उच्च शिक्षा में कैसे हो सुधार, पूर्व यूपीटीयू कुलपति प्रो.आर. के. खाण्डल ने साझा किए विचार

Ten News Network

देश के उच्च शिक्षा विश्वविद्यालयों औऱ संस्थानों में शिक्षा, ट्रेनिंग औऱ गुणवत्ता के चिंताजनक स्तर और संबंधित विषयों को लेकर पिछले दिनों टेन न्यूज़ द्वारा एक चर्चा का आयोजन किया गया।

इसी चर्चा में यूपीटीयू के पूर्व कुलपति एवं वर्तमान में इंडिया गलिकल्स लिमिटेड के प्रेजिडेंट (R&D) प्रो.आर. के. खाण्डल ने उच्च शिक्षा में सुधार और इसको और सुदृण बनाने के लिए अनेकों सुझाव बिंदुवार रूप से प्रस्तुत किये, जो इस प्रकार हैं:

1. संस्थानों में प्रवेश के लिए परीक्षाएँ होना शिक्षा को दिशाहीन और छात्रों को भ्रमित रखती है। किसी भी प्रकार से MCQ द्वारा परीक्षा पास करना ध्येय रहता है। एक बार प्रवेश हो गया, उसके पश्चात पढ़ने की क्या आवश्यकता? ज्ञान अर्जित करना नहीं शिक्षा केवल कम्पटीशन पास करने तक सीमित रह गया है ।

2. एक तरफ कोचिंग प्रगति पर है, दूसरी तरफ तकनीकी संस्थान बंद हो रहे हैं। इस पर विचार होना चाहिए।

3. प्लेस्मेंट के नाम पर जो चल रहा है उसके कारण कोई भी बच्चा “outcome-focused” नहीं है| आज की सारी शिक्षा प्रणाली पैकेज एवं जॉब केंद्रित है|

4. शिक्षण संस्थान सभी स्वावलंबी हों।

5. अध्यापकों का वेतन सबका समान हो और सबको सरकार से मिले एक निश्चित कैडर के अंतर्गत।

6. शिक्षा, शिक्षण संबंधित अन्य विषय, सब शिक्षक देखें, अधिकारी नहीं।

7. तकनीकी शिक्षा का intake 75% और बाक़ी प्रोग्राम में केवल 25% सीट हों ताकि तकनीकी शिक्षा के इतर केवल 25% बच्चे ही जाएँ। जो तकनीकी शिक्षा नहीं चाहते उन्हें वोकेशनल में भेजा जाए और ग्रामीण समाज से जुड़कर काम करें ना कि नगरों में।

8. विश्वविद्यालय इंडस्ट्री से एफिलिएट हों और बच्चे समाज की एवं इंडस्ट्री की समस्याओं के समाधान में लगें।

9. प्रत्येक विश्वविद्यालय में 50% सीट कृषि और पशु पालन की हों। सब समाज की समस्याओं में लगें और पढ़ाई इसी बात की हो।

10. जब तक शिक्षक स्वयं गाँव में, समाज में और इंडस्ट्री में रह कर काम नहीं करेंगे तब तक शिक्षा में परिवर्तन नहीं आ सकता है| अतः शिक्षकों को ‘इंडस्ट्री रेडी’ होना होगा।

11. नीति आयोग एक तकनीकी विशेषज्ञ के अधीन होना चाहिए। शिक्षाविद नीति आयोग को चलाए नाकी ब्यूरोक्रेट्स और एकनॉमिस्ट्स|

12.  कुलपति, उप-कुलपति के चयन की प्रक्रिया सुदृढ़ और श्रेष्ठ हो। देश में सबसे अधिक जो उपजा है सभी क्षेत्रों में वह (incompetency) है और यह शिक्षा के माध्यम से ही रुक सकता है।

13. अनुसंधान के नाम पर जो चल रहा है देश में वो बंद हो। विदेशी जर्नल में धन के माध्यम से पब्लिश कराना और तय समय पर प्रोमोशन का होना शिक्षा का स्तर गिरा रहे हैं। इन्हें बंद करना होगा। जिस कम्युनिस्ट्स मार्ग में शिक्षा चली है उसे रोकना होगा। रिसर्च केवल देश के जर्नल में ही छपें और ऐसे पब्लिकेशन के बजाए प्रोडक्ट या टेक्नोलॉजी के आधार पर प्रमोशन दिया जाए।

14. IIT, NIT ही नहीं है सब कुछ। शिक्षा तो वास्तव में इनके बाहर है। सभी संस्थानों को बराबर का सम्मान मिले, रैंकिंग की प्रथा सही नहीं है। रैंकिंग की रेस का कोई लाभ नहीं है।


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1 Comment
  1. Vijendra Agarwal says

    Wow, Professor Khandal. Your crystallized and articulated the issues so well.

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