ग्रेटर नोएडा में हुआ गंगा-जमुनी कवि सम्मेलन का आयोजन , दिग्गज कवियों ने दी अद्धभुत प्रस्तुति , दर्शकों ने उठाया लुफ्त

Ten News Network

ग्रेटर नोएडा :– महान स्वतंत्रता सेनानी, कवि, लेखक और समाज सुधारक विजय सिंह पथिक की पावन स्मृति में ग्रेटर नोएडा में गंगा-जमुनी कवि सम्मेलन आयोजित किया गया। कवि सम्मेलन शहर के नॉलेज-3 में स्थित आईआईएमटी कॉलेज में हुआ।

मशहूर कवि विष्णु सक्सेना, उदय प्रताप सिंह, अशोक चक्रधर, सुदीप भोला, गुणवीर राणा और मुमताज नसीम ने इस कवि सम्मेलन में शिरकत की। खासबात यह है कि इन सभी कवियों को सुनने के लिए ग्रेटर नोएडा के तमाम गणमान्य लोग समेत ग्रेटर नोएडा के निवासी कार्यक्रम में पहुँचे , इस कार्यक्रम में सभी कवियों को सम्मानित किया ।

हास्य कवि सुदीप भोला ने ममता दीदी जोर जोर से मचा रही थी हल्ला, सरे आम इंसल्ट हो गई हाय अल्ला हाय. अल्ला, कारण पूछा तो बतलाया जय श्री राम हो गई, गांधी बाबा तेरी खादी बदनाम हो गई सुनाई। साथ ही हास्य कवि सुदीप भोला ने बढ़ते पेट्रोल -डीजल के दामों को लेकर सुनाई कविता , जिसको सुन दर्शक लोट पोट हो गए।

मशहूर हास्य कवि पद्मश्री अशोक चक्रधर ने कविता सुनाई कहा-एक बार बरखुरदार! एक रुपए के सिक्के,और पाँच पैसे के सिक्के में, लड़ाई हो गई, पर्स के अंदर हाथापाई हो गई। जब पाँच का सिक्का दनदना गया ,तो रुपया झनझना गया ,पिद्दी न पिद्दी की दुम अपने आपको क्या समझते हो तुम! मुझसे लड़ते हो, औक़ात देखी है, जो अकड़ते हो! इतना कहकर मार दिया धक्का, सुबकते हुए बोला पाँच का सिक्का- हमें छोटा समझकर दबाते हैं, कुछ भी कह लें ,दान-पुन्न के काम तो हम ही आते हैं। साथ ही हास्य कवि अशोक चक्रधर ने “राधे-राधे” कविता सुनाई , जिसको सुनकर दर्शकों ने खूब तालियां बजाई।

 

 

‘जिसे मैंने सुबह समझ लिया कहीं वो शाम-ए-अलम न हो, मेरे सिर की आपने खाई जो कहीं ये भी झूठी कसम न हो..’ आईआईएमटी के प्रागण में जैसे ही कवयित्री मुमताज नसीम ने यह पंक्तिया सुनाई पूरा माहौल तालियों की गड़गड़ाहट से गूंज उठा। मानो कोरोना महामारी के दौर में सामाजिक कार्यक्रमों के बंद होने से थमी जिंदगी एक बार फिर पटरी पर दौड़ने लगी।

 

गुणवीर राना ने अयोध्या को लेकर माता सीता की पीड़ा कुछ इस तरह व्यक्त की- राम के प्रेम में डूबी रही समझी न कभी मेरी पीर अयोध्या , आंसू ही पीने पड़ेंगे मुझे तुझे पीना है सरयू का नीर अयोध्या , छंद अनोखे लिखा रही हूं सुनकर मन हो अधीर अयोध्या ,राम ने जैसे चुना तुलसी वैसे मैंने चुना गुणवीर अयोध्या , प्रेम ही प्रेम बसा था जहां वह कैसे बनी भ्रमजाल अयोध्या, मातु सा नेह दिया तुझको कब माना तुझे ससुराल अयोध्या, शान हूं मैं तेरे आंगन की विपदा में मत डाल अयोध्या, राम कहां हुए मेरे कभी ये तेरे थे तू ही संभाल अयोध्या,

