Guest column: भारत की कोरोना वैक्सीन प्रक्रिया क्या अत्याधिक लंबे क्लीनिकल ट्रायल के नाम पर किसी षड्यंत्र की शिकार?

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New Delhi [India], Aug 9, 2020 : विविधताओं से भरा भारत देश, आज पूरे विश्व की ही कोरोना वायरस नामक वैश्विक महामारी से जूझ रहा है। प्रतिदिन सैकड़ों लोगों को काल के ग्रास में समाने वाली इस भयंकर बीमारी का यूँ तो कोई शर्तिया ईलाज नहीं है, परंतु सही वैक्सीन द्वारा इस बीमारी से न सिर्फ बचा जा सकता है बल्कि इसे फैलने से भी रोका जा सकता है।

इसी कारण विश्व भर में 130 से ज्यादा उच्च गुणवत्ता और मापदंड वाले संस्थानों में विगत कुछ महीनों से लगातार वैक्सीन बनाने की प्रक्रिया जारी है।

हाल ही में रूस द्बारा अपनी वैक्सीन का उपयोग 12 अगस्त से शुरू करने तथा सितम्बर अक्टूबर तक पूरे देश को वह वैक्सीन लगाने की घोषणा का समाचार पूरे विश्व में वायरल रहा. पर ज्ञात रहे कि भारत की वैक्सीन भी तैयार हो चुकी है.

आपको ध्यान होगा कि पिछले महीने 3 जुलाई को ICMR (Indian Council of Medical Research) ने 15 अगस्त से भारतीय कोरोना वैक्सीन के उपयोग की घोषणा भी विस्तृत विवरण के साथ की थी. लेकिन इसके तत्काल बाद देश में सक्रिय एक लॉबी ने भांति भांति के क्लीनिकल प्रोटोकॉल का हउव्वा खड़ा कर के गजब हुड़दंग शुरू कर दिया था और सरकार पर ऐसा नहीं करने का भयानक दबाव बना दिया था.

जबकि सच यह है कि ICMR कोई सब्जी बेंचने वालों की संस्था नहीं है. देश के प्रतिष्ठित डॉक्टरों और चिकित्सा विज्ञानियों का समूह है ICMR. यह भी सर्वज्ञात तथ्य है कि वैक्सीन निर्माण और शोध तकनीक में रूस से काफी आगे है भारत. फिर भारतीय वैक्सीन के जल्दी आने में हुड़दंग क्यों.?

दरअसल 135 करोड़ की जनसंख्या वाला भारत दुनिया में कोरोना वैक्सीन का सबसे बड़ा बाजार बनने वाला है. भारत की वैक्सीन उत्पादन की क्षमता दुनिया के सभी देशों से कई गुना अधिक है. अतः कोई भारतीय वैक्सीन यदि बाजार में पहले आ गयी तो अबतक अपनी कोरोना वैक्सीन बनाने पर अरबों रुपये फूंक चुकी दुनिया की आधा दर्जन मल्टीनेशनल दवा कंपनियों के हाथ से सबसे बड़ा बाजार भारत निकल जाएगा.

इसलिए कुछ डॉक्टरों और पत्रकारों के माध्यम से यह कंपनियां करोड़ों फूंक कर तथाकथित क्लीनिकल प्रोटोकॉल का हुड़दंग करा के भारतीय वैक्सीन को 2021 से पहले बाजार में नहीं आने देना चाहती हैं. इसीलिए डाक्टरों तथाकथित विशेषज्ञों और पत्रकारों का एक बड़ा वर्ग इस बात का जबर्दस्त दबाव बना रहा है कि एक से डेढ़ साल लम्बा क्लीनिकल प्रोटोकॉल पूरा किये बिना भारतीय वैक्सीन बाजार में नहीं लायी जाए. इनलोगों को बस एक बात का जवाब देना चाहिए कि क्या रूस की सरकार, उसके राष्ट्रपति पुतिन अपने 14.5 करोड़ नागरिकों के दुश्मन हैं क्या,जो एक से डेढ़ साल लम्बे तथाकथित क्लीनिकल प्रोटोकॉल के बिना उनको वह वैक्सीन देने जा रहे हैं?

मेरी एक बात और ध्यान कर लीजिए कि अमेरिका और ब्रिटेन या किसी और देश की वैक्सीन अगले कुछ महीनों में जब आयेगी तो आज एक से डेढ़ साल लम्बे तथाकथित क्लीनिकल प्रोटोकॉल के लिए भारत में हुड़दंग कर रहे चेहरे आपको गधे के सिर से सींग की तरह गायब नजर आयेंगे.
ध्यान रहे कि लॉकडाउन हटने के बाद लोगों की अनुशासनहीन लापरवाह जीवन शैली के कारण देश में कोरोना मरीजों और मृतकों की संख्या लगातार बढ़ रही है.

आज सवेरे 8 बजे तक का आंकड़ा बता रहा है कि पिछले केवल 24 घंटों में देश में कोरोना संक्रमितों की संख्या में 60,000 की वृद्धि हुई है तथा 933 लोगों की मौत हुई है. यह रफ़्तार धीरे धीरे ही सही लेकिन लगातार बढ़ती जा रही है. अतः अब यह स्पष्ट हो चुका है कि जबतक कोरोना की वैक्सीन नहीं आयेगी तब तक स्थिति भयावह होती जाएगी.
8-9 सौ मौतें रोजाना की इस वर्तमान गति के साथ एक से डेढ़ साल तक क्लीनिकल प्रोटोकॉल पूरा करने की क़ीमत देश को कम से कम 3 से 4 लाख मौतों के साथ चुकानी पड़ेगी.

अतः भारतीय वैक्सीन को क्लीनिकल प्रोटोकॉल के नाम पर रोक रहे विदेशी कम्पनियों के दलालों और धूर्तों के खिलाफ़ प्रचंड अभियान की आवश्यकता है। आप इसे पहचानिये औऱ अपने स्तर से अपनी क्षमतानुसार प्रारम्भ करिए।

(नोट: उपरोक्त लेख में प्रस्तुत वक्तत्व लेखक के निजी विचार हैं एवं टेन न्यूज़ द्वारा इसे पाठकों के साथ साझा करने के लिए प्रकाशित किया गया है। लेख में प्रयुक्त जानकारी और तथ्यों के लिए पोर्टल किसी भी प्रकार उत्तरदायी नहीं होगा)


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