ही के काम ‘लिवेबिलिटी’ में, मैंने इस बात पर फोकस किया है कि अनौपचारिक क्षेत्रों में काम करने वाले लगभग 70% लोग कैसे रोटी, कपड़ा और मकान की मूलभूत सुविधाएं पाने में भी असक्षम हैं। ‘इंडिया हाउस’ नामक मेरे प्रोजेक्ट में, मैं सरल व पारंपरिक सामग्रियों का प्रयोग कराया है, जो पर्यावरण के तौर पर वहनीय है और जटिल इमारत कार्यक्रम हेतु एक समाधान पाने के लिए सबसे शालीन तरीके से सांस्कृतिक निरंतरता को बनाए रखता है। चलिए, हम सभी नए, अभिनव व पर्यावरण के अनुकूल समाधानों को आजमाने और अपनी बाकी जिंदगी में आर्किटेक्चर के क्षेत्र में नए सिद्धांतों को अपनाना सीखते रहने की कोशिश करते रहें।”

अंतिम सत्र में, प्रोफेसर मनोज माथुर ने विद्यार्थियों को एक व्यापक ओपन ऑनलाइन कोर्स (एमओओसी) से परिचित करवाया, जिसका निर्माण विद्यार्थियों को अभिनव डिजिटल तकनीकों का प्रयोग करने और उनकी खुद की सहूलियत के अनुसार शिक्षकों से जुड़ने में मदद करने के लिए किया गया था। इस वर्चुअल कोर्स की सामग्रियों के बारे में समझाते हुए, प्रो. मनोज माथुरएसपीएनई दिल्ली में आर्किटेक्चर विभाग के प्रमुख ने कहा, “चूंकि समाज का विकास सदियों में एक इकोलॉजिकल पैटर्न से अगले पैटर्न में हुआ है, इस आर्किटेक्ट्स ने भी निर्धारकों के नए सेट्स का सामना किया। भविष्य के आर्किटेक्ट्स के तौर पर, हमें लोगों और उनके रहने के स्थान की जरूरतों के अनुसार वहनीय बदलाव लाने की जरूरत है। हमें संक्षिप्तीकरण, प्रासंगिता और संवाद के प्रस्ताव के साथ स्थान को फिर से डिजाइन करने की जरूरत है। कई सारे निर्धारकों के बीच, आर्किटेक्ट्स को कुशलतापूर्वक प्रत्येक तत्व के संबंधित महत्व को जांचने व पहचानने की जरूरत होगी। उन्हें अपने विभिन्न संयोजनों के कुल परिणाम को विजुअलाइज करने की भी जरूरत होगी जो कार्यात्मक दक्षता, वहनीयता और सौंदर्य की संवेदनशीलता की आवश्यकताओं को अच्छी तरह से पूरा करेगा।”

इस सभा के पहले दिन के खत्म होने के समय, विद्यार्थी व अन्य प्रतिभागी आर्किटेक्चर के विभिन्न आयामों के बारे में अपने ज्ञान को और बढ़ाने की आशा कर रहे थे। दूसरा दिन भी दिलचस्प विषयों पर संलग्न करने वाली चर्चा से भरपूर होने का वादा करता है। एक प्रमुख अभ्यासरत आर्किटेक्ट, आर्कि. स्नेहांशु मुखर्जी’प्रासंगिक गति​की पर प्रतिक्रिया’ पर एक घंटे का सत्र लेंगे जिसके बाद ‘निर्माण तकनीक व प्रबंधन’ पर डॉ. वी.के. पॉल, एसपीए, नई दिल्ली में बीईपीएम विभाग के प्रमुख, द्वारा सत्र लिया जाएगा। इस तकनीकी सत्र के बाद प्रो. शिल्पी सिन्हा द्वारा नियंत्रित, इन विषयों व चर्चा पर व्यावसायिकों व शिक्षाविदों द्वारा 7 अन्य रिसर्च पेपर्स को भी प्रदर्शित किया जाएगा।

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