 

राम के साथ ही रहेगी सदा अब राम की तू है घनिष्ठ अयोध्या, जानकी जान से जाए भले जानकी नहीं है वरिष्ठ अयोध्या, साथ में ऐसे न होता मेरे मुझे मानती जो तू कनिष्ठ अयोध्या, राम से योग मिलाया जिन्होंने वे आज कहां हैं वशिष्ठ अयोध्या..राम की दृष्टि में सृष्टि रही फिर कैसे लगा यह रोग अयोध्या, राम के साथ ही छिपी थी मैं राम के जैसा ही योग अयोध्या, राज लिखा था नसीब में तेरा तू राज को शौक से भोग अयोध्या, राम का राज रहेगा कहां जहां नारी सहेगी वियोग अयोध्या।

 

 

जाने माने कवि विष्णु सक्सेना ने ‘तू जो ख्वाबों में भी आ जाए तो मेला कर दे, गम के मरुथल में भी बरसात का रेला कर दे’ रचना सुनाकर युवाओं की खूब तालियां बटोरीं। साथ ही मशहूर कवि विष्णु सक्सेना ने कहा :- तू हवा है तो कर ले अपने हवाले मुझको , इससे पहले कि कोई और बहा ले मुझको , आईना बन के गुज़ारी है ज़िंदगी मैंने , टूट जाऊंगा बिखरने से बचा ले मुझको।प्यास बुझ जाए तो शबनम ख़रीद सकता हूं , ज़ख़्म मिल जाएं तो मरहम ख़रीद सकता हूं, ये मानता हूं मैं दौलत नहीं कमा पाया, मगर तुम्हारा हर एक ग़म ख़रीद सकता हूं।

 

साथ ही उन्होंने कहा कि “जब भी कहते हो आप हमसे कि अब चलते हैं, हमारी आंख से आंसू नहीं संभलते हैं , अब न कहना कि संग दिल कभी नहीं रोते
जितने दरिया हैं पहाड़ों से ही निकलते हैं। तू जो ख़्वाबों में भी आ जाए तो मेला कर दे, ग़म के मरुथल में भी बरसात का रेला कर दे, याद वो है ही नहीं आए जो तन्हाई में, तेरी याद आए तो मेले में अकेला कर दे।

सोचता था कि मैं तुम गिर के संभल जाओगे, रौशनी बन के अंधेरों का निगल जाओगे, न तो मौसम थे न हालात न तारीख़ न दिन, किसे पता थी कि तुम ऐसे बदल जाओगे। जो आज कर गयी घायल वो हवा कौन सी है, जो दर्दे दिल करे सही वो दवा कौन सी है, तुमने इस दिल को गिरफ़्तार आज कर तो लिया, अब ज़रा ये तो बता दो दफ़ा कौन सी है।

वही दूसरी तरफ मशहूर कवि उदयप्रताप सिंह ने कहा कि चाहे जो हो धर्म तुम्हारा चाहे जो वादी हो ,नहीं जी रहे अगर देश के लिए तो अपराधी हो । जिसके अन्न और पानी का इस काया पर ऋण है, जिस समीर का अतिथि बना यह आवारा जीवन है, जिसकी माटी में खेले, तन दर्पण-सा झलका है ,उसी देश के लिए तुम्हारा रक्त नहीं छलका है , तवारीख के न्यायालय में तो तुम प्रतिवादी हो , नहीं जी रहे अगर देश के लिए तो अपराधी हो ।

 

ग्रेटर नोएडा के मशहूर कवि राजकुमार भाटी ने कहा ” न तेरा है न मेरा है ,ये हिंदुस्तान सबका है ,नही समझी गई ये बात तो नुकसान सबका है , जिसको सुनकर दर्शकों के अंदर देशभक्ति जाग गई।


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