भारतीय जनता पार्टी किसान मोर्चा

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आप को विदित होगा की 3 से 6 दिसंबर 2013 को बाली में डब्ल्यूटीओ की नौंवीं मंत्री स्तरीय होने वाली है। लेकिन देश के हित में सोचने वाले लोगों को भारत के नेतृत्व में और जी-33 देशों के समूह द्वारा रखे जाने वाले खाद्य सुरक्षा प्रस्ताव को लेकर काफी चिंताएं उभर रही हैं। सरकार एक तरफ तो किसानों को उपज का उचित मूल्य दिलवाने के लिए एमएसपी यानी न्यूनतम समर्थन मूल्य तय करती है और साथ ही गरीबों को सस्ती दरों पर अन्न उपलब्ध कराने के लिए खाद्य सुरक्षा जैसे कानून बनावा रही है, लेकिन वहीं दूसरी तरफ विकसित देशों के दबाव में पूरी खाद्य सुरक्षा और किसानों की आजीविका को गिरवी रख रही है।

प्रधानमंत्री जी, आप जानते हैं कि डब्ल्यूटीओ के नियमों के अनुसार सब्सिडी को व्यापार के लिए विकृत करने वाला माना जाता है और सब्सिडी को कुल उत्पादन के 10 फीसदी तक सीमित करना आवश्यक है। अब आप खुद भी यह जानते हैं कि हाल ही में आए खाद्य सुरक्षा विधेयक के चलते, जल्दी ही भारत इस 10 फीसदी की सीमा को तोड़ देगा। इसलिए एओए यानी एग्रीमेंट आॅन एग्रीकल्चर में नए प्रस्ताव के द्वारा बदलाव करने की बात कही जा रही है जिससे ग्रीन बाॅक्स का लाभ लेकर विकासशील व गरीब देश असीमित सब्सिडी अपने किसानों को दे सकें। और यह बात सही भी है क्योंकि एओए के नियम 1986-88 में तय दामों के अनुसार तय किए गए हैं और साथ ही एक्सटरनल रिफें्रस प्राइस जो पहले रुपये में तय किया था अब उसे डाॅलर में कर दिया गया है, इसे भी बदलवाने की आवश्यकता है।

अगर आंकड़ों पर नजर डालें तो 1986-88 से 2013 तक चावल और गेहूं के दामों में 300 फीसदी से भी अधिक का उछाल आ चुका है और उर्वरकों के दामों में भी करीब 480 फीसदी की वृद्धि हो चुकी है।

मजेदार बात है कि विकासशील और गरीब देशों में दी जाने वाली कृषि सब्सिडी का विरोध सबसे अधिक अमेरिका, यूरोपीय संघ और कनाडा कर रहे हैं, जो खुद अरबों डाॅलर की घरेलू और निर्यात सब्सिडी देतें हैं और इन सब्सिडी को इन देशों ने ग्रीन बाॅक्स में डाल दिया है जिस कारण सवाल भी उठता। ये विकसित देश सब्सिडी में कितना खर्च करते हैं उसे इस बात से समझा जा सकता है कि 1996 में इन विकसित देशों में करीब 350 अरब अमेरिकी डाॅलर की सब्सिडी दी गई थी, जो 2011 में बढ़कर 406 अरब डाॅलर हो गई।

डब्ल्यूटीओ में अपनी बात रखने के लिए पीस क्लाॅज का सहारा लेने की बात उठाई जा रही है, जिससे भारत अगर सब्सिडी की सीमा पार करता है तो कोई भी उसे तंग नहीं करेगा। लेकिन साथ ही ये बात भी है कि ये पीस क्लाॅज करीब 3 या 4 वर्ष के लिए है। तो क्या इस क्लाॅज की अवधी खत्म होने के बाद हमें अपने देश के भूखों को खाना खिलाने की जरुरत नहीं रह जाएगी? क्या उसके बाद किसानों को कोई भी आर्थिक मदद देना बंद कर दिया जाएगा और किसानों को उनके हाल पर छोड़ दिया जाएगा? हम डब्ल्यूटीओ में इस समस्या का स्थाई समाधान क्यों नहीं खोजते हैं और वैसे भी पीस क्लाॅज जिस रूप में पेश किया जा रहा है उससे आप अपने देश के लोगों को सब्सिडी का अधिक लाभ दिला पाएंगे…इसपर कुछ गंभीर सवाल हैं।

पीस क्लाॅज पर लगाई जा रही शर्तों पर अमल करना न सिर्फ देश के किसानों की आजीविका पर सवालिया निशान लगा देगा, बल्कि भारत की खाद्य सुरक्षा और प्रभुसत्ता को भी खतरे में डाल देगा। प्रधानमंत्री जी हमने देश की करीब 67 फीसदी आबादी को भूखा न सोने देने के आपके संकल्प का समर्थन किया था और इसलिए खाद्य सुरक्षा विधेयक को अपनी सहमति भी दी थी।

लेकिन क्या पीस क्लाॅज की अवधी खत्म होने के बाद क्या सरकार खाद्य सुरक्षा के हाथ खीच लेगी और इस बोझ को आने वाली सरकारों के सर रखकर अपना पल्ला झाड़ लेना चाहती है। ये कहां की नीति हुई कि अपना भार दूसरों के कंधों पर रख दो? क्या देश सिर्फ अगले दो या तीन साल ही चलने वाला है फिर क्या किसी की जिम्मेवारी नहीं रहेगी? क्या हम डब्ल्यूटीओ में होने वाली अनीतियों को अपने देश के किसान और गरीबों पर हावी होने देंगे? क्या किसान और गरीबों के हित को अंतरराष्ट्रीय मंच पर भी सुरक्षित रखना चयनीत सरकार का दायित्व नहीं है?
हम आपसे अनुरोध करते हैं देश के किसानों और गरीबों का अहित करने वाले इस पीस क्लाॅज का आप विरोध करें और किसी भी रूप में भारत के अधिकार और गौरव को सुरक्षित रखें।

प्रधानमंत्री जी आप खुद एक अर्थशास्त्री हैं और आप इस देश की विश्व मंच में आवाज हैं और भारत का प्रधानमंत्री अपने किसानों के हित में कोई गलत कदम नहीं उठाएगा इसे साबित करने का समय आ गया है। और हम उम्मीद करते हैं कि देश के किसानों की ओर उठे इस आवह्न को आप नजरअंदाज नहीं करेंगे।

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